Supaul News : संतान की दीर्घायु को माताएं करेंगी जिउतिया व्रत, बाजार में बढ़ी चहल-पहल

जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए सोमवार को नहाय-खाय होगा. मंगलवार से 36 घंटे का उपवास शुरू होगा. उदया तिथि के अनुसार व्रती बुधवार को 24 घंटे का उपवास कर सकती हैं. व्रत को लेकर दुकानें पूजन सामग्री से पटी हैं. मड़ुआ का आटा खरीदने के लिए व्रती बाजार घूम रही हैं.

By Sugam | September 22, 2024 7:04 PM
an image

Supaul News : सुपौल. संतान की दीर्घायु, रक्षा व उनके सुखी जीवन के लिए महिलाएं हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर जिउतिया व्रत रखती हैं. इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं. जिले में यह पर्व सोमवार से नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो गया है. मंगलवार को महिलाएं निर्जला व्रत प्रारंभ करेंगी, जो गुरुवार की संध्या पूजा के उपरांत संपन्न होगा. इधर पर्व का असर बाजार में भी देखने को मिला. बाजार में जिउतिया पर्व की पूजन सामग्री सहित फल, दूध-दही, साग-सब्जी सहित मछली की दुकानों पर लोगों की भीड़ लगी रही. इस दौराना लोगों ने मिथिला में प्रसिद्ध मड़ुआ के आटा की भी खरीदारी की. गौरतलब है कि जितिया पर्व के प्रारंभ में मड़ुआ की रोटी और मछली खाने की परंपरा है. वहीं व्रत शुरू करने से पहले ओटघन करने का भी रिवाज है. जहां लोग दही-चूड़ा भी खाते हैं. इस कारण बाजार में दूध-दही की बिक्री जोरों पर रही. सुबह से ही दूध के काउंटर पर लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गयी थी. सुपौल जिले भर में जीउतिया को लेकर तैयारी जोरों पर है.

व्रत से जुड़ी है कई परंपरा

जिउतिया को सबसे कठिन पर्व माना जाता है. इस दौरान महिलाएं अपने संतान की मंगल कामना हेतु निर्जला व्रत धारण करती हैं. इसमें वह 24 घंटों तक अन्न-जल का ग्रहण नहीं करती है. नहाय-खाय से शुरू हुई इस पर्व में महिलाएं सुबह-सुबह स्नान कर अपने घर व मंदिरों में पूजा-पाठ करती हैं. परंपरा के अनुसार, इस दिन लोग मड़ुआ की रोटी और मछली खाते हैं. वहीं नोनी का साग भी खाने की परंपरा है. रात में भी भगवान के आगे कई प्रकार के फल व दूध-दही का भोग लगाते हैं. इसे मिथिला में नेवैद्य कहा जाता है. पुन: सुबह में ओटघन करने का भी प्रावधान हैं. जहां परिवार के सभी सदस्य सूर्योदय से पहले उठकर चूड़ा-दही को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. इसके बाद निर्जला व्रत प्रारंभ हो जाता है. इस दौरान महिलाएं नारियल व साग सहित अन्य फलों को डाली में सजाती हैं और अरुआ, मान के पत्ते व लाल रंग के कपड़े से उस डाली को ढक दिया जाता है. इसके बाद इस पर्व से जुड़ी कथा भी सुनतीहैं. इसमें चील और सियार की कथा सुनायी जाती है. व्रत के दूसरे दिन व्रती के पुत्रों द्वारा डाली के लाल रंग के कपड़े को हटाया जाता है. इसके बाद पूजा-पाठ कर महिलाएं प्रसाद से पारण कर अपना व्रत खोलतीहैं.

कठिन तपस्या है जीवित्पुत्रिका व्रत : आचार्य धर्मेंद्रनाथ

इस बार ओटघन 23 सितंबर को रात्रि के अंत में अर्थात सूर्योदय से पहले होगा. जबकि जितिया व्रत का पारण 25 सितंबर बुधवार को दिन के अंतिम भाग अर्थात संध्या काल 05 बजकर 05 मिनट के उपरांत होगा. इस बार खरजीतिया का भी दुर्लभ संयोग है.खरजितिया लगने पर ही स्त्रियां पहली बार व्रत करती हैं. इसके लिए बहुत दिनों तक महिलाएं इंतजार में रहती हैं. गोसपुर निवासी मैथिल पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथमिश्र ने कहा कि मंगलवार या शनिवार को यदि अष्टमी व्रत होता है, तो वह खरजीतिया कहलाता है. इसमें पहली बार महिलाएं जितिया व्रत शुरू करती हैं.खरजीतिया लगने पर व्रत शुरू करने वाली महिलाओं के संतान की अकाल मृत्यु नहीं होती है. यह व्रत स्त्रियों के लिए किसी तपस्या से कम नहीं है. इस व्रत में जल तक लेने का विधान नहीं है. व्रत के दौरान संकट आने पर या विशेष परिस्थिति होने पर जल, शर्बत, देसी गाय का दूध या जूस आदि ग्रहण कर व्रत पूर्ण किया जा सकता है. यह व्रत स्त्रियां अपनी सभी संतानों को समस्त बाधाओं, संकटों से मुक्त करने व रक्षा के लिए करती हैं. इस व्रत के संबंध में अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं. आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में प्रदोष काल में जीमुतवाहन भगवान की पूजा करने का विधान है.

जिउतिया व्रत का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष अष्टमी तिथि 24 सितंबर को सूर्यास्त से आधा घंटा पहले से शुरू होकर 25 सितंबर के अपराह्न 05 बजकर 05 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में अधिकांश जगहों पर महिलाएं अष्टमी तिथि की सुबह से ही यह व्रत प्रारंभ कर रही हैं. जबकि कुछ जगहों पर उदया तिथि में बुधवार को व्रत रख कर पर्व मनाया जायेगा.

व्रती सुनती हैं जीमुतवाहन की कथा

आंगन में पोखर बना पाकड़ का पौधा लगाएं.उसमे गोबर माटी से बनी चील डाली पर तथा सियार को वृक्ष के नीचे धोधर में रखें. मध्य में जल से भरा कलश रखें. उस कलश पर कुश से निर्मित जीमुतवाहन भगवान की प्रतिमा स्थापित कर अनेक रंगों का पताका लगाना चाहिए. कुश तिल जल लेकर संकल्प आदि कर अनेक पदार्थों से पूजन करें. इसके बाद जीमुतवाहन भगवान की कथा श्रवण करनी चाहिए.जीमुतवाहन व्रत उपवास में वंशवृद्धि के लिए बांस के पतों से पूजन करने की परंपरा है.मड़ुआ का रोटी खाने से प्रोटीन और विटामिन के साथ साथ आयरन प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है. इससे व्रती को ऊर्जा मिलती है.

संबंधित खबर और खबरें

यहां सुपौल न्यूज़ (Supaul News) , सुपौल हिंदी समाचार (Supaul News in Hindi), ताज़ा सुपौल समाचार (Latest Supaul Samachar), सुपौल पॉलिटिक्स न्यूज़ (Supaul Politics News), सुपौल एजुकेशन न्यूज़ (Supaul Education News), सुपौल मौसम न्यूज़ (Supaul Weather News) और सुपौल क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर .

होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version