23 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

भारतीय विदेश नीति का विकल्प

II डॉ नलिनी कांत झा II कुलपति, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय [email protected] मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा आपातकाल की घोषणा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को गिरफ्तार करने तथा पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम को नजरबंद करने के आदेश देने के बाद मालदीव का संकट गहरा होता जा रहा है. गत सप्ताह वहां के सर्वोच्च […]

II डॉ नलिनी कांत झा II
कुलपति, तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय
मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा आपातकाल की घोषणा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को गिरफ्तार करने तथा पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम को नजरबंद करने के आदेश देने के बाद मालदीव का संकट गहरा होता जा रहा है. गत सप्ताह वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने जेल में बंद विपक्षी नेताओं को इस आधार पर रिहा करने का आदेश दिया था कि उन्हें केवल राजनीतिक कारणों से दंडित किया गया था. परंतु यामीन ने न्यायालय के आदेशों के पालन के बदले उन्हें गिरफ्तार करवा देश में आपातकाल की उद्घोषणा कर दी.
निर्वासित जीवन बीता रहे मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने न केवल राष्ट्रपति यामीन की घोषणा को असंवैधानिक करार दिया है, बल्कि उन्होंने भारत से सैनिक हस्तक्षेप कर यामीन सरकार को बर्खास्त करने तथा आपातकालीन घोषणा को समाप्त करने का अनुरोध भी किया है.
क्या भारत सरकार को निर्वासित राष्ट्रपति के आग्रह पर उसी प्रकार सैनिक कार्रवाई करनी चाहिए, जिस प्रकार नयी दिल्ली ने 1987 में तत्कालीन मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के अनुरोध पर किया था? कहा जा रहा है कि 1987 की तुलना में आज की स्थिति भारत के लिए ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि मालदीव तब भारत का मित्र था. यामीन के नेतृत्व में मालदीव अब चीन की गोद में चला गया है.
यामीन ने अपने दूत सऊदी अरब, चीन और पाकिस्तान भेजकर स्पष्ट कर दिया है कि उसके दोस्त कौन हैं. अब्दुल्ला यामीन जब पिछले वर्ष चीन गये थे, तो दोनों देशों के बीच न केवल बारह समझौते हुए थे, वरन् उन्होंने चीन के महत्वाकांक्षी मेरीटाइम सिल्क रोड योजना का समर्थन भी किया था.
पाकिस्तान के बाद मालदीव दक्षिण एशिया में चीन के साथ मुक्त व्यापार करनेवाला दूसरा देश बन गया है. दूसरी तरफ दक्षिण एशिया में मालदीव ही ऐसा देश है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं गये हैं. अतः आज भारतीय विदेश नीति के बहुत सारे विश्लेषक प्रधानमंत्री मोदी को पूर्व मालदीवीयन राष्ट्रपति के अनुरोध पर सैन्य हस्तक्षेप कर उस देश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने की अनुशंसा कर रहे हैं.
नयी दिल्ली ने मालदीव की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए भी सैन्य हस्तक्षेप करने से इनकार किया है. 1987 में श्रीलंका में सैन्य
हस्तक्षेप के पश्चात भारत को श्रीलंका के तमिल एवं सिंहली समुदायों की शत्रुता मिली थी और उसकी अंतिम परिणति पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या में हुई.
यह सही है कि भारत की तुलना मालदीव में एक अत्यंत ही छोटा और साधनरहित देश है, परंतु अफगानिस्तान में जिस प्रकार पहले भूतपूर्व सोवियत संघ और बाद में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी, उससे भारत जल्दबाजी में कदम उठाना नहीं चाहता है. एक तरफ पाकिस्तान के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में निरंतर गोलीबारी हो रही है, तो दूसरी ओर भूटान की सीमा पर चीन एवं भारत के बीच डोकलाम में सैनिक कब्जे को लेकर संघर्ष की संभावना बढ़ रही है.
नयी दिल्ली ने यामीन द्वारा एक स्पेशल राजदूत भेजकर वहां की समस्या पर विचार करने के प्रस्ताव को ठुकराकर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त तो की है, परंतु दक्षिण में चीन के मित्र के साथ एक अन्य संघर्ष करने के विकल्प से बचना चाह रहा है.
गत माह भारत ने मालदीव के विदेश मंत्री का नयी दिल्ली में स्वागत कर यामीन सरकार के साथ संबंधों को सुधारने का प्रयास किया. साथ ही विरोधी नेताओं से भी संपर्क कायम रखा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत अमेरिका, यूरोपियन देशों तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय देशों के साथ मिलकर दबाव बना मालदीव की समस्या के समाधान पर ज्यादा जोर दे रहा है. मालदीव को दिये जानेवाले आर्थिक सहायता को बंद करके भी यामीन सरकार पर दबाव बनाने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है.
हालांकि, नयी दिल्ली को यह बात पता है कि हस्तक्षेप के द्वारा अन्य देशों की समस्या का समाधान सरल नहीं है. फिर भी मालदीव का सामरिक महत्व तथा चीन के बढ़ते प्रभाव के चलते भारत चुपचाप नहीं रह सकता है.
अतः अगर आर्थिक मदद को बंद करने तथा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के द्वारा अब्दुल्ला यामीन की भारत-विरोधी तथा अप्रजातांत्रिक नीतियों को बदलने में सफलता नहीं मिलती है, तो अंततोगत्वा भारत को सैनिक कार्रवाई के लिए भी तैयार रहना होगा. किसी भी हाल में भारत अपने निकटवर्ती पड़ोसी राष्ट्र में अपने सामरिक हितों तथा प्रजातांत्रिक आदर्शों को तिलांजलि नहीं दे सकता है. अन्य महाशक्तियों की भांति भारत जैसी उदीयमान महाशक्ति की भी कुछ सामरिक, नैतिक तथा क्षेत्रीय जिम्मेदारियां हैं, उससे यह विमुख नहीं हो सकता है. जिस प्रकार नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में चाहे-अनचाहे भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा है, उसी प्रकार इसे मालदीव में भी कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं.
यह अंतिम विकल्प होगा, परंतु इसके प्रयोग के लिए हमें तैयार रहना होगा. क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए मालदीव में मौजूदा संकट का समाधान करते हुए राजनीतिक स्थिरता लाने में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. अब्दुल्ला यामीन को यह एहसास दिलाया जाना चाहिए कि उन्हें भारत की चेतावनियों को कम करके आंकने की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel