घाटशिला.
झारखंड की विलुप्त हो रही लोक कला को सहेजने में पूर्वी सिंहभूम के ग्रामीण इलाकों में रचे-बसे 20 हजार लोक कलाकार जुटे हैं. खासकर झारखंड मानभूम लोककला संस्कृति गराम-धराम झुमुर आखड़ा से जुड़े पांच हजार लोक कलाकार झारखंडी लोक कला को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. 1750 में लोक कला के जनक माने जाने वाले बरजू राम तांती ने इसे मान्यता दिलाने की लंबी लड़ाई लड़ी थी. उन्हें आज भी लोक कलाकार याद करते हैं और उनकी विरासत को बचाये रखने के लिए झारखंड विस में उनकी मूर्ति स्थापित करने की मांग के साथ झारखंड में लोक कला के लिए एकेडमी गठित करने की मांग उठाते रहे हैं. इतना ही नहीं केजी से पीजी तक लोक कला की पढ़ाई सुनिश्चित करने की मांग सरकार से कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल और ओडिशा की तर्ज पर झारखंड के लोग कलाकारों को परिचय पत्र देने, मासिक शिल्पी भत्ता देने, जातीय संगीत को बढ़ावा देने, लोक कला के जनक बरजू राम तांती को सम्मान देने की मांग लेकर लोक कलाकार संघर्षरत हैं. झारखंड मानभूम लोक कला संस्कृति गराम-धराम झुमुर आखड़ा के पूर्वी सिंहभूम जिलाध्यक्ष सुपल महतो और जिला सचिव मनोरंजन महतो दो टूक कहते हैं, झारखंडी लोक कला और संस्कृति बचेगी तो झारखंडी बचेंगे. अन्यथा नहीं. झारखंडियों के दिलो-दिमाग में यहां की लोक कला और संस्कृति रची-बसी है. अब बदलते परिवेश में जानबूझ कर खत्म किया जा रहा है. यह झारखंडियों को समझना होगा. लोक कलाकार नहीं बचेंगे तो झारखंडी संस्कृति महफूज नहीं रहेगी. इसलिए झारखंड मानभूम लोक कला संस्कृति गराम-धराम झुमुर आखड़ा लोक कला को बचाने लिए आज भी संघर्षरत हैं.
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