सेक्टर नौ स्थित शिव शक्ति कॉलोनी निवासी संतोष का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है. पिता के देहांत के बाद परिवार की जिम्मेदारी संतोष पर आ गयी तो पहले वीडियो रिकॉर्डिंग का व्यवसाय किया. कोरोना वायरस के कारण इस बार काम बंद रहा तो संतोष के सामने परिवार चलाना मुश्किल हो गया. इसके बाद वह ठेका मजदूरी करने को विवश हैं.
संतोष ने महज 10 साल की उम्र से फुटबॉल खेलना शुरू किया था. घर के सामने के मैदान में फुटबॉल खेल कर पांच साल के अंदर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक के टूर्नामेंट में प्रतिभा दिखायी. वर्ष 1995 में हुए सुब्रतो मुखर्जी स्कूली टूर्नामेंट की विजेता उच्च विद्यालय सेक्टर टू डी बोकारो की टीम का संतोष ने प्रतिनिधित्व किया. इसके बाद इजराइल में हुए नाटान्या स्कूल फुटबॉल चैंपियनशिप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. इसमें भारतीय टीम तीसरे स्थान पर रही थी.
पांच साल के छोटे कैरियर में संतोष कुमार ने कई मौकों पर इंटर स्टील प्लांट चैंपियनशिप में बोकारो स्टील प्लांट की टीम का, जिले की टीम का और जिले की स्कूली टीम का कई बार प्रतिनिधित्व किया. लेकिन, परिवार की बढ़ती हुई जिम्मेदारियों और नियोजन नहीं मिलने के कारण संतोष को वर्ष 2000 में फुटबॉल को अलविदा कहना पड़ा. जिला के खेल प्रेमियाें और फुटबॉल संगठनों का कहना है कि यदि राज्य में स्पष्ट खेल नीति होती तो संतोष को यह दिन नहीं देखना पड़ता. ऐसा ही रहा तो झारखंड के खेल और खिलाड़ियों को ऐसे ही दिन देखने पड़ेंगे. कोई भी खिलाड़ी खेल को कैरियर के रूप में अपनाना नहीं चाहेगा.
मुख्य उपलब्धियां
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वर्ष 1995 में हुए सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल चैंपियनशिप की विजेता टीम उच्च विद्यालय टू डी बोकारो टीम के सदस्य
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वर्ष 1997 में इजराइल में हुए नाटन्या स्कूल फुटबॉल चैंपियनशिप में तीसरे स्थान पर रही भारतीय टीम के सदस्य
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सत्र 1999 -2000 में केरल में हुए संतोष ट्रॉफी में भाग लेने वाली बिहार टीम के सदस्य