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अनपेक्षित नहीं थे ये नतीजे

रामबहादुर राय वरिष्ठ पत्रकार [email protected] पांच राज्यों के चुनाव में जिस तरह का जनादेश जनता ने दिया है और भाजपा के हाथ से खुद अपने ही राज्य फिसलते चले गये हैं, वह भाजपा के लिए थोड़ा चिंतन का विषय है. यह अनपेक्षित नहीं था, ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस बढ़त बनायेगी, लेकिन इस तरह […]

रामबहादुर राय
वरिष्ठ पत्रकार
पांच राज्यों के चुनाव में जिस तरह का जनादेश जनता ने दिया है और भाजपा के हाथ से खुद अपने ही राज्य फिसलते चले गये हैं, वह भाजपा के लिए थोड़ा चिंतन का विषय है. यह अनपेक्षित नहीं था, ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस बढ़त बनायेगी, लेकिन इस तरह नतीजों में जीत से भाजपा को थोड़ा चिंतन करने पर मजबूर कर दिया है. फिर भी मैं कहूंगा कि कांग्रेस को मिली इस जीत से भाजपा का सफाया नहीं हो गया है. कांटे की टक्कर और नजदीकी मामलों से कांग्रेस को जीत मिली है, इसलिए भाजपा इन राज्यों में एक दमदार विपक्ष के रूप में अपनी बड़ी भूमिका निभायेगी.
राजस्थान में कांग्रेस के अशोक गहलोत दावा कर रहे थे कि भाजपा 50 सीट पर सिमट जायेगी, लेकिन अगर आप वोट शेयर देखें तो लड़ाई में कुछ ही प्रतिशत का अंतर रहा है. हां, मध्य प्रदेश में मुकाबला बहुत जबर्दस्त रहा है. वहीं छत्तीसगढ़ का जो नतीजा है, जिसमें कांग्रेस को बहुमत मिला है, वह जरूर चौंकानेवाला है और भाजपा को इसकी उम्मीद कतई नहीं थी. मुझे लगता है कि छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और मायावती के एक साथ चुनाव लड़ने से वहां लड़ाई त्रिकोणीय लग रही थी- भाजपा एक तरफ, कांग्रेस दूसरी तरफ और जोगी-मायावती गठबंधन तीसरी तरफ. लेकिन, इस त्रिकोणीय लड़ाई में ट्राइबल वोट सीधा-सीधा कांग्रेस को मिल गया है, जिसके चलते भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ.
इन नतीजों में भाजपा की हार के कई कारण हो सकते हैं. खास तौर पर, अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कारण हो सकते हैं. राजस्थान में वसुंधरा राजे से पार्टी और समर्थकों की नाराजगी चल रही थी, यह एक बड़ा कारण है कि भाजपा को राजस्थान में मुंह की खानी पड़ी. छत्तीसगढ़ में दूसरा कारण है- वहां त्रिकोणीय चुनाव लड़ा गया, जिसका फायदा कांग्रेस को ज्यादा मिला. मध्य प्रदेश में चूंकि शिवराज सिंह चौहान तीन बार से मुख्यमंत्री रहे हैं. वहां आत्मविश्वास ज्यादा था कि जीत तो निश्चित है, इसलिए भाजपा ने मध्य प्रदेश में ज्यादा जोर नहीं लगाया. लेकिन, मध्य प्रदेश में भाजपा का संगठन इतना मजबूत है कि वहां लड़ाई कांटे की बन गयी, क्योंकि जाहिर तौर पर कांग्रेस ने ज्यादा मेहनत करने की कोशिश की.
इन नतीजों से यह बात साफ निकलकर सामने आ रही है कि इन नतीजों के कांग्रेस के पक्ष में जाने से कांग्रेस का हौसला बढ़ेगा और कांग्रेस अपने नेतृत्व को कुछ मजबूत करेगी. अभी साल 2019 का चुनाव हमारे सामने है.
हालांकि, आम चुनाव में इन नतीजों का प्रभाव बहुत कम होगा, एेसा नहीं कह सकते कि बिल्कुल भी असर नहीं डालेगा. चूंकि आम चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जायेगा, इसलिए उस पर इन नतीजों का ज्यादा असर पड़ेगा, ऐसा नहीं माना जा सकता. हां, इतना जरूर है कि गैर-भाजपा दलों का विपक्षीय समूह इन चुनाव के नतीजों के संदर्भ को उठाकर चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करेगा. दरअसल, राष्ट्रीय स्तर पर माहौल बनाने के लिए विपक्ष के पास यही वह उपलब्धि है, जिसके जरिये वह चुनाव मैदान में उतरेगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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