सोशल मीडिया पर विज्ञापन के जरिए मिली जानकारी
मथुरा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेश कुमार पांडेय ने इसके बाद एएचटीयू प्रभारी कर्मवीर सिंह ने साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया आईडी का डाटा निकलवाया और विज्ञापन में दिए गए मोबाइल नंबरों की लोकेशन ली. इसके बाद योजनाबद्ध तरीके से गिरोह से बच्चा खरीदने के लिए संपर्क करते हुए जाल में फंसाया. एएचटीयू प्रभारी कर्मवीर सिंह ने खुद को दिल्ली निवासी बताया. करीब एक सप्ताह तक गिरोह के बारे गहरी छानबीन करने के बाद पुलिस को अहम जानकारी मिली. इसके बाद गिरोह के लोगों के मथुरा पहुंचने पर उन्हें धर दबोचा गया. उनके पास से एक नवजात बच्ची बरामद हुई.
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कथावाचक बनकर गिरोह चला रहा मुख्य आरोपी
पुलिस के मुताबिक आरोपियों की पहचान श्याम पुत्र गिर्राज किशोर निवासी डी महावीर नगर रामबाग, धर्मेंद्र शर्मा पुत्र नत्थीलाल शर्मा निवासी गांव बांस बादाम एत्मादपुर, और महिला रितु के तौर पर हुई है. गिरोह का सरगना धर्मेंद्र बताया जा रहा है. पुलिस पूछताछ में धर्मेंद्र ने बताया कि वह और उसके साथी अब तक 25 बच्चों का सौदा कर चुके हैं. अपने साथ लाई बच्ची को आगरा के बिचपुरी स्थित सरकारी अस्पताल में भर्ती प्रसूता से लिया था. धर्मेंद्र समाज में खुद को कथावाचक के तौर पर दर्शाता है, जिससे लोगों को उस पर किसी तरह का शक नहीं हो. वह काफी समय से इस काम को कर रहा है.
अस्पताल की नर्स और अन्य लोगों से मिलती है जानकारी
पुलिस पूछताछ में सामने आया है कि गिरोह का संपर्क नर्स और आशाओं से रहता है. जहां भी बच्चे का जन्म होता है, गिरोह के सदस्य उसके परिजनों से संपर्क करते हैं. ऐसे दंपती, जिनको कई बेटे या बेटियां हो चुकी हैं. उनको लालच में फंसाते हैं और बच्चा खरीद लेते हैं. इसमें आशा और नर्स को सूचना देने के बदले में रकम दी जाती है. इस खुलासे के बाद पुलिस अब पता लगाने में जुट गई है कि आखिर कितने बच्चे इस गिरोह ने चुराए या खरीदे. ये ये बच्चे किन लोगों के थे और उनको कहां बेचा गया.
बेचे गए बच्चों की जानकारी जुटाएगी पुलिस
इसके साथ ही गिरोह से जुड़े अन्य लोगों के बारे में भी जांच पड़ताल की जाएगी. इन बिंदुओं के आधार पर विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल की जाएगी. अभी तक की पड़ताल में सामने आया है कि गिरोह के सदस्य ऐसे लोगों को निशाना बनाते थे, जिनकी औलाद नहीं है. इस तरह के जरूरतमंद लोगों को बच्चे बेचे जाते थे. जानकारी में सामने आया है कि गैंग दो लाख रुपए बेटी के लिए और चार लाख रुपए बेटे के लिए वसूलता है, जबकि वे इन नवजातों को 20 से 50 हजार रुपए में खरीदते हैं. मुनाफे की रकम को गिरोह के सदस्य आपस में बांट लेते थे. पुलिस इन्हें नवजातों के बारे में जानकारी देने वाली आशा कार्यकर्ता और नर्स की भी जानकारी करने में जुटी है.