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‘मेक इन इंडिया’ परक बजट

डॉ अश्वनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू [email protected] पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था में धीमेपन, जीडीपी के लगातार घटने के अनुमानों, बेरोजगारी, सरकारी राजस्व में लगातार कमी की स्थिति में कहा जा रहा था कि इस बार केंद्रीय बजट कई दशकों का सबसे कठिन बजट होगा. अपने ढाई घंटे से अधिक लंबे भाषण में वित्त मंत्री […]

डॉ अश्वनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था में धीमेपन, जीडीपी के लगातार घटने के अनुमानों, बेरोजगारी, सरकारी राजस्व में लगातार कमी की स्थिति में कहा जा रहा था कि इस बार केंद्रीय बजट कई दशकों का सबसे कठिन बजट होगा. अपने ढाई घंटे से अधिक लंबे भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था के लगभग सभी हिस्सों को छुआ. विपक्ष का आरोप है कि सबके लिए कुछ-कुछ कहा गया, लेकिन वास्तविक समस्याओं के बारे में कोई समाधान नहीं है.
सरकार अपने वायदे को दोहराती रही है कि 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना है. इस बाबत पूर्व में ‘साॅयल हेल्थ कार्ड’, फसल बीमा योजना, लागत में 50 प्रतिशत जोड़कर समर्थन मूल्य, डेयरी और मत्स्य को प्रोत्साहन, सिंचाई योजनाओं समेत कई उपायों के बारे में सरकार आगे भी बढ़ी. सीधे खाते में किसान सम्मान निधि देने को भी सराहना मिली. इस बजट में इसी क्रम में 16 बिंदुओं की एक कार्ययोजना के साथ 2.83 लाख करोड़ रुपये का आवंटन कृषि सहायक गतिविधियों, सिंचाई एवं ग्रामीण विकास के लिए रखा गया है. जल संकटग्रस्त 100 जिलों में वृहद सिंचाई योजना से राहत मिल सकती है.
किसान बंजर, पथरीली और बेकार भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए सरकार मदद देगी, जिससे किसान अतिरिक्त बिजली को बेच भी सकेंगे. कोल्ड स्टोरेज समेत भंडारण हेतु विशेष प्रावधान हैं. बजट में एक ओर तो ज्यादा भंडारगृह बनाने की योजना है, साथ ही साथ इन्हें भंडारगृह विकास एवं नियामक प्राधिकरण के अंतर्गत लाने की योजना है. ऐसे भंडारगृह इलेक्ट्राॅनिक रसीद जारी करते हैं, जिसके आधार पर किसान बैंकों से ऋण भी ले सकते हैं.
इस प्रावधान को किसानों को ऋणग्रस्तता से राहत देनेवाला बड़ा कदम माना जा सकता है. इनके अतिरिक्त दुग्ध प्रसंस्करण की क्षमता को दोगुना करना, 20 लाख किसानों को सोलर वाटर पंप लगाने के लिए सब्सिडी देना और रासायनिक खादों के उपयोग को घटाने हेतु खाद सब्सिडी स्कीम में बदलाव कर सीधे सब्सिडी देना बड़े कदम हैं.
इस बार कृषि ऋणों को 15 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया है और मत्स्य उत्पादन को 2022-23 तक 200 लाख टन तक बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना बनी है. पहली बार कृषि उत्पादों को बर्बादी से बचाने के लिए रेलवे ने ‘किसान रेल’ चलाने की भी योजना है.
पूर्ववर्ती सरकारों के मुक्त व्यापार सिद्धांत से अभिभूत होने के कारण लगातार कई मुक्त व्यापार समझौते किये गये. यही नहीं, आयात शुल्कों को भी लगातार घटाया गया और तर्क यह दिया गया कि इससे हमारे उद्योग अधिक प्रतिस्पर्धी हो जायेंगे. लेकिन असर यह हुआ कि आयात की बाढ़ आ गयी और हमारा व्यापार घाटा पिछले 20 सालों में 30 गुणा से ज्यादा बढ़ गया. हाल ही में आरसीइपी मुक्त व्यापार समझौते से बाहर आकर सरकार ने अपनी मंशा स्पष्ट की कि अब मुक्त व्यापार नहीं, बल्कि अपने उद्योगों के संरक्षण की नीति अपनायी जायेगी.
बजट में मुक्त व्यापार समझौतों में उत्पत्ति का नियम लागू कर चीनी आयातों पर अंकुश लगाने तथा बड़ी संख्या में उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा कर देश के उद्योगों को संरक्षण प्रदान करते हुए घरेलू उत्पादन और रोजगार बढ़ाने का काम किया गया है. सरकार के इन कदमों से ‘मेक इन इंडिया’ में गति आयेगी.
वित्तमंत्री ने शिक्षा में विदेशी निवेश की अनुमति का प्रस्ताव रखा है. गौरतलब है कि लंबे समय से विदेशी विश्वविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों को भारत में लाने की कवायद चल रही है. लेकिन उसका विरोध भी हो रहा है.
बजट में शिक्षण संस्थानों को विदेशी ऋण लेने की भी अनुमति दी गयी है. कहा जा रहा है कि इससे प्रतिभावान शिक्षकों को लाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. लेकिन यह स्वागतयोग्य कदम नहीं है.
आज जब देश में नयी शिक्षा नीति लाकर शिक्षा के स्तर बेहतर बनाने का प्रयास जारी है, विदेशी संस्थाओं और शिक्षा पद्धति लाने का नुकसान हो सकता है. इससे नामी विश्वविद्यालयों और संस्थानों की जगह विदेशी शिक्षा की दुकानें खुलने की आशंका है. विदेशी ऋण लेना सस्ता होने का तर्क सही नहीं है. जब रुपये का अवमूल्यन होता है, तो उसमें विदेशी ऋण की अदायगी का बोझ बढ़ जाता है और ऐसे में शिक्षा संस्थान उस बोझ को उठा पाने में सक्षम नहीं होंगे.
इससे पहले भी भारतीय उद्योगों द्वारा व्यावसायिक विदेशी ऋण लेने का नुकसान हो चुका है. ऐसा लगता है कि विदेशी निवेश के लिये सरकार का मोह बरकरार है और इस बजट में भी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए और अधिक रियायतें दी गयी है. इससे विदेशी निवेशकों का हमारे शेयर बाजारों पर कब्जा और बढ़ेगा तथा हमारा देश उन पर और अधिक निर्भर हो जायेगा.
वित्तमंत्री ने कहा है कि व्यक्तिक करदाताओं को एक विकल्प दिया जायेगा, जिसमें वे कम दर पर टैक्स देंगे, लेकिन शर्त यह होगी कि उन्हें बचत और अन्य प्रकार की छूटें छोड़नी पड़ेंगी. लेकिन यदि करदाता इस विकल्प को स्वीकार कर बचत करना बंद कर देता है तो स्वाभाविक रूप से देश में बचत घटेगी. पिछले कुछ समय से देश में बचत और निवेश घटा है. सरकार के इस कदम से देश मे बचत संस्कृति पर दुष्प्रभाव पड़ेगा, जो सही नहीं होगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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