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‘मोदी वर्ष’ के बाद ‘नयी आशाओं का साल’

तरुण विजय राज्यसभा सांसद, भाजपा पिछला साल अगर दुनिया को चौंकाते हुए भारत के नये उदय की घोषणा का साल था, तो यह नया साल कठोर चुनौतियों के उस रास्ते पर चलेगा, जहां साधारण ग्रामीण जनता से लेकर बड़े उद्योगपति तक मांग करेंगे कि जो कहा था, उसे अब करके दिखाओ.. साल 2014 का एक-एक […]

तरुण विजय
राज्यसभा सांसद, भाजपा
पिछला साल अगर दुनिया को चौंकाते हुए भारत के नये उदय की घोषणा का साल था, तो यह नया साल कठोर चुनौतियों के उस रास्ते पर चलेगा, जहां साधारण ग्रामीण जनता से लेकर बड़े उद्योगपति तक मांग करेंगे कि जो कहा था, उसे अब करके दिखाओ..
साल 2014 का एक-एक दिन और एक-एक क्षण मानो मोदीमय हो गया.
लोकसभा चुनाव के तनाव, परिणामों के रोमांच और शपथ ग्रहण की नयी सुबह के बाद अब लोग अपनी आशाओं और उम्मीदों को पूरा होते देखनेवाले नये वर्ष में प्रवेश कर गये हैं. पिछला साल अगर दुनिया को चौंकाते हुए भारत के नये उदय की घोषणा का साल था, तो यह नया साल कठोर चुनौतियों के उस रास्ते पर चलेगा, जहां साधारण ग्रामीण जनता से लेकर बड़े उद्योगपति तक मांग करेंगे कि जो कहा था, उसे करके दिखाओ, अब और वक्त नहीं है कि उम्मीदों की नयी घोषणाएं सुनी जायें. हमें यथार्थ के खुरदरे धरातल पर उम्मीदों की घोषणाओं को चरितार्थ होते देखना है.
इसलिए 2015 मोदी सरकार के लिए ढेर सारी चुनौतियों के साथ-साथ सावधानियों का वर्ष रहेगा. मोदी विरोधी तत्व देश को विकास की राह से भटका कर सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव की राह पर ले जाने की कोशिशें करेंगे. उनकी कोशिश होगी कि किसी भी तरह कुछ ऐसे छोटे-छोटे मुद्दे भड़काये जायें और ऐसी स्थिति पैदा की जाये जिसमें आर्थिक विकास के नये मुहावरे कुछ और ही किस्म के कोलाहल में दब जायें. चुनौती इस बात की भी रहेगी कि 2015-16 का बजट वास्तविक अर्थो में मोदी सरकार का पहला बजट होगा.
पिछला बजट तो महज 6-7 महीनों के लिए था, जो मोटे तौर पर पिछली सरकार की आर्थिक नीतियों को ही प्रतिबिंबित कर रहा था. लेकिन, इस बार के बजट के वक्त लोगों की नजरें इस बात पर टिकी होंगी कि किसानों, मजदूरों, गृहिणियों के लिए राहत के क्या-क्या प्रस्ताव लाये जायेंगे, ‘मेक इन इंडिया’ और स्मार्ट शहरों के लिए क्या-क्या प्रावधान किये जायेंगे, जिनसे रोजगार भी बढ़े और सकल घरेलू उत्पाद की दर में भी वृद्धि हो, साथ ही भारत का चेहरा प्रगतिशीलता से चमकता दिखे.
इस समय जिस प्रकार से लोग एक जादुई करिश्मे की उम्मीद कर रहे हैं, उसके प्रति बुद्धिमानी यही होगी कि तनिक संयम के साथ उम्मीदों के चिराग जलते रखे जायें. साठ साल के मलबे और दफ्तरी र्दुव्‍यवस्था में बदलाव का दौर शुरू हो गया है. लेकिन जैसा कि एक शायर ने कहा है कि- ‘थमते-थमते थमेंगे आंसू, ये रोना है कोई हंसी तो नहीं.’ भ्रष्टाचार और लकवाग्रस्त सरकारी व्यवस्था को जनोन्मुख बनाने में हर उस व्यक्ति का योगदान चाहिए होगा, जो इस सरकार को सफल होते देखना चाहता है- फिर चाहे वह सांसद, विधायक या मंत्री हों अथवा नगर पार्षद या साधारण अध्यापक या कार्यकर्ता. जब तक अपने-अपने स्तर पर हम नरेंद्र मोदी बनने की हिम्मत और जोश नहीं रखेंगे, तब तक धरातल पर जल्दी से नतीजे आने कठिन होंगे. पिछले दिनों एक पूर्व वायुसेनाध्यक्ष मुझे मिले, जिन्होंने हैरत भरे स्वर में मुझसे कहा- इज मोदी ए रियलिटी?
यानी क्या मोदी का प्रधानमंत्री बनना सच में एक वास्तविकता है? यह सवाल इसलिए था, क्योंकि हताशा और राजनेताओं के संपूर्ण निराशा के माहौल में तमाम बाधाओं को पार करते हुए नरेंद्र मोदी जैसा व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है, यह विश्वास करना ही मानो मुश्किल हो गया था. इसलिए मोदी सरकार की सफलता न तो नरेंद्र मोदी के लिए और न ही भाजपा के लिए इतनी जरूरी है, जितनी इस सफलता की देश को जरूरत है. अगर इस सरकार के कामकाज में कहीं कोई कमी आती है, तो वह देश के भविष्य के लिए बहुत बड़ा आघात होगा. सफल होने के सिवाय मोदी सरकार के पास कोई और दूसरा विकल्प है ही नहीं. 2015 इसी उम्मीद को मजबूती देने और लोगों के सपनों को इमारत में तब्दील करने वाला साबित होगा, यह हम सबकी कामना है.
अथाह गरीबी, खेती के क्षेत्र में पिछड़ेपन, बुद्धिमत्ता और कौशल के बावजूद ‘मेड इन इंडिया’ के प्रभाव का न होना, शहर से लेकर पर्यटन स्थलों और ऐतिहासिक जगहों से लेकर मंदिरों और तीर्थस्थानों तक में गंदगी भारत कब तक देखेगा और झेलेगा? हर काम सरकार के भरोसे करने की जो मानसिकता बन गयी है, उस जमी हुई बर्फ की निकम्मेपन वाली दीवार देशभक्ति की गर्मी से कौन पिघलायेगा? रेलगाड़ियां समय पर चलें, टिकट लेने और आरक्षण में इतनी मारामारी न हो, अच्छे स्कूलों में गरीब के बच्चे भी प्रवेश पा सकें, दुनिया के हर किस्म के साजो-सामान मेड इन इंडिया के ठप्पे से अपने देश में बने और विदेश में उसकी गूंज हो, यह लक्ष्य प्राप्त करने का वक्त यही है.
वामपंथी आतंकवाद के विभिन्न रूपों, जो नक्सलियों, माओवादियों तथा उत्तर-पूर्वाचल के पीएलए जैसे संगठनों में दिखते हैं, का पूरी तरह निमरूलन विकास को निष्कंटक बनाने के लिए जरूरी होगा. बौद्धिक संस्थानों और मीडिया को नफरत और पूर्वाग्रहों से मुक्त एक ऐसी भूमिका निभानी होगी, जो भारत के हित में राजनीतिक दुराग्रह छोड़ सके.
मौजूदा परिस्थिति वैश्विक दृष्टि से भी भारत की शक्ति का आधार चाहता है. संपूर्ण पूर्वी एशिया के देश चीन की लगातार बढ़ रही उपस्थिति और दखल से चिंतित हैं और भारत की ओर मैत्रीपूर्ण सहायता की दृष्टि से देखते हैं. भारत ने पिछले दिनों जापान, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देशों के साथ अच्छे संबंध बनाये हैं. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूटान और नेपाल यात्रओं ने संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में आस्वस्तकारी विश्वास का संचार किया है. आगामी गणतंत्र दिवस पर पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का मुख्य अतिथि के रूप में आने का कार्यक्रम भारत के पारंपरिक सुरक्षा प्रतिस्पर्धियों को मजबूत संदेश दे गया है.
अब हथियारों की आपूर्ति के साथ ही उनका भारत में निर्माण करना हमारे लिए एक बड़ी ऊंची छलांग है. जहां तक पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका का प्रश्न है, भारत अब मित्र और शत्रु के प्रति जैसे को तैसा वाला रवैया अपनाने के लिए मन बना चुका है. पाकिस्तान केवल शक्ति की भाषा समझता है और वह स्वयं अपने आप से युद्धरत है. उसे ठीक करने के लिए अधिक कठिनाई नहीं होगी. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने मंत्रलय संभालते ही बीस हजार करोड़ रुपये के रक्षा सौदों को मंजूरी दी है. नये साल में हमें अपनी रक्षा तैयारियों और आर्थिक विकास की दर को तीव्रता से बढ़ाने की आवश्यकता है, तब कुछ देशों के साथ मैत्रीपूर्ण शक्ति संतुलन बनाना सुगम हो जायेगा.
2015 इन्हीं चुनौतियों की कठिन खडग के समान धार पर चलनेवाला वर्ष साबित होगा और उसमें भारतवर्ष को सफलता मिले, यही हमारी शुभकामना है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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