22.5 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

दो अहम सवालों पर दो देशों में बैठक!

– हरिवंश – विशेष विमान आगरा (16.6.2012) दिन के लगभग सवा बारह बजे उड़ा. फ्रैंकफर्ट के लिए. फ्रैंकफर्ट में रात का पड़ाव है. फिर मैक्सिको के शहर लासकाबोस के लिए रवाना होना है. दिल्ली से फ्रैंकफर्ट लगभग आठ घंटे. फिर फ्रैंकफर्ट से मैक्सिको लगभग 13 घंटे, प्रधानमंत्री के विशेष विमान बोइंग ए, एयर इंडिया बोइंग […]

– हरिवंश –

विशेष विमान आगरा (16.6.2012) दिन के लगभग सवा बारह बजे उड़ा. फ्रैंकफर्ट के लिए. फ्रैंकफर्ट में रात का पड़ाव है. फिर मैक्सिको के शहर लासकाबोस के लिए रवाना होना है. दिल्ली से फ्रैंकफर्ट लगभग आठ घंटे. फिर फ्रैंकफर्ट से मैक्सिको लगभग 13 घंटे, प्रधानमंत्री के विशेष विमान बोइंग ए, एयर इंडिया बोइंग 747-400 एयरक्राफ्ट से.
मैक्सिको में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जी-20 शिखर सम्मेलन में शरीक होंगे. विमान के रवाना होने के पहले प्रधानमंत्री ने मैक्सिको और ब्राजील की यात्रा के बारे में एक बयान भी दिया. उन्होंने कहा, मैक्सिको के राष्ट्रपति फेलिपे कालडेरान के निमंत्रण पर जी-20 शिखर सम्मेलन में शरीक होने के लिए लासकाबोस जा रहा हूं. वहां से ब्राजील के रियो डि जेनेरियो जाना है.
ब्राजील की राष्ट्रपति डिलेमा रूसोफ के निमंत्रण पर. रियो+20 सम्मेलन में भाग लेने के लिए. वहां संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘सस्टेनेबुल डेवलपमेंट’ (क्रमागत विकास) पर आयोजित कॉन्फ्रेंस में शरीक होने के लिए. इन दो देशों की यात्रा के बाद, दक्षिण अफ्रीका होते हुए प्रधानमंत्री लगभग आठ दिनों बाद भारत लौटेंगे.
प्रधानमंत्री दो देशों में दुनिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण दो विषयों पर आयोजित विषयों पर होनेवाले विमर्श-संवाद में हिस्सा लेंगे. दुनिया की महत्वपूर्ण ताकतें इन सम्मेलनों में मौजूद होंगी. पहले विमर्श का संबंध, आर्थिक हालात से है. दूसरे का विकास के सही मॉडल, पर्यावरण व धरती, प्रकृति और इंसान के सही रिश्तों-संतुलन और सामंजस्य की तलाश से. यात्रा पूर्व अपने बयान में प्रधानमंत्री ने कहा भी कि जी 20 के नेता, आर्थिक संकट के साये, यूरो संकट और लड़खड़ाती ग्लोबल अर्थव्यवस्था की पृष्ठभूमि में मिल रहे हैं.
यूरोप के हालात खासतौर पर चिंताजनक हैं, क्योंकि यूरो अर्थव्यवस्था का ग्लोबल आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण हिस्सा है. साथ ही यह क्षेत्र, व्यापार और निवेश की दृष्टि से भारत का बड़ा पार्टनर (साझीदार) है. प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि यूरोप के नेता अपने वित्तीय संकट को सुलझाने के लिए ठोस कारगर कदम उठायेंगे. साथ ही दुनिया की अर्थव्यवस्था (ग्लोबल इकोनॉमी) को सुदृढ़ बनाने की पहल भी, जी-20 बैठक का अहम मुद्दा है.
प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि भारत इंफ्रास्ट्रक्चर (बुनियादी संरचना) में निवेश करने के मुद्दे पर इस बैठक में फोकस करेगा, ताकि दुनिया की अर्थव्यवस्था में विकास की गति को फिर तेज किया जा सके.
ब्रिक्स देशों के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में जी-20 देशों की बैठक के पहले भारत ब्रिक्स देशों की एक अनौपचारिक बैठक भी आयोजित करेगा, जिसमें जी-20 शिखर वार्त्ता के पहले अपने-अपने विचारों का ब्रिक्स देश आदान-प्रदान करेंगे.
फिर रियो की बैठक है. 1992 में पहली बार ‘अर्थ समिट’ (धरती सम्मेलन) हुआ था. प्रधानमंत्री की नजर में इस बैठक के बाद अभी लंबा सफर तय होना है. आज दुनिया के मंच पर जो मूल सवाल हैं, उनमें से पर्यावरण की चिंता सर्वोपरि है. विकास का सही रास्ता या मॉडल नियत होने से अभी हम बहुत दूर हैं. यह रियो सम्मेलन, एक ऐतिहासिक अवसर है, सस्टेनेबुल डेवलपमेंट (क्रमागत विकास) की अवधारणा को अर्थपूर्ण बनाने के लिए.
इस कॉन्फ्रेंस में गंभीर, उलझे और विवादपूर्ण मसलों ‘ग्रीन इकोनॉमी’ और ‘सस्टेनेबुल डेवलपमेंट लक्ष्य’ पर भी विमर्श की संभावना है. प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में इस बात पर जोर देंगे कि रियो 1992 सम्मेलन की मूल बातों से हम न भटकें.
प्रधानमंत्री इस यात्रा के दौरान विश्व के बड़े नेताओं से अलग से भी मिलेंगे. राष्ट्रपति के फेलिपे कालडेरान, राष्ट्रपति ब्लादमीर पुतिन, चांसलर एंजला मार्केल, राष्ट्रपति फ्रैकासिस ओलांद, प्रधानमंत्री डेविड कैमरान, प्रधानमंत्री स्टीपेन हार्वर प्रधानमंत्री वेन जिबाओ, राष्ट्रपति महिंद्रा राजापक्षे, प्रधानमंत्री जिगमी वाइ पिनले, प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई, राष्ट्रपति बोनी मार्ट्ट व अन्य नेताओं से प्रधानमंत्री मिलेंगे व दुनिया के महत्वपूर्ण सवालों और आपसी रिश्तों-हितों पर संवाद करेंगे.
मैक्सिको और ब्राजील के सम्मेलन, सामान्य भाषा में कहें तो मौजूदा आर्थिक चुनौतियों और पर्यावरण से जुड़े हैं. आज की दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सवाल भी यही दोनों हैं.
संसार की अर्थव्यवस्था कैसे ठीक हो और पर्यावरण की रक्षा से धरती कैसे बचे? मनुष्य का अस्तित्व कैसे बचा रहे? बमुश्किल एक माह पहले प्लैनेट रिपोर्ट-2012 आयी है कि इस धरती पर जो बोझ-भीड़ है, उसे ढोने के लिए इस तरह की तीन धरती-तीन पृथ्वी इस ब्रह्मांड में चाहिए. इस निष्कर्ष से मौजूदा खतरे को समझा जा सकता है. पर्यावरण संकट या यह धरती संकट और आर्थिक संकट के सवाल एक-दूसरे से जुड़े हैं. गुजरे दशकों में थैचरवादी (निंयत्रणयुक्त) अर्थप्रणाली अप्रभावी साबित हुई है. इससे सरकारों का रोल (भूमिका) बढ़ा है.
इसलिए मौजूदा संकट (आर्थिक व पर्यावरण) को हल करने के लिए बाजार आधारित अर्थप्रणाली पर भी नये सिरे से गौर करना होगा. दुनिया के जटिल वित्तीय ढांचे और अर्थप्रणाली पर पुनर्विचार करना होगा. नयी चुनौतियों-परिस्थितियों के संदर्भ में. विश्व वित्तीय बाजार पर प्रभावी नियंत्रण की रूपरेखा बनानी होगी. धरती-पर्यावरण को बचाने के लिए बाजार की भाषा से नहीं, प्रकृति से सामंजस्य की दृष्टि से सोचना होगा.
यहीं आकर आज दुनिया में सबसे प्रभावी द्रष्टा गांधी नजर आते हैं, जिन्होंने सदियों पहले कहा, प्रकृति हर आदमी की जरूरतें पूरा कर सकती है, बोझ नहीं. सवाल है कि लोभ, संचय, भोग और उपभोक्तावादी दर्शन से दुनिया उबरने को तैयार है या नहीं? यह दार्शनिक रुझान ही अर्थव्यवस्था और धरती (पर्यावरण) की रक्षा के मूल हैं.
नैतिक बनना आज जरूरी नहीं, धरती-मानव की रक्षा के लिए मजबूरी है. दार्शनिक हेडेगर ने कहा था कि मनुष्य धरती का चरवाहा बने. वह टेक्नोलॉजी के बल धरती के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण बंद करे, प्रकृति या भूमंडल का स्वामी, इंसान खुद को न माने. मनुष्य ब्रह्मांड-धरती की हर चीज का रक्षक और संरक्षक बने.
विश्व के सबसे ताकतवर राजनेताओं के ऐसे सम्मेलनों में जब तक इन मूल सवालों पर चर्चा नहीं होगी, तब तक दुनिया को बचाने का हल निकालना कठिन है.
दिनांक 17.06.2012
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel