‘घेर लेने को जब बलाएं आ गई, ढाल बनकर मां की दुआएं आ गईं’ पढ़िए मशहूर शायर मुनव्वर राणा के शानदार अल्फाज
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई.. मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई.येे अल्फाज नहीं शब्दों में पिरोए रिश्तों की मजबूत आवाज है. रचनाओं से साहित्य जगत को समृद्ध करने वाले मशहूर शायर मुनव्वर राणा हम सबको अलविदा कह गए. उनकी कलम ने साहित्य प्रेमियों का अमिट लेखनी की सौगात दी है
By Meenakshi Rai | January 15, 2024 2:36 PM
मशहूर शायर मुनव्वर राणा का 71 साल की उम्र में लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. मुनव्वर राणा पिछले कई महीनों से बीमार थे और लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. 26 नवंबर, 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्मे मुनव्वर राणा का उर्दू साहित्य और शायरी योगदान यादगार रहा है. उनकी सबसे मशहूर नज्म माँ थी, जिसमें पारंपरिक ग़ज़ल शैली में माँ के गुणों को बताया गया था. मुनव्वर राणा को कई सम्मान मिले. उनको काव्य संग्रह शाहदाबा के लिए 2014 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला थ उन्हें मिले अन्य पुरस्कारों में अमीर खुसरो पुरस्कार, मीर तकी मीर पुरस्कार, गालिब पुरस्कार, डॉ जाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार भी शामिल हैं .
मां की ममता में लिपटी लेखनी जब कागज पर उतरती थी वो दिल को छू जाती थी. मुनव्वर राना ने अपने प्रेमियों को दिल छू लेने वाली कई ग़ज़लें, नज़्में, कविताए और शायरी की सौगात दी है. भले वो हमारे बीच नहीं लेकिन उनके जज्बात उनके अल्फाजों के जरिए हमेशा दिलों पर राज करते रहेंगे. यहां पढ़े उनकी कुछ मशहूर रचनाएं