23.4 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

वर्षारंभ : जारी रहेगा रोजगार और शरणार्थी संकट

बीते वर्ष कई देशों में अितवादी विचारधाराओं के उभार, अमेरिका समेत कई देशों में सत्ता परिवर्तन, ब्रेक्जिट, आइएसआइएस, सीरिया, दक्षिणी सूडान सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में जारी हिंसा और वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव, रोजगार की बढ़ती मांग जैसे खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ बीत गया. वर्ष 2017 के हालात कैसे होंगे? इस संबंध में आंकड़े […]

बीते वर्ष कई देशों में अितवादी विचारधाराओं के उभार, अमेरिका समेत कई देशों में सत्ता परिवर्तन, ब्रेक्जिट, आइएसआइएस, सीरिया, दक्षिणी सूडान सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में जारी हिंसा और वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव, रोजगार की बढ़ती मांग जैसे खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ बीत गया. वर्ष 2017 के हालात कैसे होंगे? इस संबंध में आंकड़े जो तसवीर पेश कर रहे हैं, वह चिंता को और बढ़ाने वाले हैं. शरणार्थियों की समस्याओं से ज्यादा उनकी बढ़ती संख्या और उनके प्रति समृद्ध देशों की उदासीनता, कई सवाल खड़े करती है. नये साल में आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र की चुनौतियों पर एक आकलन पढ़िए आज की विशेष प्रस्तुति में…
बीते वर्ष की तरह इस वर्ष भी दुनियाभर में बेरोजगारी की उच्च दर और पुराने रोजगार से जुड़े हालात जस के तस बने रहेंगे. इससे उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में राेजगार उपलब्धता की दशा भी गहनता से प्रभावित होगी. आइएलओ यानी इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की वर्ल्ड एंप्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स के मुताबिक, वर्ष 2015 में बेरोजगारी का अंतिम आंकड़ा 197.1 मिलियन रहने का अनुमान था, जबकि 2016 में इसके 2.3 फीसदी बढ़ कर 199.4 मिलियन तक हो जाने का अनुमान लगाया गया था. इसके अलावा, वर्ष 2017 में इस आंकड़े में वैश्विक स्तर पर 1.1 मिलियन बढ़ोतरी होने का अंदेशा है.
कीमतों में कमी का असर
आइएलओ के डायरेक्टर-जनरल गे राइडर का कहना है, ‘उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आयी उल्लेखनीय शिथिलता के साथ कमोडिटीज की कीमतों में व्यापक कटौती से रोजगार का बाजार नाटकीय रूप से प्रभावित हुआ है.’ राइडर का कहना है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अलावा विकसित देशों में भी ज्यादातर कामगारों को कम वेतन वाले जॉब्स को स्वीकारना पड़ रहा है. यहां तक कि यूरोप और अमेरिका में भी ज्यादातर लोग जॉबलेस हैं. उन्होंने कहा है कि इस दशा को सुधारने के लिए तत्काल ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को तेजी मिल सके और जॉब सेक्टर में इसका सकारात्मक असर दिखे.
उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर ज्यादा असर
वर्ष 2014 में विकसित देशों में बेरोजगारी की दर 7.1 फीसदी थी, जो वर्ष 2015 में कम होकर 6.7 फीसदी के स्तर तक आ गयी थी. हालांकि, वैश्विक वित्तीय संकट के कारण उभरे ज्यादातर मामलों में ये सुधार जॉब के गैप को दूर करने में सक्षम नहीं रहे हैं. यहां तक कि ब्राजील और चीन समेत तेल उत्पादक देशों और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी नौकरियों की उपलब्धता की दर कम रही.
परिवर्तनशील पूंजी प्रवाह और अस्थिर आर्थिक माहौल
आइएलओ रिसर्च डिपार्टमेंट के डायरेक्टर रेमंड टॉरेस का कहना है कि परिवर्तनशील पूंजी प्रवाह से जुड़े अस्थिर आर्थिक माहौल ने वित्तीय बाजार को अब भी अपने शिकंजे में ले रखा है और वैश्विक मांग में नियमित रूप से आयी कमी का असर औद्योगिक प्रतिष्ठानों समेत निवेश और नौकरियों के सृजन पर पड़ रहा है. पॉलिसी-मेकर्स काे रोजगार संबंधी नीतियों पर फोकस करते हुए उसे मजबूत करने की जरूरत है. इस तथ्य के बहुत से साक्ष्य हैं कि आर्थिक सुधारों में तेजी लाने के लिए कुशल श्रम और सामाजिक नीतियां बेहद जरूरी होती हैं.
अागामी दशक तक जारी रहेगी रोजगार सृजन की चुनौती
