आंचल की छांव में महफूज रह जाएगा बाली भोजना चावल, लुप्तप्राय धान की इस किस्म को नया जीवन दे रहीं कोल्हान की महिलाएं
लुप्तप्राय धान की किस्म बाली भोजना को कोल्हान की महिलाओं ने नया जीवन दिया है. घाटशिला में अब करीब तीन सौ किसान बाली भोजना की खेती करते हैं.
By Prabhat Khabar Digital Desk | January 5, 2025 5:00 AM
घाटशिला से लौटकर संजय मिश्र: गायब होने की कगार पर पहुंच चुकी धान की एक किस्म बाली भोजना को कोल्हान की महिला किसानों की मदद से एक बार फिर नया जीवन मिल गया है. गुणों की खान वाली धान की इस किस्म का नाम है बाली भोजना. 1970 के आसपास कोल्हान के घाटशिला, पोटका, राजनगर में पोष्टिक गुणों से भरपूर, कम पानी, कम खाद, बगैर कीटनाशक धान की किस्म बाली भोजना की खेती भरपूर होती थी. धान उबालने के बाद घर के ढेंकी में कूट कर चावल बना लिया जाता था. 1970 के बाद हरित क्रांति के दौर में हाइब्रिड धान के कारण यह चावल खेतों में गायब हो गया.
तीन सौ किसान करते हैं बाली भोजना की खेती
समय बीता. सन 2020 में जैविक खेती के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सीडब्लूएस (सेंटर फॉर सोलिडेटरी) के एक साथी पलाश भूषण चटर्जी को जगन्नाथपुर की एक संताली युवती आइना मुरमू के जरिए पता चला कि घाटशिला के मुराकाटी गांव की एक वृद्ध महिला धान की एक अलग किस्म उपजाती है. इस किस्म का अध्ययन करने पर पलाश भूषण चटर्जी ने पाया कि हाइब्रिड धान के मुकाबले यह देसी धान कई मायनों में यहां के किसानों के लिए लाभदायक है. फिर महिला किसानों को धान की इस किस्म को लगाने के लिए प्रेरित करने का काम अन्नपूर्णा महिला किसान समिति के बैनर तले शुरू किया गया. अब स्थिति यह है कि करीब तीन सौ किसान बाली भोजना की खेती करते हैं.
हौसलों को ऐसे मिला पंख
सीडब्लूएस ने बाली भोजना को परंपरागत रूप से ही बाजार में लाने के लिए एक और काम किया. आइआइटी खड़गपुर की मदद से बिजली से चलने वाला दो ढेंकी इन महिला किसानों को उपलब्ध करा दिया. इसके बाद तो इनके हौसलों को पंख मिल गया. महिला किसान गंधेश्वरी ने सबसे पहले अपने टांड़, जिसे स्थानीय बोली में बाईद खेत बोलते हैं, इसे लगाया था. फसल अच्छी हुई.
बिजली वाली ढेंकी से बढ़ी आमदनी
बाली भोजना धान की खेती में आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत की तरह पौष्टिक चावल तो मिलता है. साथ ही धान का पुआल लंबा होता है. मवेशियों के लिए अच्छा चारा है और घर छाहने में भी उपयुक्त है. आइना बताती है कि बिजली वाली ढेंकी आने से उनकी आमदनी बढ़ गयी है. पहले दिन भर चार महिलाएं मिल कर भी 20 से 30 किलो धान कूट पाती थी. अब रोजाना 50 किलो चावल तैयार हो रहा है. रांची में चल रहे सरस मेला में लगे स्टॉल से इस साल अब तक करीब दो क्विंटल चावल बिक गया है.
खरीददार खुशी-खुशी देते हैं दाम
रांची के मोहरबादी में सरस मेला में बाली भोजना चावल बेच कर लौटे कार्तिक ने बताया कि देसी और ढेंकी कूटा चावल बोलने से ही खरीददार इसे खरीद लेते हैं. यह चावल वहां 120 रुपये किलो बिका है. स्टॉल पर उसने आइआइटी खड्गपुर की ओर से जारी वह सर्टिफिकेट भी लगा दिया था, जिसमें इस चावल के पौष्टिक गुणों का वैज्ञानिक अध्ययन है.
कृषि विभाग भी उत्साहित
महिलाओं के इस प्रयास से कृषि विभाग भी उत्साहित है. हाइब्रिड के बदले देसी धान की इस फसल के नतीजों का अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट तैयार की गयी है. खरीफ के अगले सीजन से इस धान को भी बढ़ावा देने की योजना पर काम किया जा रहा है.
यहां पूर्वी सिंहभूम न्यूज़ (East Singhbhum News) , पूर्वी सिंहभूम हिंदी समाचार (East Singhbhum News in Hindi), ताज़ा पूर्वी सिंहभूम समाचार (Latest East Singhbhum Samachar), पूर्वी सिंहभूम पॉलिटिक्स न्यूज़ (East Singhbhum Politics News), पूर्वी सिंहभूम एजुकेशन न्यूज़ (East Singhbhum Education News), पूर्वी सिंहभूम मौसम न्यूज़ (East Singhbhum Weather News) और पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र की हर छोटी और बड़ी खबर पढ़े सिर्फ प्रभात खबर पर .