23.4 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

एग्री टेक : आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से डिजिटल क्रांति की ओर खेती

विकसित देशों के मुकाबले भारत में कृषि क्षेत्र में बेहद कम तकनीकों का इस्तेमाल होता है. हालांकि, निवेश और नीतिगत इच्छाशक्ति की कमी भी इसके कारक हैं, लेकिन खेती के पिछड़ जाने का बड़ा कारण तकनीकों का अभाव माना जा रहा है. धीरे-धीरे ही सही, पर अनेक प्रयासों से इसमें बदलाव आ रहा है और […]

विकसित देशों के मुकाबले भारत में कृषि क्षेत्र में बेहद कम तकनीकों का इस्तेमाल होता है. हालांकि, निवेश और नीतिगत इच्छाशक्ति की कमी भी इसके कारक हैं, लेकिन खेती के पिछड़ जाने का बड़ा कारण तकनीकों का अभाव माना जा रहा है. धीरे-धीरे ही सही, पर अनेक प्रयासों से इसमें बदलाव आ रहा है और भारतीय खेती डिजिटाइजेशन की राह पर बढ़ती दिख रही है. आज के आलेख में पढ़िये क्या हैं इस संदर्भ में चुनौतियां और भविष्य में तकनीकों के सहारे कैसे इनसे निपटा जा सकता है …
भारत के फूड और एग्रीकल्चर इंडस्ट्री में पिछले तीन दशकों के दौरान उल्लेखनीय बदलाव आया है. 1960 के दशक के आरंभिक दौर में हरित क्रांति की बदौलत हमारा देश न केवल अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ, बल्कि कई फसलों का उत्पादन हमारी जरूरतों से ज्यादा बढ़ गया. इससे हम कुछ अनाज निर्यात भी कर सके. उम्मीद है कि आगामी कुछ वर्षों तक देश में अनाज की कमी नहीं होगी. वर्ष 1980 से 2012 के दौरान देश की एग्रीकल्चरल जीडीपी सालाना करीब तीन फीसदी की दर से बढ़ती रही है. चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अन्न उत्पादक है.
वर्ष 2010 में 11 लाख करोड़ रुपये मूल्य की अनाज खपत हुई थी. देश में करीब चार फीसदी की दर से अनाज की खपत बढ़ रही है. लिहाजा, वर्ष 2030 तक यह 23 लाख करोड़ रुपये मूल्य तक पहुंच जायेगा. इस दौरान प्रति व्यक्ति अनाज की खपत मूल्यों में 9,355 रुपये से बढ़ कर 15,731 रुपये हो जायेगी. लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि हम इतने मूल्य के अनाज की जरूरतों की भरपाई किस प्रकार से कर पायेंगे?
क्या हैं मौजूदा चुनौतियां
विकसित देशों में किसानों को खेती के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा जमीन उपलब्ध है. यूरोप, अमेरिका और कनाडा में किसानों के पास खेती के लिए 3,000 से 10,000 एकड़ तक जमीन है.
दरअसल, एडवाइंस्ड मेकेनाइजेशन प्रोसेस से खेती करने के लिए व्यापक तादाद में जमीन की जरूरत होती है, ताकि आधुनिक तकनीकों का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सके. इससे किसानों की अन्न उपजाने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. हालांकि, उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से भारतीय किसान भी अनाज की उत्पादकता बढ़ाने में कामयाब रहे हैं, लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं. इस लिहाज से बड़ी चुनौती यह भी है कि इन चीजों के इस्तेमाल से बढ़ायी गयी उत्पादकता उच्चतम सीमा तक पहुंच चुकी है, जिसे और ज्यादा बढ़ाना मुमकिन नहीं हो रहा. दूसरी ओर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल से मिट्टी की उपज क्षमता भी प्रभावित हो रही है. इसके अलावा भी अनेक चुनौतियां हैं, जिनका हमारे किसानों को सामना करना पड़ता है. इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं :
– गुणवत्तायुक्त बीजों की सीमित उपलब्धता.
– नवीन तकनीकों का सीमित इस्तेमाल.
– जल स्रोतों का क्षरण.
– किसानों के बीच आपसी तालमेल का अभाव.
– बाजार तक अनाज पहुंचाने की दिक्कत.
– प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं मुहैया होना.
पुराने तरीकों पर कायम निर्भरता
भारतीय किसान अब भी एग्रोनॉमी में पुराने तरीकों पर निर्भर हैं और उन्हें ऑन-ग्राउंड सेवाएं नहीं मिल पाती हैं. आरएमएल एगटेक के एमडी व सीइओ राजीव तेवतिया के हवाले से ‘इंक 42 डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारतीय किसान मेकेनाइजेशन पर करीब 22 से 35 फीसदी तक खर्च करते हैं, जबकि सेवाओं पर खर्च नहीं के बराबर करते हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, विकसित देशों में फार्मिंग सेवाओं पर किसान करीब 11 से 15 फीसदी तक खर्च करते हैं, जबकि मेकेनाइजेशन पर वे महज 10 से 12 फीसदी ही खर्च करते हैं.
सही इकोसिस्टम का अभाव
खेती में नयी तकनीकों और इनोवेशन के लिए किये गये शोध और विकास भारत में समग्रता से और तेजी से धरातल पर नहीं उतर पाते हैं. भारतीय किसानों के लिए यह एक बड़ी त्रासदी है. अब तक हम उस तरह के इकोसिस्टम का निर्माण करने में अक्षम रहे हैं, जिसके जरिये किसानों को खेती में विविध तकनीकों के इस्तेमाल के लिए नवीनतम ज्ञान हासिल हो सके और व्यावहारिक रूप से वे उसे इस्तेमाल में ला सकें. यह अपनेआप में एक बड़ी चुनौती है.
डिजिटल राह पर खेती
भारत में खेती सेक्टर के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह उभर रही है कि आनेवाले दशकों में हम बढ़ती आबादी को कैसे खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में सक्षम हो पायेंगे? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके समाधान के लिए भारत को खेती में डिजिटल क्रांति की ओर अग्रसर होना होगा. इसके लिए देश के किसानों को ये चीजें मुहैया करानी होगी :
– फसलों को रोपने और बीजाई करने के बारे में नयी तकनीकों के बारे में जानकारी मुहैया कराना.
– एग्रो-क्लाइमेटिक यानी खेती के लिए अनुकूल मौसम आधारित अध्ययन के जरिये जरूरी और समुचित सूचना प्रदान करना.
– सभी फसलों के बारे में अलग-अलग तौर पर उनकी मांग और आपूर्ति की जानकारी देना, ताकि ज्यादा मांग और कम आपूर्ति वाली फसलों के उत्पादन पर वे ज्यादा जाेर दे सकें.
– रोपनी और बीजाई व कटनी के उचित समय की जानकारी प्रदान करना.
– किस मूल्य पर किस बाजार में फसलों को बेचा जाये, इस बारे में समुचित सूचना मुहैया कराना.
इस तरह से फसलों की उत्पादकता बढ़ायी जा सकती है और संसाधनों का अधिकतम दोहन किया जा सकेगा. इसे मुमकिन बनाने में एग्रीटेक इंडस्ट्री की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
भारत में एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी
एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी के तहत फसलों की पैदावार बढ़ाने और खेती को सक्षम व लाभदायक बनाने के लिए आधुनिक तकनीकों और सेवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें वाटर फिल्टर्स और पंप या एप्स आधारित डिजिटल सेवाएं शामिल होती हैं, जिसके जरिये ग्रामीण बाजारों में उर्वरकों और बीजों आदि के विक्रेताओं और खरीदारों को सीधे तौर पर आपस में जोड़ा जाता है. भारत में आज भी ज्यादातर खेती मौसम के हालत पर टिकी है, जिसमें ज्यादा जोखिम है, लेकिन आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से इसे किसानों के लिए लाभदायक बनाया जा सकता है.
इंटरनेट के इस्तेमाल से कृषि क्षेत्र में बेहतर माहौल तैयार करने की जरूरत
स्मार्टफोन के बढ़ते इस्तेमाल और इंटरनेट के फैल रहे दायरे को देखते हुए सरकार डिजिटल इकॉनोमी को प्रोत्साहित कर रही है. ऐसे में समय आ गया है, जब एग्रीटेक सेक्टर के लिए भी सरकार कुछ बेहतर माहौल तैयार करे. हालांकि, आरएमएल एगटेक, स्काइमेट, मित्र, स्टेलएप्स और एग्रोस्टार जैसी अनेक कंपनियों इस दिशा में जुटी हुई हैं और अनेक तरीकों से किसानों को विविध समाधान मुहैया करा रही हैं, लेकिन भारत जैसे विशाल देश के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं.
एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी में निवेश की जरूरत
एगटेक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में फूड एंड एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स में वर्ष 2014 में 2.36 अरब डॉलर का निवेश हुआ था, जो वर्ष 2015 में करीब दोगुना (4.6 अरब डॉलर) हो गया. लेकिन, भारत में इस सेक्टर में ऐसे निवेश की अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती. हाल के वर्षों में अमेरिका में फूड इ-कॉमर्स, ड्रोन्स व रोबोटिक्स के माध्यम से खेती के लिए सटीक सूचना मुहैया करानेवाली और सिंचाई संबंधी तकनीकों के विकास और इस्तेमाल के लिए ज्यादा निवेश किया गया है. अन्य सेक्टर के मुकाबले एग्रीटेक में निवेश बहुत कम हो रहा है. अब समय आ गया है, जब सरकार को इनोवेटिव समाधान मुहैया करानेवाली कंपनियों और उद्यमियों को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि नयी तकनीकों के इस्तेमाल से अनाज का उत्पादन बढ़ाया जा सके.
भविष्य में विस्तार की उम्मीद
भारत में खेती सेक्टर के बारे में कोई कयास लगाना आज भी मुश्किल है और निकट भविष्य में भी कुछ हद तक ऐसा ही रहेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्टार्टअप्स की ओर से इसमें व्यापक निवेश जारी रहा, तो इस सेक्टर की दशा बदल सकती है. उम्मीद जतायी जा रही है कि फ्यूचर एग्रीटेक के तहत मौजूदा प्रचलित रासायनिक खाद आधारित प्रणाली के मुकाबले उत्पादन के सस्टेनेबल तरीकों पर ज्यादा जोर दिया जायेगा. इसके लिए छोटे स्तर के किसानों की समस्याओं को समझना होगा और उसका निराकरण करना होगा.
किसानों को किसी तरह की सलाह देने से पहले उनके साथ समय बिताना होगा, तभी जाकर धरातल से जुड़ी समस्याओं को समझा जा सकेगा. इसके अलावा, बारिश पर किसान की निर्भरता को खत्म करना होगा. सरकार समेेत अनेक संबंधित संगठनों व एजेंसियों ने इस ओर ध्यान देना शुरू किया है, लिहाजा उम्मीद जतायी जा रही है कि एग्रीटेक इंडस्ट्री के जरिये इस दिशा में उल्लेखनीय बदलाव देखे जायेंगे.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel