बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जनपदों में रहने वाले इन श्रमिकों को उनके घरों में भेजने का प्रबंध योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से किया गया है. इन श्रमिकों ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी हमने हिम्मत कभी नहीं हारी. सभी साथी एक दूसरे का हौसला बढ़ाते रहे. हमें यकीन था कि हम बाहर जरूर आएंगे. सभी मजदूर अपने-अपने घर पहुंच कर दीवाली मनाएंगे. उनके टनल में फंस रहने के दौरान परिवार के लोग इस बार दीपावली की खुशियां नहीं मना पाए थे.
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लखनऊ पहुंचने पर सभी श्रमिकों के चेहरे पर मुस्कान देखने को मिली. सभी श्रमिक अपने राज्य पहुंचने पर बेहद उत्साहित दिखायी दिए. राजधानी पहुंचे 8 श्रमिकों में से एक संतोष कुमार ने बेहद प्रसन्ना जाहिर की. उन्होंने कहा कि हम काफी अच्छा महसूस कर रहे हैं, हमें कोई परेशानी नहीं हो रही है. एक अन्य श्रमिक मंजीत ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलने को लेकर खुशी जताई और कहा कि कभी सोचा नहीं था कि ऐसा संभव होगा.
लखीमपुर खीरी में मंजीत के घर स्वागत की तैयारी
लखीमपुर खीरी की निघासन तहसील के भैरमपुर गांव निवासी मंजीत के घर भी उसके आने के मौके पर जश्न का माहौल है. मंजीत की मां और दोनों बहनें अपने भाई और पिता का इंतजार कर रही हैं. मंजीत करीब 80 दिन बाद घर पहुंचेगा. मंजीत की मां चौधराइन ने बताया कि परिजन धूमधाम से स्वागत की तैयारी में जुटे हैं. मंजीत ने इससे पहले फोन पर बताया था कि स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान सेहत ठीक निकली है. कहा कि पिता समेत यूपी के जितने लोग हैं, वह सब एक निजी बस से लखनऊ पहुंचाए जा रहे हैं. मंजीत ने बताया कि उम्मीद है कि शुक्रवार दोपहर बाद तक अपनी मां के पास पहुंच जाएंगे. वहीं 17 दिन की दास्तां बताते हुए मंजीत भावुक हो उठे। कई बार कहा कि उन्होंने उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन मां और पिता की दुआओं ने बचा लिया.
मंजीत ने फोन पर परिजनों को बताया कैसे टनल में गुजारे दिन
मंजीत ने फोन पर बताया कि 17 दिन वह काजू, किशमिश, चना, बिस्किट आदि खाकर रहे. चार इंच के पाइप के जरिये खाद्य पदार्थ सुरंग में भेजे जाते थे. इसके लिए बाहर से पाइप में हवा का तगड़ा प्रेशर दिया जाता था, ताकि खाद्य पदार्थ सुरंग में हम लोग तक पहुंच जाएं. मंजीत ने फोन पर बताया कि सभी साथी मुश्किल वक्त में एक परिवार के तौर पर रहे। सब एक दूसरे का हौसला बढ़ाते रहे. उन्होंने बताया कि खाने के बाद पीने के पानी के लिए टनल के पड़ोस एक पहाड़ से रिसता हुआ जल प्यास बुझाता था. जबकि, दैनिक क्रिया के लिए दूर टनल में जाते थे. जहां फंसे थे, वहां से दो किमी तक लंबी टनल थी. इसलिये वह खाली समय में वहां पर चहलकदमी करते थे. मंजीत ने बताया कि पहले तो पाइप के जरिये ही तेज आवाज में टनल के अंदर से चिल्लाकर बात करते थे. सुरंग के बाहर फोन रखा जाता था, जिससे दूसरे तरफ की आवाज पाइप के जरिये हम तक आती थी और बाद में हम लोग चिल्लाकर अपनी बात पाइप के माध्यम से सुरंग के बाहर रखे फोन को पहुंचाते थे। मंजीत ने बताया कि इसके बाद माइक्रोफोन की व्यवस्था की गई थी, जो पाइप के जरिये टनल में आता था और फिर हम लोग रेस्क्यू में लगे लोगों व परिवार वालों से बात करते थे.