22.4 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

ई-कॉमर्स व टेक कंपनियों पर टैक्स

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू [email protected] वर्ष 2018-19 के बजट अनुमानों की तुलना में वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमानों के अनुसार केंद्र सरकार के कुल राजस्व में 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये की कमी आयी है. अधिकांशतः यह कमी जीएसटी और कारपोरेट टैक्स की कम प्राप्तियों के कारण हुई. यह कमी बजट अनुमानों […]

डॉ अश्वनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
वर्ष 2018-19 के बजट अनुमानों की तुलना में वर्ष 2018-19 के संशोधित अनुमानों के अनुसार केंद्र सरकार के कुल राजस्व में 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये की कमी आयी है. अधिकांशतः यह कमी जीएसटी और कारपोरेट टैक्स की कम प्राप्तियों के कारण हुई. यह कमी बजट अनुमानों के 11 प्रतिशत के बराबर है.
ऐसे में राजकोषीय प्रबंधन के बारे में चिंता होना स्वाभाविक हो जाता है. सरकार के पास ऐसे माहौल में बहुत कम विकल्प बचते हैं और अंत में इसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ता है, क्योंकि सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बाल एवं महिला विकास सरीखे खर्चों में कंजूसी करनी पड़ती है, तो दूसरी ओर इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण के कार्यों में भी बाधा आ जाती है.
ऐसे में सरकार द्वारा धन जुटाने की जल्दबाजी भी देखी जा रही है. सरकार बिमल जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर आरबीआइ से 1.76 लाख करोड़ रुपया तुरंत प्राप्त करने में सफल हो गयी है. लेकिन जानकारों का मानना है कि वर्तमान में मांग में आयी मंदी और धीमेपन से बचने के लिए एक तरफ सरकारी खर्च बढ़ाने की जरूरत है, तो दूसरी ओर बिजनेस को राहत देने के लिए टैक्स में छूट की भी जरूरत है.
वर्ष 2018-19 के बजट के संशोधित अनुमानों के अनुसार 12 लाख करोड़ रुपये की प्राप्तियां होनी अपेक्षित थी, लेकिन देखा गया कि वास्तविक प्राप्तियां सिर्फ 11.18 लाख करोड़ रुपये की ही हुई, यानी 82 हजार करोड़ रुपये की कमी. यह बड़ी चिंता का विषय है. देखना होगा कि कॉरपोरेट टैक्स की प्राप्ति भी कम हुई और आयकर की भी. कारण यह बताया जा रहा है कि लघु उद्योगों का लाभ कम हुआ है. उधर कॉरपोरेट टैक्स की लक्ष्य से कम प्राप्ति के बारे में विशेषज्ञ चुप हैं.
पिछले सालों में कॉरपोरेट टैक्स से लगातार ज्यादा प्राप्तियां हो रही थी. ऐसा नहीं कि कॉरपोरेट बिजनेस कम हुआ है. लगातार सभी बड़े कॉरपोरेट का व्यवसाय तेजी से बढ़ रहा है, तो ऐसा क्यों कि कॉरपोरेट टैक्स की प्राप्तियां नहीं हो पा रही?
इसका कारण यह है कि बड़ी संख्या में उभरते हुए कॉरपोरेट टैक्स नहीं दे रहे. ये कॉरपोरेट टैक कंपनियां हैं, ई-कामर्स कंपनियां हैं या बड़ी विदेशी साॅफ्टवेयर कंपनियां. यह सर्वविदित ही है कि देश का खुदरा व्यापार लगातार बड़ी विदेशी ई-कामर्स कंपनियों के हाथ में जाता जा रहा है. इसी प्रकार ट्रैवल, टैक्सी आदि सेवाओं के क्षेत्र में भी बड़े कॉरपोरेट एग्रीगेटर आ गये हैं.
कई टेक कंपनियां जैसे गूगल आदि हैं, जो पहले टैक्स नहीं देती थीं, कुछ समय पहले इन कंपनियों से टैक्स वसूलने का प्रयास शुरू हुआ. सरकार इंटरनेट कंपनियों फेसबुक, गूगल इत्यादि पर दबाव बना रही है कि वे अपना डाटा भारत में रखें. इसका मकसद यह तो है ही कि इससे देशवासियों के महत्वपूर्ण डाटा का संरक्षण हो पायेगा, यह इसलिए भी जरूरी है कि इसके माध्यम से इन डिजिटल फर्मों से टैक्स भी वसूला जा सकेगा.
अभी तक ये कंपनियां अपना सारा डाटा विदेशी सरवरों में रखती हैं, और अपना सारा व्यवसाय विदेशों में ही दिखाती हैं, चाहे वो आमदनी भारत में उनके व्यवसाय से ही प्राप्त हो रही हो. इस आमदनी में महत्वपूर्ण हिस्सा इन कंपनियों को विज्ञापनों से होनेवाली आय का है.
अभी तक अपने व्यवसाय को विदेशों से हुआ दिखा कर वे भारत में टैक्स देने से बचती रही हैं. भारत सरकार ने अपने 2016-17 के बजट में विदेशी ई-काॅमर्स कंपनियों, जो भारत के निवासी नहीं मानी जाती, की आमदनी के छह प्रतिशत के बराबर इक्वलाइजेश्न टैक्स लगाने का फैसला किया. लेकिन यह इक्वालाइजेशन टैक्स इन कंपनियों के उसी आमदनी पर लगेगा, जो उन्हें व्यवसायियों से प्राप्त होंगी. निजी उपभोक्ताओं से प्राप्त होनेवाली आमदनियों पर यह प्रावधान नहीं है. केवल वही व्यवसायी जो इन कंपनियों से सेवाएं प्राप्त करते हैं, उन्हें छह प्रतिशत राशि कर के रूप में रखकर उसे सरकारी खजाने में जमा करना होगा. इस प्रकार के टैक्स को ‘गूगल टैक्स’ कहा जा रहा है.
टेक कंपनियों पर टैक्स लगाने का प्रयास आधा-अधूरा है. इन कंपनियों को बहुत बड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं को सेवाएं देने से आमदनी होती है.
तमाम प्रकार के एप्स और साॅफ्टवेयर उपभोक्ताओं को बेचे जाते हैं और उस आमदनी पर कोई टैक्स नहीं दिया जाता. उधर ई-काॅमर्स कंपनियां बड़ी मात्रा में अपनी आर्थिक ताकत के बल पर भारी डिस्काउंट देते हुए लगातार अपना नुकसान कर रही हैं और भारतीय आयकर प्रावधानों के अनुसार टैक्स नहीं देती.
वास्तव में ये कंपनियां अपनी आर्थिक ताकत के बल पर डिस्काउंट देते हुए बाजार और डाटा पर कब्जा कर रही हैं. इस प्रकार उनका मूल्य लगातार बढ़ रहा है. पिछले वर्ष अप्रैल में फ्लिपकार्ट कुल 20 अरब डॉलर के मूल्य के साथ बिकी. यानी प्रमोटरों को तो खासा लाभ हो रहा है, लेकिन ये कंपनियां आयकर देने से बच रही हैं. विशेषज्ञों की ओर से लगातार सुझाव दिया जा रहा है कि ऐसी कंपनियों पर उनके व्यवसाय की मात्रा के आधार पर न्यूनतम टैक्स दर लगाकर उनसे आयकर वसूला जाये.
हमें समझना होगा कि पिछले लंबे समय से इन क्षेत्रों में आय बढ़ रही है, लेकिन सरकारी खजाने को उसका कोई लाभ नहीं हो रहा. ऐसी चिंता पूरे विश्व में है. ‘ओईसीडी’ देशों में इसके बारे में प्रयास शुरू हो चुके हैं और फ्रांस से इस बाबत पहल की है. भारत को भी इसके बारे में विचार करना होगा, तभी सरकारी राजस्व में आ रही कमी की भरपाई हो पायेगी.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel