UP Election 2022: अधूरी मेहनत, व्यस्त नेता और उम्मीद से लबरेज कांग्रेस को उत्तर प्रदेश चुनाव में मिलेगी जीत?
UP Election 2022: अधूरी मेहनत, व्यस्त नेता और उम्मीद से लबरेज उत्तर प्रदेश कांग्रेस को क्या आगामी विधानसभा चुनाव में जीत मिलेगी, यह बड़ा सवाल है. देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट...
By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2021 5:56 PM
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के किसी भी बाशिंदे से अगर कांग्रेस के बारे में सवाल करिये तो सीधा सा जवाब मिल जाता है कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कभी अपने पसंदीदा सूबे और राजनीतिक गढ़ में आज कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को उनका नामलेवा ढूंढना मुश्किल बना हुआ है. प्रियंका गांधी को प्रभार मिलने के बाद भी अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस कुछ अलग नहीं कर पायी है. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनावों में अब पिछले चुनाव जितने वोट या सीटें मिल जाए, जैसा लक्ष्य भी कांग्रेस के लिये कठिन है. लखीमपुर मामले में राहुल गांधी के उतर आने और प्रियंका के नजरबंद होने के बाद कांग्रेस की उम्मीदें जरूर जगी हैं, लेकिन कदम-कदम पर कुछ न कुछ ऐसा भी हो रहा है, जिससे उनकी उम्मीदों पर काले बादल छाने लगते हैं.
वाराणसी की रैली और रणनीतिकारों के निर्णय
अंतिम समय में बदल गया रैली का नाम
10 अक्टूबर को वाराणसी के रोहनिया इलाके में स्थित जगतपुर में हुई प्रतिज्ञा रैली का नाम एक दिन पहले अंतिम समय में बदल कर किसान रैली कर दिया गया. ऐसे में पिछले जितनी भी बैनर एवं पोस्टर स्थानीय नेताओं द्वारा छपवाये गए थे, वे सब व्यर्थ हो गए. आखिरी समय में नाम बदलने की योजना के पीछे की सोच जिसकी भी थी, उन्होंने यह नहीं सोचा कि किसी भी राजनीतिक अभियान का अंतिम समय में नाम बदल दिये जाने के नुकसान क्या हो सकते हैं.
उत्साही कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक पोस्टर रैली के एक दिन पहले जारी किया, जिसमें प्रियंका गांधी को बतौर देवी दर्शाया गया था. इस पोस्टर के लगते ही भाजपा के नेताओं ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेना शुरू किया और धीरे-धीरे यह मामला उल्टा पड़ने लगा. रैली के दिन अखिल भारतीय संत समिति एवं गंगा महासभा के राष्ट्रीय महासचिव जितेंद्रानंद सरस्वती ने भी प्रियंका गांधी के दर्शन-पूजन एवं पोस्टर इत्यादि की भर्त्सना कर दी, लेकिन देर शाम तक पूर्वांचल के किसी भी कांग्रेस नेता ने प्रियंका के दर्शन पूजन पर मजबूती से बयान नहीं दिया.
कांग्रेस के भीतरखाने में इस बात की भी चर्चा होती रही कि इस रैली को नवरात्र के दौरान पूर्वांचल में क्यों आयोजित किया गया? गौरतलब है कि पूर्वांचल में शक्ति उपासना एवं देवी उपासना गंभीरता से होती है. ऐसे में अधिकांश लोग व्रत, उपवास का पालन करते हैं. आम जनमानस इस समय काल में छोटे काम धंधे करके कुछ धन अर्जित करता है और किसी भी वर्ग के व्यक्ति को फुरसत नहीं होती है. ऐसे में स्थानीय नेताओं को भीड़ जुटाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी है. जहां एक तरफ इस रैली में एक लाख से अधिक लोगों को लाने का लक्ष्य था, वहीं मौके पर कुछ हजार लोग ही जुट पाए थे.
रविवार को इस रैली के आयोजन का नुकसान यह हुआ कि कांग्रेस के छात्र प्रकोष्ठ एनएसयूआई को नगर के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों एवं एनएसयूआई के कॉडर को रैली के लिये ले जाने में भारी मेहनत करनी पड़ी. दरअसल, रविवार को कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तिथि पहले से तय थी. ऐसे में जिन विद्यार्थियों को इन परीक्षाओं में बैठना था, वे कदाचित रैली में नहीं आ सकते थे. अधिकांश शैक्षिक संस्थानों में नवरात्र की छुट्टी हो जाने के कारण छात्र अपने गांव गए हुए थे.
एनएसयूआई के गढ़ से नहीं आ पायी मन-मुताबिक संख्या
वाराणसी का सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय एनएसयूआई का पूर्वांचल में गढ़ माना जाता है और यहां हर वर्ष छात्र संघ चुनावों में एनएसयूआई के प्रत्याशियों की ही जीत होती है. नवरात्र के समय रविवार को हुई रैली में इस संस्थान का दमखम नहीं दिखा, जिसकी प्रमुख वजह यह थी कि इस विश्वविद्यालय के लगभग सभी छात्र नवरात्र में कठिन व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं. साथ ही उन्हें विभिन्न यज्ञ एवं अनुष्ठानों में उपस्थित रहना होता है.
विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्र एवं शोध छात्र नवरात्र में वाराणसी के महत्वपूर्ण मंदिरों एवं धार्मिक संस्थानों के आयोजन में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में इस विश्वविद्यालय से जो हजारों की संख्या रैली में आ सकती थी, वह घट कर कुछ सैकड़े में परिवर्तित हो गई. कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि एनएसयूआई की स्थानीय यूनिट को लगभग 10 हजार लोगों को भीड़ जुटाने का लक्ष्य मिला था जो पूरा नहीं हो पाया.