राकेश वर्मा, बेरमो : बोकारो जिले के गोमिया में स्थित इंडियन एक्सप्लोसिव बारूद कारखाना को ओरिका के नाम से भी जाना जाता है. एक तरफ दामोदर और दूसरी ओर कोनार नदी के बीच पहाड़ों से घिरा आइइएल गोमिया का यह बारूद कारखाना अपने उत्पादों के चलते प्रसिद्ध है. पांच नवंबर 1958 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने ट्रेन मार्ग से यहां पहुंच कर इस कारखाना का उद्घाटन किया था. यहां से कोयला, बॉक्साइट, आइरन, लिग्नाइट आदि खदानों के लिए बारूद की सप्लाई की जाती है. इस दृष्टिकोण से यह बारूद कारखाना संवेदनशील है. यही कारण है कि बुधवार को मॉक ड्रिल के इस स्थान का भी चयन किया गया. वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय भी बहुत कम संसाधनों के बावजूद यहां मॉक ड्रिल किया गया था. यहां के कई लोगों के जेहन में आज तक वह जिंदा है. उस वक्त युद्ध के दौरान पूरे गोमिया में 15 दिनों का ब्लैकआउट रहा था. सड़कें सुनसान हो जाती थी. क्षेत्र के लोग भी भयभीत थे. मॉक ड्रिल के माध्यम से लोगों को युद्ध के दौरान बरतीं जाने वाली सावधानियों से अवगत कराया गया था. आज 54 साल बाद जब मॉक ड्रिल हुआ तो लोग उत्सुक दिखे. प्रशासन के निर्देशों का पालन किया. क्षेत्र के कई बुजुर्गों ने बताया कि वर्ष 1971 के मॉक ड्रिल के समय इस कारखाना में स्थाई, कैजुअल और ठेका मजदूरों की संख्या पांच हजार से अधिक थी. अभी कर्मियों की संख्या 700 से 800 है. लोग कहते हैं कि अगर भूलवश भी दुश्मनों के किसी हमले का यह कारखाना शिकार हुआ तो इसके घातक परिणाम हो सकते हैं. इसलिए सुरक्षा के दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण माना जाता है.
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