लखनऊ. धनतेरस से शुरू हुआ दिवाली का पांच दिवसीय त्योहार में मंगलवार को गोवर्धन पूजा हिंदू घरों में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाई जा रही है. विशेष रूप से भगवान कृष्ण के अनुयायी जिन्हें गोवर्धन धारी के नाम से भी जाना जाता है. इसे भक्तगण अन्नकूट पूजा भी कहते हैं. ब्रज के देवालयों में भगवान को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद को परंपरागत नियमों से बनाया जाता है. छप्पन भोग में सकड़ी – अंसकडी रसोई के अनुसार अनेक व्यंजन बनाए जाते हैं ,जैसे:-लड्डू ,चूरमा, गूंजा, मालपुआ, दहीबड़ा, रसपपंची,सौंठ, बाँसोंदी, सिखरन,आलू ,रत्तालू एवं सकरपारा आदि. ब्रज संस्कृति शोध संस्थान वृन्दावन के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा बताते हैं कि अन्नकूट का अर्थ है अन्न का पर्वत ब्रज में गोवर्धन पूजा के अवसर पर कितने ही प्रकार की भोग सामग्री तैयार होती हैं कि अन्न का एक पर्वत जैसा ही निर्मित हो जाता है ! अष्टछाप के भक्तकवि कवि अपने ब्रजभाषा काव्य में कहते हैं . ‘ भयौ भात कौ कोट , ओट गिरिराज ढकानौ ‘ यानी कि केवल भात ‘चावलों ‘ का ही इतना बड़ा कोट (बड़ा ढ़ेर ) था कि जिस में गिरिराज पर्वत ही ढ़क (छुप) गया . इंद्र का मान भंग करने के लिए नटवर नागर श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को धारण किए रखा. सात दिनों तक भूखे प्यासे श्री कृष्ण को ब्रज वासियों ने आठवें दिन अपनी भावना के अनुसार छप्पन प्रकार के पकवान बनाकर भोग लगाया, तबसे अन्नकूट और छप्पन भोग की परंपरा अनवरत चली आ रही है.
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