राकेश वर्मा, बेरमो, कोयला मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए कोल इंडिया का उत्पादन लक्ष्य 863 मिलियन टन तय किया है. 895 मिलियन टन कोयला डिस्पैच और 2100 मिलियन क्यूबिक मीटर ओवर बर्डन (ओबी) निकासी का लक्ष्य है. बीसीसीएल को 46, इसीएल को 58 और सीसीएल को 105 मिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य दिया गया है. वित्त वर्ष 2027-28 तक कोल इंडिया को उत्पादन क्षमता एक बिलियन (अरब) टन करने के लिए लगभग 20 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता पड़ेगी. सीसीएल को भी आने वाले दो-तीन वर्षों में 135 मिलियन टन उत्पादन क्षमता हासिल करने के लिए 21 सौ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता पड़ेगी.
जानकारी के अनुसार, कोल इंडिया ने दो चरणों में 49 फस्ट माइल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स (संपर्क परियोजनाओं) में वर्ष 2023-24 तक लगभग 14,200 करोड़ रुपये का निवेश करने का लक्ष्य तीन वर्ष पहले ही निर्धारित किया था. फस्ट माइल कनेक्टिविटी का मतलब खदान से डिस्पैच प्वाइंट (रवानगी वाले बिंदु) तक कोयला ले जाने के लिए परिवहन सुनिश्चित करना है.
एन्यूटी स्कीम का विरोध कर रहे हैं विस्थापित
दो वर्ष पहले कोल इंडिया ने एन्यूटी स्कीम लाया. इसमें विस्थापितों को जमीन के बदले नौकरी नहीं देकर राशि देने का प्रस्ताव है. इसका विरोध विस्थापित कर चुके हैं. विस्थापित नेताओं का कहना है कि कोल इंडिया को अपनी आरआर पॉलिसी को ठीक करना होगा. जमीन लेने के नियम को थोड़ा लचीला बनाने की जरूरत है. ओडिसा के तर्ज पर आरआर पॉलिसी को दुरुस्त करना चाहिए.
एमडीओ मॉडल से उत्पादन बढ़ाने पर दिया जा रहा जोर
कोयला उत्पादन बढ़ाने और आयात पर निर्भरता घटाने की योजना के तहत कोल इंडिया माइन डेवलेपर एंड ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल पर जोर दे रही है. एमडीओ के माध्यम से खनन के लिए चिह्नित परियोजनाओं में 12 खुली खदानें तथा तीन भूमिगत खदानें शामिल हैं. अनुबंध की अवधि 25 साल होगी. यदि खदानों की क्षमता इससे कम वर्ष की है तो वहां अनुबंध जीवन काल के लिए होगा. कोल इंडिया की हर कंपनी में एमडीओ आने के बाद जमीन का अधिग्रहण कोल इंडिया करेगी. कोयला उत्पादन से लेकर डिस्पैच तक का सारा काम एमडीओ के माध्यम से होगा. काम के एवज में जो पैसा आयेगा, वह कंपनी के नाम से आयेगा तथा कंपनी एमडीओ को बिडिंग की दर से राशि का भुगतान करेगी. फिलहाल कोल इंडिया की कंपनी सीसीएल की नयी परियोजनाओं चंद्रगुप्त और संघमित्रा माइंस के अलावा कोतरे-बंसतपुर-पचमो को एमडीओ के माध्यम से चलाया जा रहा है. इसके अलावा तीन भूमिगत खदान पिपरवार, परेज इस्ट सहित एक अन्य को भी एमडीओ से चलाया जायेगा. वहीं झारखंड में चार कोयला खदानों को सरकार ने रेवन्यू शेयरिंग में निजी मालिकों को दिया है.
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