23.4 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

आज मकर संक्रांति : भारतीयता के सहज उमंग की अभिव्यक्ति

नयी फसल के खाद्य सामग्री के उपयोग की प्राचीन परंपरा सुकांत मकर संक्रांति जाड़े (शीत) की विदाई और वसंत व बाद के दिनों की आगमनी का त्योहार है. यह नयी फसलों के घरों तक आ जाने से उल्लसित किसानों का उत्सव है. इस लिहाज से किसान भारत के सबसे स्वाभाविक देशज उमंग की अभिव्यक्ति है, […]

नयी फसल के खाद्य सामग्री के उपयोग की प्राचीन परंपरा
सुकांत
मकर संक्रांति जाड़े (शीत) की विदाई और वसंत व बाद के दिनों की आगमनी का त्योहार है. यह नयी फसलों के घरों तक आ जाने से उल्लसित किसानों का उत्सव है. इस लिहाज से किसान भारत के सबसे स्वाभाविक देशज उमंग की अभिव्यक्ति है, यह तिल संक्रांति. इस दिन (बहुधा 14 जनवरी) मकर राशि में प्रवेश के साथ सूर्य उत्तरायण होते हैं. सो, यह संक्रांति अर्थात ऋतु-संधि का पर्व है. इस दिन या इसके आसपास से मौसम के मिजाज बदल जाते हैं. पछुआ हवा तेज हो जाती है और इसमें कनकनी की मार अधिक से अधिक बेधक हो जाती है. सूर्य की किरण में ताप बढ़ जाता है, इसकी कोमलता व मिठास घटने लगती है.
हवा-धूप के साथ-साथ प्रकृति के अन्य उपकरणों से फागुनी मिजाज टपकने लगता है. मकर संक्रांति के साथ सारा कुछ बदला-बदला सा लगने लगता है. सब कुछ करवट लेने लगता है- गांव से लेकर महानगरों तक.
मकर संक्रांति के साथ कुछ खाद्य सामग्री के उपयोग की प्राचीन परंपरा है. जिन वस्तुओं के उपयोग (खान-पान) की परिपाटी है, उनमें प्रायः सभी नयी फसल हैं. धान की नयी फसल आ चुकी होती है. लिहाजा, दही-चूड़ा के लिए नया चूड़ा और और खिचड़ी के लिए नया चावल उपलब्ध रहता है. फरही और चूड़े की लाई होती है. कार्तिक से नया गुड़ बाजार में होता है.
आलू- गोभी- टमाटर और मटर की छीमी की नयी फसल होती है. पहले ये सारे सामान बिल्कुल नये होते थे. ये फसलें अगहन में कटने को तैयार रहती थीं, कटती थीं और फिर मकर संक्रांति के दिन जश्न मनाया जाता रहा है. हालांकि पिछले कई दशकों से फसल की आगात किस्मों ने उनकी नवता को समाप्त कर दिया है. पर, बात इतनी ही नहीं है. तिल और गुड़ का उपयोग आनेवाले मौसम के लिए शरीर को तैयार रखने की समझ की अभिव्यक्ति रही है. तिल को सर्वोत्तम तैलीय पदार्थों में एक माना जाता है. गुड़ शरीर में जमें धूल-कण की गड़बड़ियों को निकाल बाहर करता है. दोनों- गुड़ और तिल मिल कर शरीर की सफाई करते हैं और कफ व पित्त को संतुलित रखते हैं. इसे स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी माना जाता है. गुड़ और तिल के तत्व वसंत और उसके बाद ग्रीष्म की प्रकृति के लिए मानव शरीर का अनुकूलन करते हैं.
मकर संक्रांति या तिल संक्रांति छठ की तरह लोकपर्व है. यह किसान व खेतिहर भारत के सहज उमंग की अभिव्यक्ति है. इसीलिए यह पुरोहितवाद के किसी भी पाखंड से मुक्त रहा है.लेकिन, इस लोक पर्व में भी पुरोहितवाद ने अपनी जगह बना ली है.
मकर संक्रांति किसान भारत का लोक पर्व है किसी दैवीय कर्मकांड से मुक्त. इसीलिए मकर संक्रांति या सतुआनी (बैसाखी) जैसे अनेक पर्वों के अवसर पर किसान या किसानी पर विचार करना क्या इन पर्वों को मनाने का उत्तम अवसर नहीं होना चाहिए? मेरी समझ में खेती और किसान व निर्दोष फसल को निर्दोष बनाये रखने पर विचार करने का इससे बेहतर अवसर शायद दूसरा नहीं हो सकता. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़ी बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के देसी व्यावसायिक एजेंटों के हाथों जमीन और खेती जा रही है. अब वे तय करते हैं कि भारत को किस फसल की जरूरत है. देश के आम किसानों के लिए खेती निरंतर महंगी और अलाभकारी होती जा रही है. देसी बीज पर संकट आ गया है और देश में जीएम बीज का युग आ रहा है.
हमारी व्यवस्था- इसका जो तत्व सत्ता में वह भी और जो बाहर है वह भी- जीएम बीज का पैरोकार बन गयी है. हाथ की उपयोगिता लगातार सीमित होती जा रही है. किसान खेतिहर मजदूर से दिहाड़ी प्रवासी मजदूर बनते जा रहे हैं. देश में किसान और किसानी संकट में है. मकर संक्रांति के दिन इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. तभी यह किसान भारत के सहज उत्सव का पर्व बना रहेगा, दही चूड़ा और खिचड़ी का पर्व बना रहेगा. तभी दही-चूड़ा, खिचड़ी, गुड़ और तिल-तिलकुट में देसी स्वाद बचा रहेगा, बना रहेगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel