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लंदन की प्रयोगशाला में विकसित किये गये 10000 मच्छर, लोगों को अब मलेरिया से बचायेंगे ये जीएम मच्छर

यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि लोहे को लोहा ही काटता है और हीरे को हीरा. ऐसा ही कुछ अब मच्छरों से होने वाली बीमारियों के इलाज में होने वाला है. वैज्ञानिकों ने अब मच्छरों के द्वारा ही मच्छर को खत्म करने के लिए अानुवांशिकी रूप से संशोधित (जेनेटिकली मोडिफाइड/ जीएम) मच्छर विकसित […]

यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि लोहे को लोहा ही काटता है और हीरे को हीरा. ऐसा ही कुछ अब मच्छरों से होने वाली बीमारियों के इलाज में होने वाला है.
वैज्ञानिकों ने अब मच्छरों के द्वारा ही मच्छर को खत्म करने के लिए अानुवांशिकी रूप से संशोधित (जेनेटिकली मोडिफाइड/ जीएम) मच्छर विकसित कर लिया है. इसका पहला प्रयोग अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में देखने को मिलेगा. यहां मलेरिया की रोकथाम के लिए 10,000 जीनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) मच्छर छोड़े जायेंगे.
मच्छरों की यह प्रजाति मलेरिया के संक्रमण का प्रतिरोध करेगी. वैज्ञानिकों का मामना है कि ये मच्छर मलेरिया फैलाने वाले एनाफिलिस की आबादी को कम करते हैं. लंदन के इंपीरियल कॉलेज में मोलेक्यूलर पैरासाइटोलॉजी की प्रोफेसर एंद्रिया क्रेसांती ने जानकारी देते हुए बताया कि मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों से निबटने का संभावित वैकल्पिक समाधान यह है कि मादा मच्छर की उत्पत्ति को ही खत्म कर दिया जाये. इसके लिए जीएम मच्छर विकसित किया गया है.
यह मच्छर नर प्रजाति का है. इस संवर्धित नर मच्छर को 513ए नाम दिया गया है. यह नर मच्छर सुनिश्चित करेगा कि उसके संतान वयस्क (दो-पांच दिन) होने से पहले ही खत्म हो जाये. इस तरह से मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की बढ़ती संख्या पर काबू पाया जा सकेगा.
पर्यावरणविद् कर रहे हैं विरोध, सात साल पहले भी हुआ था प्रयोग
ये हैं सबसे खतरनाक मच्छर
एडीस एजेप्टी : जिका, यलो फीवर और डेंगू
एडीस एल्बोपिक्टस : यलो फीवर, डेंगू और वेस्ट नील वायरस
एनोफिलिस गैंबियाई : हर तरह की बीमारियों की वाहक
जीएम मच्छर सामान्य मच्छरों की तुलना में होते हैं कमजोर
पर्यावरणविद् जीएम मच्छरों को बुर्किना फासो में छोड़े जाने का विरोध कर रहे हैं. आलोचकों का कहना है कि सात साल पहले ही जीएम मच्छर विकसित कर लिया गया था, लेकिन वह सामान्य मच्छरों की तुलना में कमजोर साबित हुआ था.
दुनिया के अधिकांश मच्छर पौधों और फलों पर रहते हैं जिंदा
पूरी दुनिया में मच्छरों की करीब 3500 प्रजातियां पायी जाती हैं. हालांकि, इनमें से ज्यादातर नस्लें इंसानों को बिल्कुल भी तंग नहीं करतीं. ये मच्छर पौधों और फलों के रस पर जिंदा रहते हैं.
3500 प्रजातियां हैं विश्व में मच्छरों की
100 नस्लें इंसानों के लिए नुकसानदेह
40 प्रजातियां हैं मलेरिया के लिए जिम्मेदार
06 फीसदी मादा मच्छर अपने अंडों के विकास के लिए पीती हैं इंसानों का खून
03 फीसदी मादा मच्छरों में बीमारियों के वायरस
Prabhat Khabar Digital Desk
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