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‘मेड बाय इंडियंस’ की हो पहल

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री ‘मेक इन इंडिया’ का सपना साकार होना चाहिए, लेकिन इसके लिए विदेशी निवेश को आमंत्रित करना खतरनाक है, क्योंकि जितनी मात्र में विदेशी निवेश आ रहा है, उससे ज्यादा गैरकानूनी रास्तों से जा रहा है. इसके अन्य नकारात्मक पहलू भी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर विदेशी निवेशकों का […]

डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
‘मेक इन इंडिया’ का सपना साकार होना चाहिए, लेकिन इसके लिए विदेशी निवेश को आमंत्रित करना खतरनाक है, क्योंकि जितनी मात्र में विदेशी निवेश आ रहा है, उससे ज्यादा गैरकानूनी रास्तों से जा रहा है. इसके अन्य नकारात्मक पहलू भी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर विदेशी निवेशकों का आह्वान किया था कि वे भारत में आकर माल का उत्पादन करें. इस आह्वान से मैं असमंजस में था. ऐसा लगा कि वे यूपीए3 सरकार के मुखिया के रूप में बोल रहे थे. अब भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव मुरलीधर राव ने स्पष्ट किया है कि अर्थव्यवस्था से विदेशी निवेशकों को बाहर नहीं रखा जायेगा, परंतु मुख्य इंजन विदेशी निवेश नहीं होगा. घरेलू उद्यमियों की प्रतिभा निखारने के प्रति प्रधानमंत्री समर्पित हैं. घरेलू और विदेशी निवेशकों के बीच मधुर संबंध बनाया जा सकता है. लेकिन मोदी और राव के अलग-अलग वक्तव्यों से भ्रम पैदा होता है. मेक इन इंडिया में विदेशी निवेश की भूमिका स्पष्ट नहीं हो रही है.
मैंने 15 वर्ष पूर्व अध्ययन किया तो पाया कि सीधे विदेशी निवेश का मेजबान अर्थव्यवस्था पर तात्कालिक प्रभाव सकारात्मक पड़ता है, परंतु दीर्घकाल में यह नकारात्मक हो जाता है. मिनीसोटा विश्वविद्यालय द्वारा किये गये अध्ययन में पाया गया कि सीधे विदेशी निवेश का आर्थिक विकास पर स्वतंत्र प्रभाव नहीं पड़ता है. लेकिन यदि साथ-साथ शिक्षा, खुला व्यापार आदि में भी सुधार हो तो कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. परंतु यह प्रभाव संदिग्ध रहता है चूंकि सकारात्मक प्रभाव विदेशी निवेश का है या खुले व्यापार का यह संशय बना रहता है.
श्यामपुर सिद्घेश्वरी महाविद्यालय, कोलकाता के अध्ययन में कहा गया है कि आर्थिक विकास पहले होता है और इसके कारगर होने पर विदेशी निवेश आता है. अत: विकास को बढ़ाने में विदेशी निवेश सहायक नहीं है. हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के अध्ययन के मुताबिक, विदेशी निवेश का आर्थिक विकास पर प्रभाव स्पष्ट नहीं है. खनिज आदि क्षेत्रों में प्रभाव नकारात्मक है, जबकि मैन्यूफैरिंग में सकारात्मक है. सभी अध्ययनों से यही ध्वनि निकलती है कि विदेशी निवेश का कुल प्रभाव संदिग्ध है. विशेष देशों से एवं विशेष क्षेत्रों में ही यह कारगर है. अत: नरेंद्र मोदी को ‘मेक इन इंडिया’ का नारा उन विशेष क्षेत्रों तक सीमित कर देना चाहिए, जहां प्रभाव सकारात्मक होने के पुख्ता लक्षण उपलब्ध हैं.
मेक इन इंडिया का नारा देने के दो कारण हैं-पूंजी तथा तकनीक. विदेशी निवेश के जिन प्रस्तावों में तकनीक के हस्तांतरण का पुट है, उन्हें स्वीकारना चाहिए. समस्या उन प्रस्तावों में उत्पन्न होती है, जहां तकनीकी पुट कम और पूंजी का पुट ज्यादा होता है. जैसे- हिंदुस्तान लीवर द्वारा भारत कंपनी टामको को खरीदने से पूंजी मिली, लेकिन तकनीक पूर्ववत् रही. अपने देश में पूंजी उपलब्ध है और प्रचुर मात्र में इसका गैरकानूनी प्रेषण हो रहा है. ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी के मुताबिक, 2006 में विकासशील देशों से 858 अरब डॉलर गैरकानूनी रास्तों से बाहर गया.
विश्व बैंक के अनुसार, 2010 में सभी विकासशील देशों को कुल 506 अरब डॉलर का विदेशी निवेश मिला. यानी विदेशी निवेश से मिलनेवाले 506 अरब डॉलर के सामने 858 अरब डॉलर गैरकानूनी रास्तों से बाहर गया. ऐसे में 506 अरब डॉलर के विदेशी निवेश के पीछे भागने के स्थान पर विकासशील देशों से रिस रहे 858 अरब डॉलर को रोकना चाहिए. इस तरह गैरकानूनी रास्तों से बाहर जा रही रकम में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हाथ है. फिनलैंड सरकार द्वारा समर्थित अध्ययन में कहा गया है कि विकासशील देशों में टैक्स की चोरी का बड़ा हिस्सा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारण है. यानी मेक इन इंडिया के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हम न्योता देकर अपनी पूंजी के गैरकानूनी पलायन को बढ़ा रहे हैं.
एनडीए सरकार ने देश से वादा किया है कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाया जायेगा. यानी सरकार मानती है कि देश की बड़ी मात्र में पूंजी बाहर जा रही है. यदि पूंजी की कमी है, तो विदेशी निवेश के पीछे भागने के स्थान पर उस रकम को शीघ्र वापस लाना चाहिए. मेक इन इंडिया का सपना साकार होना चाहिए, लेकिन इसके लिए विदेशी निवेश को आमंत्रित करना खतरनाक है. जितनी मात्र में विदेशी निवेश आ रहा है, उससे ज्यादा गैरकानूनी रास्तों से जा रहा है. अत: बहुराष्ट्रीय कंपनियों को न्योता देकर हम अपनी पूंजी के गैरकानूनी पलायन को बढ़ावा देंगे.
विदेशी निवेश का दायरा निर्धारित करने के लिए दूसरा पक्ष सामाजिक प्रभाव का है. जैसे विदेशी कंपनियों द्वारा फास्टफूड को बढ़ाया जाये या बीमारियों को लाइफस्टाइल के स्थान पर ड्रग्स के माध्यम से नियंत्रित किया जाये, तो सरकार को ऐसे निवेशकों को बाहर रखना चाहिए. सरकार को चाहिए कि विदेशी निवेश के प्रस्तावों की तकनीकी तथा सामाजिक ऑडिट कराये और उन्हीं प्रस्तावों को स्वीकृति दे, जिनमें उच्च तकनीकों के हस्तांतरण की व्यवस्था है तथा जिसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव न पड़ता हो. प्रधानमंत्री और राव के बयानों से पैदा हुए भ्रम को स्पष्ट करना चाहिए, जिससे देश एक मन होकर आगे बढ़े. मेक इन इंडिया में दूसरी लाइन जोड़नी चाहिए ‘मेड बाय इंडियंस’.
Prabhat Khabar Digital Desk
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