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मेरे किरदार में सच्चाई होती है: रणदीप हुड्डा

सरबजीत में अपने दमदार अभिनय के लिए इन दिनों सभी तरफ सराहे जा रहे रणदीप हुडा जल्द ही फिल्म दो लफ्जों की कहानी में एक नये अंदाज में नजर आनेवाले हैं. इस फिल्म में वह बॉक्सर की भूमिका में है. यह एक रोमांटिक जॉनर की फिल्म है. उनकी इस फिल्म और कैरियर परअनुप्रियाऔरउर्मिलासे बातचीत के […]

सरबजीत में अपने दमदार अभिनय के लिए इन दिनों सभी तरफ सराहे जा रहे रणदीप हुडा जल्द ही फिल्म दो लफ्जों की कहानी में एक नये अंदाज में नजर आनेवाले हैं. इस फिल्म में वह बॉक्सर की भूमिका में है. यह एक रोमांटिक जॉनर की फिल्म है. उनकी इस फिल्म और कैरियर परअनुप्रियाऔरउर्मिलासे बातचीत के प्रमुख अंश :

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मेरे किरदार में सच्चाई होती है: रणदीप हुड्डा 2
अपनी हर भूमिका में आप प्रभावित करने में कामयाब नजर आ रहे हैं किसी भी फिल्म या किरदार से जुड़ने से पहले आपकी सोच क्या होती है?
मेरे गुरु नसीर साहब ने मुझे दो बातें सिखायी थी. पहली मेहनत का कोई एवज नहीं हो सकता है और दूसरी किरदार में सच्चाई दिखनी चाहिए. सच्चाई नहीं तो फिर किरदार करना बेमानी है. सरबजीत के किरदार की जो दशा थी. कहीं न कहीं दुख और पीड़ा से निकले थे उसको छूने की कोशिश की. बार बार स्क्रिप्ट पढ़ी. अपने आप को पूरी दुनिया से अलग रखा था. वो सब दिल से महसूस किया. जो कैरेक्टर पर बीत रही था मुझे याद है उस वक्त मेरी मां आयी हुई थी उन्होंने देखा कि न तो मैं कुछ खा रहा हूं बस अकेला कोने में बैठा हूं. इस पर मेरी मां ने कहा कि बाकी हीरो स्मार्ट कितने बॉडी बनाकर रहते हैं तेरे से ज्यादा पैसे भी कमाते हैं, तू ही ये सब क्यों करता है. एक दिन शूटिंग पर आयी तो मेरी हालात देखकर रो- धो कर चली गयी. मां की सुनूं तो गलत काम कर रहा हूं लेकिन मेरे काम करने का यही तरीका है. दो लफ्जों की कहानी पर बात करूं तो इस फिल्म के लिए मैं बॉक्सर बना हूं. इस फिल्म के लिए मैंने अपना वजन 95 किलो किया था अच्छी खासी अरनोल्ड वाली बनायी थी. सरबजीत के लिए अपना वजन मुझे 65 किलो करना था. अपनी पूरी बॉडी घटा ली थी. इससे शारीरिक तौर पर बहुत सारी समस्याएं भी आयी लेकिन मैं यहां बॉडी बिल्डर बनने थोड़े न आया था. एक्टिंग करने के लिए आया था. जो किरदार की जरूरत होगी वो सबकुछ करूंगा.
जैसा कि आपने कहा कि इस फिल्म के लिए आपने काफी बॉडी बनायी थी. कितना टफ यह सारा प्रोसेस था?
सरबजीत और दो लफ्जों की कहानी ने मेरी फ्रीज के साथ दो तरह के रिश्ते बना दिये थे. सरबजीत के वक्त आवाजें आती थी फ्रिज की कुछ तो खा लो. मैं सिर्फ पानी पर जो था. दो लफ्जों के लिए फ्रीज बोलता था भाई दरवाजा बंद करेगा तो न कुछ ठंडा होगा. हर घंटे पर कुछ खाता था. तीन किलो चिकन रोज खाना पड़ता था. उबला चिकन खाया नहीं जाता था क्या करता. उसे उबले हुए पानी सहित मिक्सी में घोलकर पी लेता था. कौन कहता है कि लव स्टोरी में कम मेहनत करनी होती है. सिर्फ हाथ को हवा में हिलाना होता है. मेरे लिए तो बहुत मेहनत करना पड़ा बहुत दर्द झेलने पड़े. इरफान खान जो एमएम फाइटर हैं उनके साथ सुबह और दो घंटे शाम को बॉडी बिल्डर मसूर सैय्यद के साथ टाइम लगाता था. इस फिल्म के निर्माता अविनाश राय हर सेशन में मेरे साथ ट्रेनिंग लेते थे. मेरा मोरल बढ़ाने के लिए. छह महीने तक बहुत मेहनत की. हर जोड़ हर हड्डी में दर्द था. दर्द निवारक गोलियां खाकर शूटिंग की. मैंने जिमानिस्टिक वाली फाइटिंग नहीं की है. कॉटैक्ट के साथ वाली फाइटिंग की है. नाक टूटी, बाएं पैर के सारी अंगुलिया टूट गयी थी .बहुत बुरा हाल था. मेरी मेहनत परदे पर दिखे यही अब ख्वाहिश है.
