बेरमो. एक समय बेरमो में कोयला ट्रांसपोर्टिंग के लिए आज की तरह इतने हाइवा ट्रक नहीं हुआ करते थे. कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के पूर्व खानगी मालिकों के समय कोयला खदानों से कोयला ढुलाई के लिए इक्का-दुक्का ही ट्रक होते थे. उस वक्त एशिया महादेश की पहली कोकिंग कोल वाशरी करगली वाशरी में बनी. यहां से कोयला लोहे के रोपवे के सहारे ट्रॉली के माध्यम से बोकारो थर्मल स्थित डीवीसी के ए पावर प्लांट पहुंचाया जाता था. इस प्लांट में डीवीसी की एकमात्र कैप्टिव कोल माइंस बेरमो स्थित डीवीसी बेरमो माइंस से भी ट्रॉली से कोयला जाता था. घुटियाटांड़ से करगली कोलियरी के चानक व चलकरी कोलियरी में रोपवे से बालू जाता था. अब कोयले की मांग भी पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गयी है. बेरमो स्थित पावर प्लांटों के अलावा देश के कई राज्यों के पावर प्लांटों में रेलवे रैक से यहां से कोयले को भेजा जाता है. साथ ही सड़क मार्ग से भी कोयला ट्रांसपोर्टिंग काफी बढ़ गयी है. एक आकलन के अनुसार पूरे बेरमो में पांच हजार से ज्यादा हाइवा ट्रांसपोर्टिंग में लगे हुए हैं. पहले घुटियाटांड़ बालू बैंकर से ट्रॉली से रोपवे के जरिये बालू चलकरी माइंस भेजा जाता था. इस बालू का उपयोग भूमिगत खदानों से कोयला निकासी के बाद उसे भरने (स्टोकिंग) के लिए किया जाता था.
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