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जीवन में संपूर्ण सुख का नाम है ईश्वर

डॉ मयंक मुरारी चिंतक और आध्यात्मिक लेखक [email protected] विश्व के महान आध्यात्मिक गुरु में से एक परमहंस योगानंद जी किताब ‘मानव की निरंतर खोज’ में लिखते हैं कि मानव जाति ‘कुछ और’ की निरंतर खोज में व्यस्त है, जिसमें उसे आशा है कि संपूर्ण एवं असीम सुख मिल जायेगा. उन विशिष्ट आत्माओं के लिए जिन्होंने […]

डॉ मयंक मुरारी
चिंतक और आध्यात्मिक लेखक
विश्व के महान आध्यात्मिक गुरु में से एक परमहंस योगानंद जी किताब ‘मानव की निरंतर खोज’ में लिखते हैं कि मानव जाति ‘कुछ और’ की निरंतर खोज में व्यस्त है, जिसमें उसे आशा है कि संपूर्ण एवं असीम सुख मिल जायेगा.
उन विशिष्ट आत्माओं के लिए जिन्होंने ईश्वर की खोज की और उन्हें प्राप्त कर लिया है, यह खोज अब समाप्त हो चुकी है- ईश्वर ही ‘कुछ और’ है. हमारे जीवन में यह ‘कुछ और’ यानी संपूर्णता की खोज सदैव चलती रहती है, लेकिन यदा-कदा ही पूर्ण होती है. हमें समझ लेना चाहिए कि जब कोई फूल अपने परम सौंदर्य में खिलता है, कोई पत्थर देव रूप में सामने आता है या कोई स्वर हृदय को छू जाता है, यह सर्वोच्च शिखर ही ईश्वर है.
वैदिक ऋषियों ने यह हजारों साल पूर्व ही खोज लिया था कि भौतिक सुख से आंतरिक या परम सुख का भोग संभव नहीं है. कितनी भी बाहरी समृद्धि हो, स्थायी खुशी नहीं मिलती है. हम सब प्यासे हैं आनंद के लिए, शांति के लिए और सुख के लिए. और सच्चाई यह है कि जीवन भर भौतिक पदार्थ-सोना, अन्न, कपड़ा, धन और पद को पाने के लिए दौड़ते रहते हैं. इस दौड़ में भी भाव यह रहता है कि सुख का भोग हो रहा है. यह मनोवृत्ति बनी रहती है कि जीवन की संतृप्ति मिल रही है, लेकिन जीवन सिकंदर की तरह थोड़ा-थोड़ा खत्म होता जाता है.
निरंतर इच्छा और उसकी पूर्ति की दौड़ में हम अपने लक्ष्य से दो कदम पीछे रह जाते हैं. भूख अनंत की है, प्यास असीम की है. लेकिन सबसे अद्भुत बात यह है कि समस्त वासनाओं के पीछे अंतत: ईश्वर को पाने की उत्कंठा बनी रहती है. परम वैभव हो या परम ऐश्वर्य के सभी रूप परमात्मा का रूप है. जहां कहीं भी श्रेष्ठता दिखायी पड़े, वहां सत्य है, शिव है और सौंदर्य का प्रकटीकरण है.
गुरुदेव योगानंद कहते हैं कि सभी मार्ग ईश्वर की ओर जानेवाले मार्ग हैं, क्योंकि अंतत: आत्मा के लिए जाने का कोई और स्थान ही नहीं है. प्रत्येक वस्तु ईश्वर से निकली और वह अवश्य ही उनमें ही वापस जायेगी.
इस सृष्टि की सभी रचनाओं में ईश्वर का सौंदर्य, उसका ही सत्य और उसका ही शिव रूप छिपा है. ईश्वर की रचनाओं की आकर्षण शक्ति हमें उस सर्वोच्च सुख की प्राप्ति के लिए सतत आकर्षित करती है. यह ईश्वर का आकर्षण और उसमें समाहित ही वह परम सुख है, जिसको हम ‘कुछ और’ की निरंतर खोज में अपने को व्यस्त रखते हैं. और हम सांसारिकता के चंगुल में फंस कर सर्वोच्च सुख से अपने को दूर रखते हैं. ओशो अपने गीता के प्रवचन में एक जगह कहते हैं कि जब भी विराट ईश्वर हमारे सामने आता है, तो हमारा क्षुद्र अहंकार बेचैन हो जाता है. हम मरे हुए ईश्वर को पूज सकते हैं, लेकिन जीवित ईश्वर की पहचान मुश्किल है.
हमारी दिक्कत हमारी सोच की है. जहां भी कोई चीज श्रेष्ठता को छूती है, परम ऐश्वर्य को प्राप्त करती है, वहीं ईश्वर की झलक मिलनी शुरू हो जाती है.
ईश्वर की चेतना पहले पत्थरों में या निष्क्रिय खनिज पदार्थों में व्यक्त होती है. इसके बाद पेड़-पौधों में संवेदनशील हो जाती है. इसके बाद पशु-पक्षी की जगत में आत्मचेतना के साथ प्रकट होती है. मानव में ईश्वर श्रेष्ठतम रूपों में अपनी चेतना, तर्क, जीवनशक्ति तथा विवेक के माध्यम से प्रकट होता है, लेकिन हम अपने विवेक, चेतना और तर्कशक्ति का उपयोग नहीं करते है. हम उतनी ऊंची आंख उठाकर देखने का प्रयास ही नहीं करते हैं.
योगानंदजी के शब्दों में, ‘ईश्वर अनंत काल से एक मृदु स्वर में हर वस्तु को पुकार रहे हैं, अपने में विश्राम के लिए. उस सर्वोच्च सुख की अनुभूति के लिए. इसके लिए वे मुस्कुराते फूल, गंभीर पर्वत, ठांठे मारते सागर, प्रफुल्ल पवन के माध्यम से आमंत्रण देते हैं’.
आध्यात्मिक संतों का कहना है कि जो सुन सकते हैं, वे आज भी यमुना तट पर कृष्ण की बांसुरी सुन सकते हैं. जो सुन सकते हैं, वे आज भी वृंदावन में राधा के गीत सुन सकते हैं. लेकिन वह आंख चाहिए, वह कान चाहिए. रामकृष्ण का वह भाव चाहिए, जो मूर्ति में मां काली का दर्शन करता है, लेकिन उनके परम ज्ञानी शिष्यों को भगवती का दर्शन नहीं हो पाता. हमारी इंद्रियां मनुष्य की आत्मा को भौतिक सुख और बाहरी दुनिया की ओर खींच लाती है. मनुष्य सुख और आनंद की खोज वहां करता है, जहां उसे कभी भी अनंत सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती. इसके लिए जरूरी है अंतर यात्रा और सर्वोच्च सुख में खुद को समाहित करना.
एक सुंदर कहानी
एक छोटा बच्चा ईश्वर से मिलना चाहता था. उसने प्रार्थना की, ईश्वर आप मुझसे बात कीजिए. तभी एक चिड़िया चहचहायी, लेकिन बच्चे ने नहीं सुनी. उसने फिर ईश्वर से कहा कि मुझसे बात कीजिए. तब आकाश से तेज गर्जना हुई. बच्चे ने फिर ध्यान नहीं दिया. उसने फिर ईश्वर से कहा कि मैं आपको देखना चाहता हूं. तभी आकाश में एक सुंदर सितारा चमका. लेकिन बच्चे का ध्यान किसी दूसरी ओर था. इसके बाद बच्चा चिल्लाया. हे ईश्वर, आप मुझे कोई चमत्कार दिखाइए.
तभी अचानक उसके सामने एक गिलहरी आयी, लेकिन वह बच्चा इस बात को जान ही नहीं सका. अब बच्चा थक चुका था. वह रोने लगा और कहा कि प्रभु आप हमको स्पर्श कीजिए ताकि मुझे महसूस हो सके. तब ईश्वर नीचे आये और बच्चे के हाथ पर बैठे, लेकिन बच्चे ने हाथ पर बैठी सुंदर तितली को हटा दिया. और अपने घर की ओर चला गया. इस कहानी की सीख यही है कि ईश्वर ही सबकुछ है. वही हमारे समक्ष विभिन्न रूपों में आते हैं, कभी दुख, तो कभी खुशी, कभी धन, तो कभी दरिद्रता संग. हम ही उन्हें पहचान नहीं पाते. ऐश्वर्य में भी नहीं और अकिंचनता की स्थिति में भी नहीं.
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए इन नियमों का रखें ध्यान
आपने देखा होगा कि कई घरों में तमाम अभावों के बावजूद दाम्पत्य जीवन बढ़िया चलता है, जबकि कई ऐसे भी घर हैं, जहां छोटी-छोटी बातों पर कलह का वातावरण रहता है. वास्तुशास्त्र में सुखी दाम्पत्य के कुछ नियम बताये गये हैं. नवदंपती का बेडरूम उत्तर-पश्चिम के क्षेत्र में वायव्य कोण की ओर होना चाहिए. पति-पत्नी को दक्षिण-पूर्व की ओर सोना चाहिए.
दक्षिण-पूर्व दिशा में शुक्र का आधिपत्य एवं अग्नि का वास होता है. अत: प्रेम संबंधों में वेग और ऊष्मा के लिए यह स्थान उपयुक्त होता है. इस दिशा में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार होता है. वंश वृद्धि की इच्छा पूरी होती है. मकान में ब्रह्मा स्थान खुला न होने, ऊंचाई कम होने और भारी निर्माण दाम्पत्य जीवन में तनाव का कारण बन सकता है. वास्तु के मुताबिक बेडरूम में आईना भी नहीं होना चाहिए. बेडरूम की दीवारों पर गहरे लाल रंग के प्रयोग से भी बचना चाहिए.
Prabhat Khabar Digital Desk
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