गालूडीह. झारखंड की जीवनरेखा सुवर्णरेखा नदी मार्च महीने में मंद पड़ गयी है. नदी नाले जैसी बह रही है. यह स्थिति भविष्य में भयावह जल संकट की ओर इशारा कर रही है. दुनिया भर के पर्यावरणविद् पानी की कमी को लेकर चिंतित हैं. जल की मांग और आपूर्ति में असंतुलन से जल संकट बढ़ रहा है. ऐसे में हमें पर्यावरण संरक्षण के साथ सतत विकास के मॉडल अनुसार, पृथ्वी पर मौजूद सभी स्रोत का नीतिपूर्ण तरीके से आवश्यकता के हिसाब से उपयोग करना होगा. हम नहीं चेते, तो भविष्य की पीढ़ियां बूंद-बूंद पानी को तरसेंगी.
जलस्रोत बचाने और संरक्षण का संकल्प लें
सोख्ता बनाकर वर्षा का पानी बचायें
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
– एन सलाम, सह निदेशक, दारीसाई क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र————————————-वर्षा के पानी को हम रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से बचा सकते हैं. बरसात में डोभा और तालाब के माध्यम से संचय कर सकते हैं. किसान इसका उपयोग भविष्य में रबी में खेती के लिए कर सकते हैं. उस पानी में मछली व बत्तख पालन आदि कर सकते हैं. विभिन्न फसल और सब्जियां उगा सकते हैं. किसान अगर टपक सिंचाई प्रणाली से सब्जियों में सिंचाई करते हैं, तो 30 से 70 प्रतिशत तक पानी बचत कर सकते हैं.
—————————————–जल संसाधन सीमित और दुर्लभ है. पानी घट रहा है. भविष्य में पानी की कमी एक बड़ा संकट बन सकता है. हमें वर्षा जल संचय के स्थायी तरीकों को अपनाना चाहिए. वर्षा जल संरक्षण न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, बल्कि शहरी क्षेत्रों के लिए जरूरी है. जल जीवन है. वन दोनों का आपस में संबंध है. जीने के लिए जल जरूरी है.
———————————-वर्षा जल संचयन की प्रक्रिया में छत पर जमा वर्षा के जल को धरातल यानी जमीन पर लाया जाता है. उसे टैंकों, तालाबों, कुओं, बोरवेल, जलाशय आदि में इकट्ठा किया जाता है. वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए रिचार्ज गड्ढों का निर्माण किया जाता है. गड्ढों को कंकर, बजरी, मोटे रेत से भरा जाता है. वे अशुद्धियों के लिए एक फिल्टर की तरह काम करता है.
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