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फांसी से नहीं रुकेगा अपराध

II आकार पटेल II कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया [email protected] कठुआ और उन्नाव में जो कुछ भी हुआ, वैसी घटनाओं पर हमारे समाज को कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए! विश्वभर में भारत इस बात को लेकर बदनाम है कि यहां यौन हिंसा के कारण महिलाएं अौर बच्चे असुरक्षित हैं. और, अगर यह सच नहीं है, तब […]

II आकार पटेल II
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
कठुआ और उन्नाव में जो कुछ भी हुआ, वैसी घटनाओं पर हमारे समाज को कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए! विश्वभर में भारत इस बात को लेकर बदनाम है कि यहां यौन हिंसा के कारण महिलाएं अौर बच्चे असुरक्षित हैं. और, अगर यह सच नहीं है, तब भी ऐसी सोच बन चुकी है. ईमानदारी से खुद के भीतर झांकने और यह पूछने के लिए हमें विदेशी मीडिया का सहारा नहीं लेना चाहिए, बल्कि खुद से यह पूछना चाहिए कि हम कैसे बदल सकते हैं.
आखिर वे कौन से कारण हैं, जो हम ऐसी घटनाओं को रोक नहीं पा रहे हैं और ऐसी घटनाअों में कमी लाने के लिए कौन से कदम उठाने की जरूरत है?
इस संबंध में पहली बात यह है कि हमें इस बात को स्वीकार करना होगा कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने का काम केवल न्याय और पुलिस तंत्र का नहीं है. हमारे मूल्य ध्वस्त हो रहे हैं और जहां महिलाओं व अल्पसंख्यकों का सम्मान होता है, वहां पशुता को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता. क्या हम ऐसी जगह रहते हैं? इसका सही उत्तर हमारे सामने है.
इस तरह की हिंसा रोकने के लिए सरकार से कदम उठाने के लिए कहकर, असल में हम अपनी भूमिका को नजरअंदाज करते हैं. इस सोच के साथ आइए, देखते हैं कि अब सरकार इस मामले में किस तरह के कदम उठा सकती है.
यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म को रोकने के लिए मूलत: दो काम किये जा सकते हैं. इनमें एक तो कानून बनाने की मांग है.एक मांग जो लोगों द्वारा बार-बार की जाती है, वह है दुष्कर्मी को फांसी. इसके पीछे यह सोच काम करती है कि दोषी को कड़ी सजा से संभावित दुष्कर्मी भयभीत हो जायेंगे और गलत हरकत नहीं करेंगे. लेकिन ऐसी सजा का उल्टा असर हो सकता है तथा दुष्कर्म और हत्या के लिए एक समान सजा होने पर यह दुष्कर्मी को पीड़िता की जान लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, ताकि उसके खिलाफ कोई सबूत ही न बचे.
लेकिन आइए, अभी के लिए हम बात को यहीं छोड़ते हैं. नेता आमतौर पर इस समाधान के पक्ष में खड़े दिखते हैं. अगर आप इन दिनों अखबारों पर नजर डालेंगे, तो पायेंगे कि अनेक लोग मानते हैं कि दुष्कर्मी को मृत्यु दंड ही मिलना चाहिए.
भारत में हत्यारों को मृत्यु दंड दिया जाता है. क्या यह हत्यारों को हतोत्साहित करता है और क्या इससे हत्या की घटना रुकती है? इसे समझने के लिए हम आंकड़ों पर नजर डालते हैं. वर्ष 2016 में भारतीय अदालत ने 136 मामलों में मृत्यु दंड की सजा सुनायी थी. लेकिन उस वर्ष भारत में 30,000 हत्याएं हुईं. आंकड़े बताते हैं कि मृत्यु दंड देने से हत्याएं नहीं रुकती हैं.
कानून में सजा मिलने के बाद याचिका दाखिल करने और क्षमादान का प्रावधान है. इसलिए वर्ष 2016 में एक भी हत्यारे को फांसी की सजा नहीं दी गयी. दुष्कर्म को खत्म करने के लिए आसान और शीघ्र सजा के तौर पर ‘दुष्कर्मी को फांसी’ की सजा देने की मांग करते समय हमें उपरोक्त तथ्यों को समझना होगा.
साल 2016 में ही भारत में दुष्कर्म के कुल 38,947 मामले दर्ज किये गये और बच्चों के खिलाफ हुए अपराध के मामले 1,06,000 से ऊपर थे. दुष्कर्म की संख्या के बारे में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश में यौन हिंसा की शिकार 99 प्रतिशत पीड़िताओं द्वारा इस घटना की पुलिस रिपोर्ट नहीं की जाती है.
अमेरिका में दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के 1,000 मामलों में से 310 (मतलब 31 प्रतिशत) मामलों में पुलिस रिपोर्ट की गयी, और इनमें से केवल छह लोगों को (एक प्रतिशत से भी कम) जेल हुई. इसका अर्थ हुआ कि न्याय देने में केवल हम ही पीछे नहीं हैं और यह एक जटिल विषय है, जिसके लिए बहुत से चिंतन और कठिन श्रम की जरूरत है. यहां विभिन्न मुद्दे हैं, कुछ सामाजिक हैं और कुछ राज्य द्वारा निबटाये जा सकनेवाले हैं.
भारत और अन्य देशों में पीड़िताओं को लेकर जो सामान्य कारक है वह यह है कि दुष्कर्म एक गहन व्यक्तिगत अपराध है और किसी भी पीड़िता के लिए इसे साझा करना आसान नहीं होता. भारत में अनेक सामाजिक मुद्दे हैं और उनमें प्रमुख है समाज में महिलाओं की स्थिति एवं उनके साथ होनेवाला व्यवहार.
दूसरी बात हमारी वह सोच है, जिसमें माना जाता है कि परिवार का ‘सम्मान’ महिलाओं के शरीर से जुड़ा होता है और जब किसी महिला का उत्पीड़न होता है, तो वह सम्मान ‘नष्ट’ हो जाता है. हमारी यही सोच पीड़िता को अपने परिवार से भी सच बताने से रोकती है, ऐसे मामलों में पुलिस थाने में अजनबियों की तरह उसे अकेला छोड़ दिया जाता है.
इस संदर्भ में पुलिस जो काम कर सकती है, वह है कानून का पालन. कानून कहता है कि देश में सभी पीड़िता किसी भी पुलिस थाने में आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है (न कि सिर्फ उस क्षेत्र के जहां अपराध घटित हुआ है), दूसरा, पीड़िता अपना बयान किसी भी भाषा में दर्ज करा सकती है.
ऐसा होना मुश्किल है, क्योंकि अधिकतर पुलिस थाने में सही तरीके से अंग्रेजी बोलनेवाले व्यक्ति भी नहीं हैं और इसलिए वे केवल स्थानीय भाषा में ही प्राथमिकी दर्ज कराने को वरीयता देते हैं.
तीसरा, पीड़िता का बयान महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही रिकॉर्ड किया जाना चाहिए. आमतौर पर महिला पुलिस अधिकारी अौर पुलिसकर्मी की कमी की वजह से इस कानून का पालन भी नहीं हो पाता है. एक प्रचलित नारा है, ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’, लेकिन जब बाकी दुनिया के मुकाबले प्रति व्यक्ति पुलिस, डॉक्टर, नर्स आदि की उपलब्धता के आधार पर भारत सरकार के आकार की माप की जाती है, तब ये शब्द अर्थहीन लगते हैं.
यौन अपराध रोकने के लिए हमें अपने समाज में और परिवार के स्तर पर महिलाओं के साथ होनेवाले व्यवहार में व्यापक बदलाव करना होगा. इस बात को भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि यौन हिंसा की रिपोर्टिंग से संबंधित वर्तमान कानून का भारत के सभी पुलिस थानों में पालन किया जाये.
यह बहुत ही कठिन कार्य है, लेकिन इससे यौन हिंसा की रिपोर्ट दर्ज कराने की संख्या में वृद्धि होगी. रिपोर्ट दर्ज कराने की संख्या बढ़ने के बाद, राज्यों को इस बात को सुनिश्चित करने की जरूरत होगी कि इस संबंध में सही जांच-पड़ताल हो (जिसके लिए संसाधनों की जरूरत होगी और वर्तमान में जो पुलिस बल की संख्या है या जो बजट है, उससे ऐसा नहीं हो सकता है), ताकि ज्यादा संख्या में अपराधी को सजा मिल सके.
इन सभी कदमों को उठाना मुश्किल है और अधिकांश राजनेता जानते हैं कि ऐसा होना लगभग असंभव है. यही कारण है कि आसान रास्ता चुना जाता है और दुष्कर्मी को फांसी देने की मांग होती है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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