22.6 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

उच्च शिक्षा को कैसे सुधारा जाये

II आलोक कु. गुप्ता II एसोसिएट प्रोफेसर, दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि [email protected] हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया एक्ट 2018 के माध्यम से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सभी नियामक यानी रेगुलेटरी संस्थाओं को मिलाकर उनके स्थान पर उच्च शिक्षा आयोग के गठन की तैयारी चल रही है. आयोग का मुख्य कार्य उच्च शिक्षा की गुणवत्ता […]

II आलोक कु. गुप्ता II
एसोसिएट प्रोफेसर,
दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि
हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया एक्ट 2018 के माध्यम से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सभी नियामक यानी रेगुलेटरी संस्थाओं को मिलाकर उनके स्थान पर उच्च शिक्षा आयोग के गठन की तैयारी चल रही है.
आयोग का मुख्य कार्य उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की होगी, जबकि सभी संस्थानों को वित्तीय मदद की शक्ति मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास होगी. यह कवायद यूपीए सरकार द्वारा गठित यशपाल समिति की रिपोर्ट एवं अनुशंसा के आधार पर आरंभ की गयी थी. परंतु तत्कालीन सरकार के समय आयोग के गठन हेतु बिल संसद में ही लंबित रहा.
यशपाल समिति की रिपोर्ट से जाहिर होता है कि समस्या कहीं और है और निदान कहीं और ढूंढा जा रहा है. लगता है समिति को ही उच्च शिक्षा के अंदर की समस्याओं के वास्तविक अध्ययन का समय नहीं मिला और कुछ एलिट अध्यापकों ने, जो समिति के सदस्य थे, अपनी समझ से समस्याओं को गढ़ लिया और आयोग गठन करने की अनुशंसा कर दी.
वर्तमान सरकार भी पिछली सरकार की गलतियों को आगे बढ़ा रही है. आयोग के गठन से उच्च शिक्षा में गुणवत्ता नहीं आयेगी और यह कदम उच्च शिक्षा के लिए आत्मघाती होगा.
यह समझने की जरूरत है कि नये आयोग में जिन कर्मचारियों की नियुक्ति होगी, क्या वे मंगल ग्रह से आयेंगे? या वही पुराने लोग होंगे, जो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों के लिए जिम्मेदार हैं? ऐसे में संस्थाओं को बदल देने से गुणवत्ता बढ़ जायेगी, ऐसी सोच आपराधिक है.
सरकार दिखावा कर रही है कि वह कुछ नया कर रही है. अगर संस्थाओं को चलानेवाले लोग सही मायने में शिक्षित और ईमानदार होंगे, तो गुणवत्ता अपने आप आ जायेगी; अन्यथा कानूनी डंडे से या फिर नयी संस्थाओं के गठन से गुणवत्ता कभी नहीं आयेगी.
कई गैर-सरकारी संस्थानों ने अपने अध्ययन में ऐसा बताया है कि व्यवस्था के अंदर सिर्फ 20 प्रतिशत लोग ही कार्यकुशल होते हैं और व्यवस्था इन्हीं लोगो से आगे बढ़ती रहती है. बाकी 80 प्रतिशत लोग पैरवी-पुत्र होते हैं, जो सिर्फ नौकरी करते हैं काम नहीं. यह एक बहुत अनुदार आकलन हो सकता है.
यह कटु सत्य है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में सड़ांध फैली हुई है. वहां ऐसे प्रोफेसर-शिक्षक बने बैठे हैं, जिन्हें कायदे से प्राइमरी स्कूल में भी नियुक्ति देना अपराध होगा. इनमें बहुत से ऐसे भी होते हैं, जिन्हें राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होता है. ऐसे में आयोग के माध्यम से गुणवत्ता की बात करना बेमानी है.
एक और समस्या है. जो शिक्षक और कर्मचारी ईमानदारी से काम करते हैं, उन्हें हतोत्साहित कर दिया जाता है और उन्हें कई प्रकार के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.
उन्हें बेबकूफ करार दे दिया जाता है और उनकी प्रोन्नति भी ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है. जो वास्तव में शिक्षक हैं, वे व्यवस्था से उलझना पसंद नहीं करते. शिक्षा जगत की राजनीति, शक्ति-संघर्ष और अन्य ऐसे कार्यों से दूर रहने का प्रयास करते हैं, जिसमें उन्हें उत्पीड़न का शिकार होना पड़ सकता है.
ये मात्र कुछेक प्रतिनिधि समस्याएं हैं.समस्या के मूल में है गलत लोगों का उच्च शिक्षा में प्रवेश और उनका बोलबाला. अत: समाधान के तमाम प्रयास इस पर केंद्रित होने चाहिए. अगर संस्थानों में उचित और शिक्षा एवं शोध में रुचि रखनेवाले लोगों की नियुक्ति हो, तो शिक्षा का विकास स्वत: उचित मार्ग पर चल पड़ेगा. सिर्फ करोड़ों और अरबों की बिल्डिंग या ढेर सारे शिक्षक की नियुक्ति कर लेने से कुछ नहीं सुधरनेवाला.
आयोग का गठन भी सरकार की निराधार और गलत दिशा में किया गया प्रयास साबित होगा. अगर शिक्षक सही हों, तो पेड़ के नीचे भी शिक्षा की लौ प्रज्ज्वलित हो सकती है. वरना उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लाने हेतु मंत्रालय और रेगुलेटरी संस्थाएं विश्वविद्यालयों और काॅलेजों से रिपोर्ट मंगवाती रहती हैं और शिक्षण गुणवत्ता के इस पेपर-वर्क की बलिवेदी पर शिक्षा शहीद होती रहती है.
महान दार्शनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में आदर्श राज्य की परिकल्पना करते हुए कहा है कि राज्य सर्वप्रथम एक शिक्षण संस्थान है. अगर राज्य अपने नागरिकों को उचित और रोजगार-परक शिक्षा देने में असमर्थ है, तो उस राज्य का विनाश निश्चित है. राज्य का मुख्य कार्य नागरिक-निर्माण है और वह केवल उचित व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से ही संभव है.
एक राज्य के नागरिक अगर चरित्रवान एवं कार्यशील हों, तो वहां अच्छे से अच्छे कानून भी अप्रासंगिक हो जायेंगे. इसके उलट अगर राज्य के नागरिक और शिक्षा-व्यवस्था ही भ्रष्ट हो, तो सख्त से सख्त कानून भी उस राज्य को श्रेष्ठ नहीं बना सकता. एक शिक्षक की गलती राष्ट्र के चरित्र में झलकती है. भारतवर्ष इसका अपवाद नहीं है.
अत: वर्तमान सरकार को चाहिए की शिक्षा-व्यवस्था के अंदर के सड़ांध को दूर करे. ऐसे लोगों को उच्च पदों पर आसीन करे, जो इसके पीछे भागते नहीं हो, लॉबिंग नहीं करते हों और पद को खरीदने का जुगाड़ नहीं लगाते हों.
अगर उच्च पदों पर सिर्फ ऐसे लोगों को काबिज कर दिया जाये जो सही मायने में शिक्षा की कदर करते हों; बुद्धिजीवी हों और साथ में उनकी प्रशासनिक क्षमता भी हो; जो जातिवाद, धर्मवाद, लिंग-भेद, क्षेत्रवाद, या भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर शिक्षा के हित में कार्य करते हों, तो यकीन मानिए कि भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली विश्व की श्रेष्ठतम शिक्षा प्रणाली हो जायेगी.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel