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‘स्वाइन फ्लू’ से जंग में हारता देश

स्वाइन फ्लू की महामारी लगातार विकराल हो रही है. देश में इस साल करीब डेढ़ हजार लोग जान गंवा चुके हैं. अब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि इस साल भारत में पांव फैलानेवाला स्वाइन फ्लू का वायरस अपने रंग और मिजाज में एकदम ही नये तरीके का […]

स्वाइन फ्लू की महामारी लगातार विकराल हो रही है. देश में इस साल करीब डेढ़ हजार लोग जान गंवा चुके हैं. अब मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि इस साल भारत में पांव फैलानेवाला स्वाइन फ्लू का वायरस अपने रंग और मिजाज में एकदम ही नये तरीके का है.
नये-नये इलाकों में संक्रमण फैलना इस बात की निशानदेही करता है कि हमारे देश में महामारियों से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोई तैयारी नहीं है. इस साल महामारी ने न विकसित गुजरात को छोड़ा है, न ही अल्पविकसित बिहार को. हैरत की बात यह है कि स्वाइन फ्लू से लड़ने के मामले में विकास का मॉडल स्टेट कहा जानेवाला गुजरात भी बिहार से बहुत आगे नहीं दिख रहा. गुजरात में बीते 10 फरवरी तक 88 लोग जान गंवा चुके थे और संक्रमण के 831 मामले प्रकाश में आये थे.
होना तो चाहिए कि गुजरात सरीखे राज्य महामारी से लड़ने में बिहार जैसे अल्पविकसित राज्यों के सामने मिसाल पेश करते. देश में साल के शुरुआती दिनों में स्वाइन फ्लू फैलने की खबरों को खास तवज्जो नहीं दी गयी. जब इसने महामारी का रूप ले लिया, तब सरकार ने इंतजाम के बारे में चलताऊ बातें कह कर अपनी जिम्मेवारी की इतिश्री मान ली. बीमारी की गंभीरता को समझने और उसे रोकने का कारगर इंतजाम कहीं नहीं दिख रहा. यह तथ्य हमारे देश में स्वास्थ्य के मोर्चे पर ढुलमुल सरकारी रवैये की पोल खोलता है. देश में पर्याप्त दवा और जांच के इंतजामों के दावों पर लोग भरोसा करें भी तो कैसे, जब सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खर्च के नाम पर कोष से इतने कम पैसे निकलते हैं कि भारत का नाम सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करनेवाले देशों की सूची में नजर ही नहीं आता.
इस साल केंद्र ने कॉरपोरेट टैक्स में भारी छूट दी और तर्क दिया कि दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों की तुलना में भारत में कॉरपोरेट टैक्स ज्यादा था, जिससे यहां उद्योग-व्यापार तेजी से नहीं बढ़ रहा था. लेकिन, जब दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में स्वास्थ्य पर होनेवाले सरकारी खर्च की बात आती है, तब हमारी सरकार तुलना करने से कतराती है. जाहिर है, स्वाइन फ्लू जैसी ठीक हो सकनेवाली बीमारी का बढ़ता प्रकोप देश में विकास संबंधी प्राथमिकताओं को नये सिरे से तय करने की मांग भी करता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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