एक बार ऋषि कपूर ने कहा था कि पेड़ों के इर्द गिर्द डांस करना और रोमांस करना आसान नहीं है.
हां उन्होंने सही कहा था कोई भी एक्टर जो कैमरे के सामने होता है. वह बहुत मुश्किल काम होता है फिर चाहे वह रोमांस करे या सीरियस कुछ. यह असुरक्षा वाला भाग है. सेल्फ कॉंसस आदमी होता ही है. मैं अपने बारे में बात करूं तो मैं नहीं जानता कि कहां कैमरा है. मुझे नहीं लगता कि इमोशन दिखाने के लिए सिर्फ कैमरे की ओर देखना जरुरी है. इमोशन फिर तुम्हारी अंगुली में भी दिखता है. कैमरे की तरफ देखने की जरुरत नहीं है.
एक्टिंग की सबसे अच्छी बात आपको क्या लगती है?
अलग अलग इंसानों की जिंदगी जीने का जो मौका मिलता है. मुझे किरदारों के लिए तैयारी करने में बहुत मजा आता है. खासकर जब एक के बाद एक अलग जॉनर और किरदार को करने को मिले तो क्या कहने. फिर तो परदे पर खुद को देखने की खुशी ही कुछ ओर होती है. रेड कार्पेट पर चलना, मैग्जीन के कवर पर छपना, इंटरव्यू देना मुझे यह सब खुशी नहीं देता है.
क्या फिल्में एक इंसान के तौर पर भी आपके भीतर कुछ बदलाव कर जाते हैं?
बिल्कुल चेंज लाते हैं. एक नया सोच जो देते हैं. जो इंसान के तौर पर बहुत कुछ सीखा जाते हैं. लाल रंग में फिर से अपनी संस्कृति, लोकगीत और भाषा से जुड़ने का मौका मिला. डॉक्टर का लड़का होने के बावजूद मुझे खून की तस्करी के बारे में पता नहीं था जैसा फिल्म लाल रंग में दिखा था. सरबजीत ने सूरज की रोशनी, खाने पीने की, लोगों की और सबसे अहम आजादी का क्या महत्व होता है. इसे समझाया. दो लफ्जों की कहानी में एक नयी कला सीखी. एक नया खेल सीखा. प्यार के लिए मर मिटना क्या होता है जो अब की दुनिया में नहीं होता है. उसे इस फिल्म ने सिखाया सच कहूं तो मैंने अपनी पिक्चरों से ज्यादा सीखा है स्कूल से भी ज्यादा. एक अहम सीख तो बताना ही भूल गया फिल्मों ने मुझे यह भी सिखाया कि बादाम खाने से दिमाग नहीं आता है बल्कि ठोकरें खाने से आता है.
स्कूल के दिनों में आप कैसे थे?
दसवीं तक ठीक था पढ़ाई करता था. घुड़सवारी करता था. थिएटर में एक्टिंग और डायरेक्शन भी करता था. फिर मुझे डीपीएस आरकेपुरम में भेज दिया गया. उस स्कूल में सिवाय किताबी पढ़ाई के और कुछ नहीं था. उसकी वजह से और शौक लाइफ में आ गये. वो सारे गलत वाले. उसके बाद आॅस्ट्रेलिया गया पढ़ाई पूरी की. हर छोटे से बड़ा काम किया. वेटर से लेकर कार वॉशर, डोर टू डोर चीजें भी बेचीं. टैक्सी भी चलायी. उस दौरान मैंने यह बात सीखा कि आदमी को काम वो करना चाहिए जो उसे पसंद हो, तो वह उसके लिए काम नहीं रह जाता है. जिसके बाद ही मैंने एक्टर बनने का फैसला लिया. कई एक्टर कहते हैं कि मेरा नाइन टू फाइव जॉब की तरह है. इसके बाद मेरी फैमिली है मेरे बच्चा है तो दोस्त है लेकिन मेरा सबकुछ फिल्म ही है. उसके बाद जो वक्त बचता है अपने घोड़ों के साथ बिताता हूं. मैं हॉलीडे पर भी नहीं जाता हूं क्योंकि काम ही मुझे सुकून देता है.
घोड़ों से कैसे आपको लगाव हुआ?
मैं स्कूल में भी थिएटर करता था . डायरेक्शन भी करता था. घुड़सवारी करता था. मैं स्लो जंपिंग और रसाज करता था. मैं दस से बारह नेशनल एवार्ड भी जीत चुका हूं. मैं 39 का हुआ लेकिन अब भी वहीं करता हूं. मैं बिल्कुल अकेला महसूस नहीं करता हूं क्योंकि मैं अपने घोड़ों के बहुत करीब हूं ,कुछ भी हो जाये मैं उनसे जुड़ा फोन मिस नहीं करता हूं. एक अलग ही रिंगटोन सेट की है मैं कुछ ज्यादा ही केयर करता हूं. मैं अपने बच्चों की तरह उनसे प्यार करता हूं. मेरा जीजा बोलता रहता है अपने बेटे हो जायेंगे तो मालूम होगा. मैं लेकिन सबको बोलूंगा कि घुड़सवारी करनी है सबसे बड़ी बात यह है कि यह खेल महंगा नहीं है. आप मेरे या एमएचओ क्लब में डेढ या दो सौ घोड़े की सवारी कर सकते हैं बस आपको थोड़ा ट्रैवल करना होगा. बिल्कुल महंगा नहीं है. हर बच्चे को घुड़सवारी करनी चाहिए. एसी में रहकर एलर्जी हो जाती है. पोलन,डस्ट और घोड़े के बाल होते हैं. जिससे इम्युनिटी बढ़ती है. लीडरशीप की खूबी के साथ साथ संवेदना भी आती है यूपीएसी कार्डर हो या दूसरे एग्जाम इस में वह बहुत सहायक होता है. डिस्काउंट पर भी सीखाता हू. ट्रेनर जमर्नी से बुलाता हूं. जितना कमाता हूं इसी में लगाता हूं मेरी पूंजी जो भी परदे पर देखते हैं वही है.
आप अपनी लाइफ का सबसे टर्निंग प्वाइंट क्या मानते हैं?
बहुत टर्निंग प्वाइंट रहा है. सबसे पहली जब मानसून वेडिंग मिली फिर दूसरा टर्न वहां मुझे नसीर साहब मिले. मेरे अब तक के कैरियर में मैं आर्टिस्ट के तौर पर ज्यादा उभरा हूं. यह बात मुझे बहुत खुशी देती है. मैं इंडस्ट्री से बाहर का हूं इसलिए कई लोगों ने मुझे सलाह दी कि ये फिल्म मत करो ये करो. अगर मैं उन लोगों की बात मान लेता तो अपने कैरियर की आधी से अधिक फिल्म नहीं कर पाता था .इन्हीं फिल्मों ने मुझे गढ़ा है और हर फिल्म ने मेरे कै रियर में मुझे मदद दी है.
फिल्मों में बहुत कम लोगों को सेकेंड चांस मिला है, आप उन्हीं लकी लोगों में से एक हैं.
मैं एक सेंकेड के लिए सोचने लगूं कि यह सब मेरा किया धरा है तो मैं वेबकूफ हूं .मेरी मेहनत के अलावा मेरी किस्मत, मां बाप का आशीर्वाद , एक एक्टर के तौर मुझमें हमेशा सच्चाई रही है. ऊपर वाले का हाथ भी है. इन सबको मिलाकर हेरफेर हो रहा है और मेरा काम चल रहा है.
इस प्रोफेशन की कौन सी बात जो आपको परेशान करती है?
जब फिल्में ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंचती हैं. मेरा मतलब कमाई से नहीं है. वैसे भी पैसे मुझे थोड़े न मिलने हैं वो तो निर्माता को जाते हैं. मैं चाहता हूं कि मेरी पिक्चर ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. एक एक्टर की यही चाहत होती है. वैसे मुझे लग रहा है कि अब लोग डीवीडी और डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए फिल्में देख ही लेते हैं. वैसे मैं आज के लिए नहीं बल्कि पचास साल बाद के लिए काम कर रहा हूं. उस समय तक टेक्नॉलॉजी इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि हर फिल्म बस एक बटन की क्लिक पर रहेगा. उस वक्त भी मेरा काम लोगों को फिल्म देखते हुए अपील करे.

सुल्तान में आप सलमान के मेंटर बने हैं ,कितना रियल फाइट है?
दो लफ़्ज़ों की कहानी के दौरान जो कुछ मैंने सीखा था सुल्तान में सलमान को वही सीखा रहा हूं. ये मैं कैसे बता पाऊंगा. फिल्म में मेरा रोल कुछ समय के लिए है मैं अपना बता सकता हूं कि दो लफ़्ज़ों की कहानी में मैंने रियल फाइट की है.
शादी के बारे में क्या सोचते हैं?
राम जाने क्या होगा. मिल जाएगी तो कर लेंगे. इतना नहीं सोचता हूं शादी के बारे.
Prabhat Khabar Digital Desk
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