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आरक्षण, दलित दर्द और हिंदू

तरुण विजय वरिष्ठ नेता, भाजपा [email protected] यह निर्विवाद सत्य है कि यदि बाबा साहब आंबेडकर की पहल तथा संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था न होती, तो अनुसूचित जाति का हिंदू समाज या तो धर्मांतरित हो गया होता अथवा श्रीराम का नाम अधरों पर लिए आज भी कचरा बीन रहा होता. हिंदुओं की संवेदना (बड़ी जाति के हिंदू) […]

तरुण विजय
वरिष्ठ नेता, भाजपा
यह निर्विवाद सत्य है कि यदि बाबा साहब आंबेडकर की पहल तथा संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था न होती, तो अनुसूचित जाति का हिंदू समाज या तो धर्मांतरित हो गया होता अथवा श्रीराम का नाम अधरों पर लिए आज भी कचरा बीन रहा होता. हिंदुओं की संवेदना (बड़ी जाति के हिंदू) के दो पहलू हैं.
एक वे, जो जाति व्यवस्था को अब काल बाह्य मानते हैं, विवाह, खान-पान, आने-जाने तथा मैत्री संबंध में जाति का भेद नहीं मानते और हिंदुओं को बचाने के लिए सामाजिक समरसता के क्षेत्र में काम करते हैं. इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, माता अमृतानंदमयी, गायत्री परिवार, स्वामिनारायण, आर्य समाज आदि कुछ हिंदू संगठन गिने जा सकते हैं, लेकिन दूसरा वर्ग, जो जाति भेद मानता है, अखबारों के रविवासरीय परिशिष्टों में वैवाहिक विज्ञापनों में अपनी जाति, गोत्र का परिचय देकर बेटे-बेटी के लिए रिश्ता ढूंढता है और सरकारी दफ्तरों तथा अन्यत्र हर बुराई की जड़ में आरक्षण व्यवस्था ढूंढता है. करोड़पति, अरबपति लोग भी राजनीतिक नेताओं की छत्रछाया ढूंढते हैं.
अमीरों के बाबा अमीरों का ही काम करते हैं, इनका बाकी समाज से उतना ही लेना-देना होता है, जितना कभी फोटोग्राफर और मीडिया वालों के लिए जरूरी हो. ये अतिधनाढ्य, तथाकथित अतिकुलीन, बड़ी-बड़ी हांकनेवाले जाति प्रेमी हिंदू समाज को सदियों से संकट में डालते आये हैं.
इनका अहंकार थोड़ा कम होता, तो डॉक्टर अांबेडकर हिंदुआें को अपनी कटु आलोचना का शिकार बनाते हुए बौद्ध मत न अपनाते. बौद्ध मत अपना कर तथा आरक्षण लागू करवा कर डॉ आंबेडकर ने हिंदुओं का रक्षा कवच तैयार किया और हिंदुओं पर इतना बड़ा उपकार किया, जो यह फाइव स्टार बाबा लोग कई जन्म लेकर भी नहीं कर सकते.
ऐसा कौन-सा हिंदू महाधनपति है, जिसने यह कहा हो कि अनुसूचित जाति, जनजाति के लोग अपने रक्तबंधु, मेरे हिंदू भाई हैं और उन्हें भारत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मिले, इसके लिए मैं विद्यालय खोल रहा हूं? हर बड़ा उद्योगपति अपने जैसे स्तर के लिए ही करोड़ों रुपये लगाकर विद्यालय और छात्रावास खोलता है तथा शिक्षा चूंकि कर मुक्त है, इसलिए करोड़ों रुपये लगा कर अरबों कमाता है.
अगर अारक्षण न होता, तो ये तमाम महान हिंदू, जो सौ-सौ करोड़ रुपये लगा कर एक-एक मंदिर बनाते हैं, क्या अनुसूचित जाति के हिंदुओं के लिए वैसे ही विद्यालय खोलते, जैसे एक बड़े उद्योगपति का मुंबई का विद्यालय है, जिसमें शाहरुख के बच्चे पढ़ने जाते हैं? केवल और केवल यदि किसी एक हिंदू संगठन ने समाज के साधारण, मध्यमवर्गीय लोगों से थोड़ा-थोड़ा धन एकत्र कर अनुसूचित जाति और जनजाति के गरीब बच्चों के लिए सेवा कार्य, विद्या केंद्र, छात्रावास, उद्योग केंद्र आदि का विस्तार किया है, तो उस संगठन का नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. मैं स्वयं वनवासी कल्याण आश्रम में पांच वर्ष तक प्रचारक रहा.
मोहन जी भागवत ने मेरे साधारण काम को एक स्वयंसेवक का ही काम बताया. भागवत जी ने कभी आरक्षण का विरोध नहीं किया और संघ के सर्वोच्च अधिकारी के बयान पर राजनीति हमारे मन की कलुषता को ही दर्शाती है.
हम कभी यह सहन नहीं कर सकते कि हिंदू समाज में पाखंड और कुरीतियों का चलन हो. हम सांप को दूध पिला सकते हैं, चींटी को आटा खिलाने मीलों घूमते हैं, पत्थरों को देवता बना कर जल चढ़ाते हैं, पर जीवित मनुष्य अपने अधरों पर राम नाम लिये हमारे घर में नहीं आ सकता, यदि वह छोटी जाति का है.
वास्तव में छोटी और नीच जाति के लोग वे हैं, जो जाति के आधार पर मनुष्य और मनुष्य के बीच भेदभाव करते हैं. उन्हें किसने अधिकार दिया कि वे अपनी जाति को बड़ा बताएं और दूसरे की जाति को छोटा?
इस पाखंड और जाति के अहंकार के विरुद्ध अनेक हिंदू महापुरुषों ने आंदोलन किये. ऋषि दयानंद, वीर सावरकर, महात्मा फुले, छत्रपति साहू जी महाराज, श्रीमत शंकरदेव, महात्मा अय्यंकाली, श्री नारायण गुरु जैसे नाम तो हैं ही, पर जो काम हुआ, उसके अलावा जो काम बाकी है, वह आज भी बहुत बड़ा और लंबा है. हिंदू तो आदिशंकर का वह प्रकरण भी भूल गये, जब चांडाल के भेष में उन्हें शिव मिले और तब आदिशंकर ने चांडाल के चरण स्पर्श किये. चांडाल चांडाल ही रहा और ब्राह्मणों का जातिगत अहंकार बना रहा.
यह स्वीकार करना होगा कि बहुत बड़ी मात्रा में जातिगत अहंकार टूटा है और उसका कारण सामाजिक आंदोलनों के साथ-साथ राजनीति में अनुसूचित जाति के नेताओं की प्रभुता का बढ़ना तथा सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लोगों का शिखर पदों पर पहुंचना भी है. हमारे राष्ट्रपति भी अनुसूचित जाति से हैं और इसका एक संदेश जाता ही है.
मायावती, रामविलास पासवान, थावरचंद गहलोत, अर्जुन राम मेघवाल जैसे अनुसूचित जाति के नेताओं का राजनीति में तेजतर्रार तेवर के साथ आना बड़ी बात है. मायावती को आप जो भी कहें, लेकिन अनुसूचित जाति के लोगों को हिम्मत से खड़ा करने और बड़ी जाति के लोगों को अपने चरण छुआने के लिए लाइन में खड़ा करने का काम तो कर ही दिया.
आरक्षण के दर्पण में हिंदुओं को अपना चेहरा देखना चाहिए और एक दिन दलित के नाते साधारण जिंदगी जीने का प्रयास करना चाहिए. तब समझ में आ जायेगा कि आरक्षण क्यों जरूरी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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