21.6 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

पहली चिंता लोकतंत्र की

II मृणाल पांडे II ग्रुप सीनियर एडिटोरियल एडवाइजर, नेशनल हेराल्ड [email protected] मोदी सरकार के गुजिश्ता चार सालों की तुलना अगर किसी से की जा सकती है, तो शायद लालबहादुर शास्त्री के राज के पहले साल से. कृपया चौंकें नहीं. विदेश नीति (कच्छ के मरुस्थल)में हमारी शर्मनाक हार, हिंदी भाषा थोपे जाने के मुद्दे पर भारतीय […]

II मृणाल पांडे II
ग्रुप सीनियर एडिटोरियल एडवाइजर, नेशनल हेराल्ड
मोदी सरकार के गुजिश्ता चार सालों की तुलना अगर किसी से की जा सकती है, तो शायद लालबहादुर शास्त्री के राज के पहले साल से. कृपया चौंकें नहीं. विदेश नीति (कच्छ के मरुस्थल)में हमारी शर्मनाक हार, हिंदी भाषा थोपे जाने के मुद्दे पर भारतीय गणराज्य से अलग होने की करारी धमकी दे रहा दक्षिण भारत, आयातित तेल तथा जरूरी सामान पर हमारी निर्भरता, चीन की एफ्रोएशियाई मुल्कों का दादा बनने की कोशिशें और शीर्ष नेतृत्व को खुद अपनी ही पार्टी के कुछ पुराने धाकड़ नेताओं से मिल रही तीखी चुनौती, यह सब आज के संदर्भ से भी काफी मिलते-जुलते हैं.
फर्क यही है कि भारत-पाक युद्ध के सात संक्षिप्त महीनों में एक शांत, लेकिन सख्त महानायक बनकर उभरे शास्त्रीजी के कार्यकाल ने उनके अंतिम महीनों को उजला कर दिया. पर कर्नाटक के ताजा प्रकरण को देखकर शक होता है कि भाजपा शीर्ष नेता कहीं 2019 के आम चुनावों को पार्टी (उससे ज्यादा खुद अपना) बचाने की खातिर मर्यादाएं ताक पर रखकर ऐसी आर-पार की लड़ाई न बना दें, जिसका कर्नाटक चुनाव एक अशोभनीय पूर्वरंग भर था.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत कम बोलते हैं, पर जब बोलते हैं तो उसे उस्ताद रजब अली खां साहेब के शब्दों में ‘बूढ़े की बड़बड़ाहट’ समझकर अनसुनी करने के बजाय गौर से सुनना चाहिए. याद करें, मनमोहन सिंह ने कहा था कि भाजपा के शीर्ष नेता का प्रधानमंत्री बनना सर्वनाशी साबित होगा. क्या उनको उस भविष्य का कोई पूर्वाभास था, जब उन्होंने नोटबंदी को देश की खुली लूट की संज्ञा दी थी? क्या वे जता रहे थे कि अभी जनता की संपत्ति और संविधानप्रदत्त हकों की लूट की एक पूरी थिसॉरस के न जाने कितने पन्ने और खुलने हैं?
नोटबंदी और उसके बाद के दो बड़े राज्यों- उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के चुनावों के बाद एनडीए सरकार के कार्यकाल का दो-तिहाई भाग पहले एक तिहाई से कतई फर्क दिखने लगा है. शासन के पहले बरस तक भाजपा ने अपने और संघ के अंतर्विरोधों को ओट में डाल कई नये कदम उठाते हुए पुराने राज-समाज के तमाम सोच व संस्थानों को भ्रष्ट नाकारा बता कर नयी शुरुआत की एक जबर्दस्त मुहिम छेड़ी थी. स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ से शुरू नयी वाचाल गतिशीलता कई लोगों को तब बड़ी दमदार प्रतीत हुई थी.
चौदह घंटे काम करते हुए प्रधान सेवक ने मंत्रियों के साथ धुआंधार बैठकें कीं. शीर्ष नौकरशाही से विचारोत्तेजक चर्चाओं के ब्योरे जारी हुए. फिर मनरेगा नरेगा बना, योजना आयोग की जगह नीति आयोग आया, युवा बेरोजगारों में हुनरमंदी बढ़ाने को स्किल इंडिया आया. और साथ साथ राजनय को लेकर गंभीर और कमगो कांग्रेस प्रधानमंत्री के वक्त की विदेश यात्राओं का चित्र भी खासा रंगारंग, वाचाल व गर्मजोशी भरा बनने लगा.
