राजेश वर्मा
नामकुम
मान्यता है कि रांची के नामकुम के राजाउलातू स्थित मरासिल्ली बाचा भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. मनोरम वादियों के बीच मरासित्ल्ली बाबा को जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं. प्रखंड मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर राजाउलालू पंचायत के उनीडीह गांव में स्थित 230 एकड़ में फैले पहाड़ पर मरासिल्ली बाबा विराजमान हैं. मुख्य पुजारी सुमेश पाठक ने बताया कि जो भक्त सच्ची आस्था के साथ बाबा से मांगते हैं अवश्य पूरा होता है. सोमवार को जलाभिषेक के लिए रविवार की देर रात से ही शिव भक्त पहाड़ पर जुटने लगते हैं. सावन को लेकर पहाड़ के नीचे दर्जनों पूजन सामग्री की दुकानें सज गयी है मान्यता है कि रामायण का झारखंड से लगाव रहा है. गुमला, लोहरदगा, रांची, सिमडेगा व देवधर समेत कई जिलों में भगवान श्री राम के चरण पड़े हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां महर्षि वाल्मीकि जी ने तपस्या की थी. वाल्मीकि जी राम राम का जप कर रही थे. लेकिन, लोगों की मरा मरा सुनाई दे रहा था. इसलिए पहाड़ का नाम मरासिल्ली पड़ा.
सावन की पहली सोमवारी आज, पहाड़ी मंदिर में भक्तों का उमड़ा जनसैलाब
मरासिल्ली की धरती: तप, भक्ति और चमत्कारों का संगम
मान्यता है कि झारखंड की धरती का गहरा नाता रामायण काल से है. गुमला, लोहरदगा, रांची, सिमडेगा और देवघर जैसे जिलों में भगवान श्रीराम के चरण पड़े थे. ऐसी ही एक पवित्र जगह है मरासिल्ली पहाड़, जहां महर्षि वाल्मीकि ने तपस्या की थी. कहते हैं, वे “राम-राम” का जाप कर रहे थे, लेकिन लोगों को “मरा-मरा” सुनाई देता था, जिससे इस पहाड़ का नाम मरासिल्ली पड़ा. यहां स्थित शिवलिंग को लेकर यह आस्था है कि वह स्वयंभू है — यानी किसी ने उसे बनाया नहीं, बल्कि वह स्वयं प्रकट हुआ. शिवलिंग की स्थापना कब और कैसे हुई, इसकी कोई ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन श्रद्धा से ओतप्रोत वातावरण इसे अत्यंत पवित्र बनाता है.
कुंड में निवास करते हैं दर्जनों सांप, भक्तों को देते हैं दर्शन
मरासिल्ली पहाड़ पर नौ जलकुंड हैं, जिनमें से मुख्य कुंड का जल कभी नहीं सूखता. इसकी गहराई जानने के लिए सात खटिया की रस्सी डाली गई थी, फिर भी तल नहीं मापा जा सका. कुंड में दर्जनों सांप निवास करते हैं, जो कभी-कभी भक्तों को दर्शन भी देते हैं. आज मरासिल्ली बाबा की ख्याति दिन-ब-दिन बढ़ रही है. सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन और जलाभिषेक के लिए यहां पहुंचते हैं. सावन के पावन महीने में यहां भक्तों का उमड़ता जनसैलाब इस स्थान की आध्यात्मिक ऊर्जा का सजीव प्रमाण है.
वाल्मीकि की तपोभूमि और स्वयं प्रकट हुए भोलेनाथ का धाम
मरासिल्ली पहाड़, झारखंड की धरती पर स्थित एक अद्भुत और पवित्र स्थल है, जिसे लेकर गहरी पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने यहां कठोर तपस्या की थी। जब वे “राम-राम” का जाप कर रहे थे, तो स्थानीय लोगों को वह “मरा-मरा” सुनाई देता था। यही कारण है कि इस स्थान का नाम समय के साथ “मरासिल्ली” पड़ गया.
शिवलिंग हुआ स्वयं प्रकट
मरासिल्ली पहाड़ पर स्थित शिवलिंग को लेकर मान्यता है कि यह स्वयं प्रकट हुआ था। इस शिवलिंग का निर्माण किसने किया, कब और कैसे — इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं है। यह रहस्य आज भी श्रद्धालुओं की आस्था को और भी गहरा करता है.
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
मरासिल्ली बाबा की लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। अब केवल झारखंड से ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु यहां भोलेनाथ का जलाभिषेक करने आते हैं। सावन जैसे पावन महीनों में यह स्थल भक्ति, श्रद्धा और अद्भुत दिव्यता से भर उठता है.