संवाददाता, बेरमो, इंटक के तीन बड़े नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह, चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे तथा ओपी लाल झारखंड का निधन कोयला मजदूरों के लिए अपूरणीय क्षति है. तीनों न सिर्फ झारखंड, बल्कि कोल इंडिया में मजदूर राजनीति के एक मजबूत स्तंभ थे. एक समय राजेंद्र प्रसाद सिंह और ददई दुबे के बीच गाढ़ी दोस्ती थी. कोल इंडिया में जेबीसीसीआइ आठ तक ददई दुबे जी संजीवा रेड्डी और राजेंद्र प्रसाद सिंह के साथ रहे. वर्ष 2004 के लोस चुनाव में धनबाद सीट से ददई दुबे को कांग्रेस का टिकट मिला तो उन्होंने कहा था कि मेरे स्टार प्रचारक राजेंद्र प्रसाद सिंह हैं. जब भी बेरमो आते तो मीडिया से बातचीत में कहते थे कि राजेंद्र बाबू मेरे अजीज मित्र हैं. वर्ष 2001 में रांची स्थित एचइसी में झारखंड प्रदेश इंटक का सम्मेलन हो रहा था, उस वक्त ददई दुबे और श्री रेड्डी के बीच विवाद शुरू हुआ. इसके बाद ददई दुबे ने फेडरेशन और आरसीएमएस में अपना समानांतर संगठन बनाना शुरू किया. दोनों गुट के नेताओं के बीच विवाद इतना गहरा गया था कि कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को कई बार इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा. केंद्रीय नेतृत्व ने कई बार समझौता भी कराया. बाद के वर्ष में मामला सर्वोच्च न्यायालय के अलावा श्रम मंत्रालय, सीएलसी और सॉलिसिटर जेनरल तक गया. विवाद के कारण इंटक जेबीसीसीआइ-10 में शामिल नहीं हो सकी. वर्ष 2001 में संजीवा रेड्डी व राजेंद्र प्रसाद सिंह से ददई दुबे अलग हुए थे, उसके बाद कई नेताओं ने नाता जोड़ा था. इनमें पूर्व सांसद प्रदीप बालमुचू, फुरकान अंसारी, पूर्व विधायक ओपी लाल, नियल तिर्की, पूर्व सांसद तिलकधारी सिंह, एनजी अरुण, सुरेंद्र कुमार पांडेय, एसएन झा, अताउल्लाह, पूर्व विधायक कृपाशंकर चटर्जी, पूर्व विधायक इजराइल अंसारी, छविनाथ सिंह, वरुण कुमार सिंह, उदय प्रताप सिंह, देवतानंद दुबे आदि थे. बाद में ओपी लाल सहित कई लोग फिर से राजेंद्र प्रसाद सिंह के साथ हो गये. राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र अनूप सिंह ने संसदीय व श्रमिक राजनीति संभाल ली. अब देखना होगा कि ददई दुबे के निधन के बाद संगठन का नेतृत्व किसके हाथ में होगा ?
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