विदेश यात्राओं के दौरान बड़े-बड़े हॉल बुक कराये जाने लगे, जहां खुद प्रधानमंत्री लगभग एक करिश्माती रॉकस्टार की तरह भारतवंशियों की भावुक अभिभूत भीड़ को संबोधित सम्मोहित करते थे. विश्व मीडिया में लगातार पेश किये गये इन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री एकदम नये रोल में दुनिया को ‘मेक इन इंडिया’ और भारत पर्यटन के लिए न्योतते प्रधान सेल्समैन बनकर छाये. पर दूसरी तरफ खुद भारत में मीडिया से प्रधानमंत्री जी तथा काबीना का बेतकल्लुफ और निरंतर संवाद बंद होता गया.
जब राज्यों के चुनाव आये तो इस संवादहीनता से उखड़े मीडिया के निडर भाग ने पूछना शुरू किया कि दल के कई अनाम प्रचारक बेरोकटोक विषैले विवादास्पद सांप्रदायिक बयानों, भड़काऊ मारपीट से वोट बैंकों का ध्रुवीकरण क्यों कर रहे थे, तो एक अजीब खामोशी (मौनं सम्मति लक्षणं?) छायी रही.
फिर अचानक मीडिया (खासकर न्यूज चैनलों में) पुरानी संपादकीय टीमों को फेंटकर पुराने प्रश्नाकुल जन हटाये गये और नये (लगभग अनाम) संपादक रख लिये गये, जिनके संपादकीय हरचंद ठकुरसुहाती करते थे. संदेश साफ था. उत्तर प्रदेश चुनाव इस नयी शैली का आईना बने. प्रचार के दौरान सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार को नेपथ्य में रखकर आचार्य द्रोण की तरह खुद प्रधानमंत्री ने मोर्चा संभाला और मीडिया में सरकारी विज्ञापनों पर धुआंधार खर्चीले प्रचार के साथ प्रतिपक्ष के मुख्यमंत्री उम्मीदवारों के खिलाफ जन रैलियों में ब्रह्मशरों की झड़ी लगा दी. उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में इस फाॅर्मूले की जीत हुई, तो उसके बाद वहां इसी शैली में काम करनेवाले विस्मयकारी नेता मुख्यमंत्री तैनात हुए.
अल्पसंख्यकों, छात्रों, दलितों तथा पीड़ित महिलाओं को लेकर उनकी जैसी मानसिकता, व्यवहार और सरकारी मशीनरी के उपयोग का तरीका सामने आता रहा है. जिस तरह कानूनन विवादित एनकाउंटरों की सगर्व घोषणा की जा रही है, उसे देखते हुए राज्यों में लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा पुलिस प्रशासन का इस्तेमाल लगातार चिंता पैदा करता है.
फूटपरस्त प्रचार का उत्तर भारतीय फाॅर्मूला दक्षिण में भी अपनाया गया. वहां सूखे से पीड़ित किसानों या अवैध खनन और वन कटाव के सवालों को हल करने की बजाय इन राज्यों के तमाम जातीय, सांप्रदायिक, लैंगिक और भाषायी अंतर्विरोधों को उभारकर ऐसा समुद्रमंथन किया गया कि सारा हलाहल और अमृत सतह पर आ गया! अचानक कुछ स्वघोषित रूप से जन नैतिकता के ठेकेदार बने दक्षिणपंथी दस्तों ने राज्य में खुले विचारों के पक्षधर बुद्धिजीवियों, वामपंथी छात्रों और मीडियाकर्मियों पर ही नहीं, युवा जोड़ों पर भी लगातार हमले किये. दलितों को सरेआम त उत्पीड़ित करते हुए तलघर से निकाले कई तरह के पुराने विषाक्त जाति युद्ध उभारकर समाज के पानी में आग लगाया जाना शुरू हो गया. जब जवाब में लामबंद विपक्ष ने भी मठों, मंदिरों, मस्जिदों की मार्फत हिंदू एकजुटता का दूसरा अभियान शुरू किया, तो पहले से आशंकित मुस्लिम बिरादरी और अधिक उद्वेलित हो गयी.
इसने सांप्रदायिकता की आग देश में भड़कायी, जिसके खौफनाक नतीजे हमको कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, तेलंगाना तथा कश्मीर तक देखने को मिल रहे हैं. इसका एक बड़ा खतरनाक सह-उत्पाद कई दलों में बड़े संकटमोचक ताकतवरों का वह उभार है, जो चुनावों को शवसाधना और नरबलि से लैस किसी मध्यकालीन गूढ़ तांत्रिक अनुष्ठान में बदल रहा है.
यह सब आम मतदाता के मन में भय और नफरत भरेगा, भविष्य के प्रति आस्था नहीं. इसी तरह चुनाव लड़े गये, तो सवाल यह नहीं कि 2019 में ताज किस दल या गठजोड़ को मिलेगा, बल्कि यह कि राष्ट्रपति भवन में जिस भी दल या गठजोड़ का राजतिलक होगा, उसे जो देश मिलेगा, वह कितना शासन-काबिल तथा लोकतांत्रिक बचा होगा!
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel