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बी-पॉजिटिव: चरम पर अधिक संयम और तैयारी की है जरुरत

छह अगस्त वर्ल्ड एथलेटिक्स-17 का सबसे बड़ा मुकाबला. 100 मीटर (पुरुष) का फाइनल मुकाबला लंदन में था. एथलेटिक्स इतिहास का सबसे बड़ा नाम 31 वर्षीय उसैन बोल्ट व्यक्तिगत स्पर्धा में अंतिम बार मुकाबले में थे. ज्यादातर लोग ये मान कर चल रहे थे कि बोल्ट इस मुकाबले को आसानी से जीत कर अपने एथलेटिक्स करियर […]

छह अगस्त वर्ल्ड एथलेटिक्स-17 का सबसे बड़ा मुकाबला. 100 मीटर (पुरुष) का फाइनल मुकाबला लंदन में था. एथलेटिक्स इतिहास का सबसे बड़ा नाम 31 वर्षीय उसैन बोल्ट व्यक्तिगत स्पर्धा में अंतिम बार मुकाबले में थे. ज्यादातर लोग ये मान कर चल रहे थे कि बोल्ट इस मुकाबले को आसानी से जीत कर अपने एथलेटिक्स करियर का शानदार समापन करेंगे.

…हतप्रभ थे करोड़ों दर्शक

उनका मुकाबला अधिकतर चिरपरिचित खिलाड़ियों से ही था, जिन्हें बोल्ट ने कई बार हराया था. मुकाबला शुरू हुआ. 50 मीटर तक बोल्ट पीछे चल रहे थे, लेकिन सभी मान रहे थे कि 100 मीटर तक बोल्ट लीड बना लेंगे क्योंकि हर बार इसी तरह धीमी शुरुआत कर बोल्ट मुकाबला अंत में जीतते रहे हैं. बोल्ट का मानना रहा है कि 100 मीटर जीतने में मेहनत के साथ टेक्निक की बहुत बड़ी भूमिका होती है, लेकिन जब मुकाबला ख़त्म हुआ तो ना सिर्फ मैदान में आये हज़ारों दर्शक बल्कि टीवी पर मुकाबला देख रहे करोड़ों दर्शक भी हतप्रभ थे. उनका हीरो उसैन बोल्ट तीसरे नंबर पर था.

खेल की दुनिया के बैड ब्वॉय गैटलिन ने की जीत दर्ज

इस मुकाबले में जीत हुई अमेरिका के 37 वर्षीय गैटलिन की, जिसे खेल की दुनिया का बैड ब्वॉय माना जाता है. डोप टेस्ट में पॉजिटिव आने के कारण उस पर दो बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है. पहली बार प्रतिबंध 2001 में 2 साल के लिए लगा था. जिसे गैटलिन की अपील के बाद 1साल कर दिया गया था. फिर 2006 में 8साल का प्रतिबंध लगा, जिसे फिर से अपील करने के बाद 4 साल कर दिया गया था. इससे पहले सिर्फ एक बार2013 डायमंड लीग में गैटलिन ने बोल्ट को हराया था.

रिकॉर्ड्स टूटने में लगेंगे वर्षों
मुकाबले से कुछ महीने पहले बोल्ट ने कहा था कि मैं दुनिया का महानतम एथलीट हूं. मैंने जो रिकॉर्ड्स बनाये हैं, वो टूट सकता है, लेकिन फ़िलहाल नहीं, इसमें वर्षों लगेंगे. बोल्ट ने ये भी कहा कि मुझे हारने का डर नहीं है. 6 महीने पहले अपने मित्र ब्रिटिश हाई जंपर जर्मेन मेसन की मृत्यु ने भी बोल्ट को काफी दुखी कर दिया था. इन सभी कड़ियों को अगर जोड़ें, तो लगेगा कि कहीं ना कहीं बोल्ट आत्मसंतुष्ट या आत्ममुग्धता की भावना से ग्रसित हो गये थे या उन्हें लगने लगा था कि मैं अपराजेय हूं. मित्र की असामयिक मृत्यु ने भी उन्हें मानसिक रूप से कमजोर किया, जिसका असर उनकी तैयारियों पर पड़ा.

जीवन का अहम मोड़ होता है संन्यास
इंसान जब अपने प्रोफेशन से संन्यास लेता है, तो वो उसके जीवन का बहुत ही अहम मोड़ होता है. उस मोड़ पर वो अपने पूरे जीवन को मुड़ कर देखने और आंकलन करने की कोशिश करता है. वो अपने सुनहरे दिनों को याद करता है. इंसान की ये भावनाएं उसे अंदर तक झकझोरती हैं. उसे लगता है कि मेरा सुनहरा दौर शायद अब आगे नहीं रह पाए. आज मेरे चाहने वालों की लंबी कतार है, क्या ये लोग कल भी मुझे चाहेंगे. इंसान के अंदर चलने वाला ये द्वंद्व, इस नाजुक वक्त पर, जब इंसान अपना श्रेष्ठ देना चाहता है, उसे पीछे धकेलता है. शायद बोल्ट और उनके जैसे महान लोगों के अंतिम समय में चुकने का कारण भी यही है.

बोल्ट का संन्यास लेना खेल के लिहाज से है बेहतर
बोल्ट के संन्यास लेने के बाद महानतम एथलिटों में से एक कार्ल लुइस का बयान आया था कि बोल्ट का संन्यास लेना दुखी करता है, लेकिन खेल के लिहाज से बेहतर है. लुइस ने कहा कि पिछले 9 साल में दर्शकों ,खेल प्रेमियों और मीडिया का पूरा ध्यान सिर्फ एक खिलाड़ी बोल्ट पर केंद्रित रहा, जिससे बोल्ट तो मिथक बन गये, लेकिन खेल को बहुत नुकसान हुआ. बाकी खिलाड़ियों पर कम ध्यान होने की वजह से उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना में कमी आयी.

आखिर क्यों नहीं अंतिम मुकाबले में कर सके बेहतर

इस घटना के बारे में जब हम सोचते हैं तो इतिहास के कई पन्ने हमारी आंखों के सामने घूमने लगते हैं. डॉन ब्रैडमैन अपने अंतिम क्रिकेट टेस्ट पारी में सिर्फ 4 रन बना लेते तो उनका टेस्ट औसत 100 रन प्रति पारी हो जाता. मन में यह विचार आता है कि उम्र में 6 वर्ष छोटे होने के बाद भी बोल्ट उस गैटलिन से हार गए, जिसे उन्होंने बार-बार हराया था या फिर डॉन ब्रैडमैन क्यों शून्य पर आउट हो गए ? वैसे खिलाड़ी, जो अपने खेल के दौरान ही किंवदंती बन चुके थे, अपने अंतिम दौर या अंतिम मुकाबले में बढ़ियां क्यों नहीं कर सके ? जबकि इनकी काबिलियत की धमक वर्षों दुनिया में कायम रही.

बी-पॉजिटिव

विजय बहादुर

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Prabhat Khabar Digital Desk
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