भारत में प्रत्येक माह करीब 10 लाख लोग नौकरी पाने की वैधता हासिल करते हुए वर्कफोर्स का हिस्सा बन जाते हैं, लेकिन नौकरियों के मौके इस हिसाब से बढ़ नहीं पा रहे हैं. नतीजन, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है. वैश्विक आर्थिक बदहाली के दौर में यह चुनौती और भी बढ़ गयी है. वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने भी चिंता जताते हुए कहा है कि अगले दशक में रोजगार सृजन वास्तविक में एक बड़ी चुनौती बन जायेगी. वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों के मुताबिक, भारत में बेरोजगारी की दर वर्ष 2001 में 6.8 फीसदी थी, जो 2011 में बढ़ कर 9.6 फीसदी तक पहुंच गयी थी.
जॉबलेस ग्रोथ
ज्यादातर लोगों को इस बात से हैरानी होती है कि आखिरकार जब हमारी अर्थव्यवस्था सात फीसदी से भी ज्यादा दर से बढ़ रही है, तो वह नौकरियों के पर्याप्त मौके क्यों नहीं सृजित कर पा रही है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि कम कर्मचारियों द्वारा ज्यादा काम किया जा रहा है. रेटिंग और रिसर्च फर्म ‘क्रिसिल’ के मुख्य अर्थशास्त्री डी के जोशी के हवाले से ‘इंडिया टुडे’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जीडीपी के प्रति यूनिट के हिसाब से अर्थव्यवस्था में कम जॉब जेनरेट हो रहे हैं. उदाहरण के तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग में एक दशक पहले 10 लाख रुपये की औद्योगिक जीडीपी को जेनरेट करने में जहां 11 लोग काम करते थे, वहीं अब महज छह कामगार मिल कर उस काम को निपटा रहे हैं.
बरकरार रहेंगी नौकरी चाहनेवालों की मुश्किलें
नौकरी चाहनेवालों के लिए नया वर्ष भी मुश्किलों भरा रहने की आशंका है. विशेषज्ञों ने आशंका जतायी है कि केंद्र सरकार की हालिया नोटबंदी और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के चयन- ये दो बड़े फैक्टर इस लिहाज से अहम साबित हो सकते हैं, जो कुछ तय सेक्टर्स को प्रभावित कर सकते हैं. नोटबंदी के कारण इ-कॉमर्स, एफएमसीजी और रिटेल सेक्टर में बिक्री पर नाटकीय असर देखा गया है, जिसका प्रभाव आगामी दो वर्षों तक नजर आ सकता है.
हालांकि, डिजिटल पेमेंट और बैंक जैसे फिन-टेक सेक्टर पर इसका सकारात्मक असर दिखाई दे रहा है और इसमें बढ़ोतरी की पूरी उम्मीद दर्शायी गयी है. ‘विलिस टावर्स वाट्सन’ के एशिया पेसिफिक के डाटा सर्विस प्रैक्टिस लीडर संभव रक्यान के हवाले से ‘जी बिजनेस’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2016 में 10.8 फीसदी वेतनवृद्धि का अनुमान लगाया गया था, लेकिन वास्तविक में यह 10 फीसदी के आसपास ही रहा था और इस वर्ष भी यही दशा रहने का अनुमान है.
शरणार्थियों की मदद में समृद्ध देश उदासीन
सीरिया, दक्षिणी सूडान, अफगानिस्तान और ईराक में जारी संघर्ष और हिंसा के बीच लाखों लोग घर छोड़ दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर हैं. एमनेस्टी की रिपोर्ट के मुताबिक, विस्थापितों को शरण देने के मामले में दुनिया के समृद्ध देशों की भूमिका बहुत सीमित रही है. उदाहरण के लिए वर्ष 2011 से ब्रिटेन ने आठ हजार से कम लोगों को शरण दी है, जबकि आबादी के मामले इससे 10 गुना छोटे और इसकी जीडीपी का मात्र 1.2 प्रतिशत हिस्सा रखनेवाले जॉर्डन ने 6,55,000 शरणार्थियों को आश्रय दिया है.
हालांकि, कनाडा ने इस अवधि में 30 हजार से अधिक सीरियाई विस्थापितों को आश्रय दिया है. एमनेस्टी के सेक्रेटरी जनरल सलिल सेट्टी के मुताबिक युद्ध और हिंसा से प्रभावित होकर विस्थापित होनेवालों के लिए रचनात्मक बहस होनी चाहिए. इस पर गौर करने की जरूरत है कि बैंकों को राहत देने, नयी तकनीकों के विकास और युद्ध की तत्परता से इतर जाकर 2.1 करोड़ लोगों के सुरक्षित आवास की व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती, जबकि यह आबादी दुनिया की कुल आबादी का यह मात्र 0.3 फीसदी ही है.
शरणार्थी संबंधी वैश्विक आंकड़े
6.53 करोड़ लोग दुनियाभर में जबरन किये गये हैं विस्थापित.
2.13 करोड़ लोग शरणार्थी हैं दुनियाभर में (1.61 करोड़ शरणार्थी यूएनएचसीआर के शासनादेश के अंतर्गत) और (52 लाख फिलिस्तिनी शरणार्थी यूएनआरडब्ल्यूए द्वारा पंजीकृत).
01 करोड़ लोग हैं, जो किसी भी देश के वासी नहीं है.
53 प्रतिशत शरणार्थी महज तीन देशों सोमालिया (11 लाख), अफगानिस्तान (27 लाख) और सीरिया (49 लाख) के निवासी हैं.
33,972 लोग रोजाना संघर्ष और अत्याचार के कारण घर छोड़ने पर विवश होते हैं दुनियाभर में.
स्रोत : यूएनएचसीआर
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel