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सिर्फ 44 लाख की आबादी वाले क्रोएशिया के फीफा वर्ल्ड कप फुटबाल में फाइनल तक का सफर

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विजय बहादुर
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जब आप मेरा यह पाक्षिक कॉलम बी पॉजिटिव पढ़ रहे हैं, फीफा फुटबॉल कप के फाइनल का नतीजा आ चुका है. आप सभी जानते हैं कि 15 जुलाई को विनर ट्रॉफी पर फ्रांस का कब्जा हो गया. नतीजा कुछ भी हुआ हो क्रोएशिया विजेता नहीं रहा लेकिन इस टीम की सफलता और हार दोनों से ही पूरी दुनिया सबक ले सकती है.

आइए, क्रोएशिया से जुड़े कुछ तथ्य को जानें :
1. क्रोएशिया दक्षिण पूर्व यूरोप यानी बाल्कन में पानोनियन प्लेन और भूमध्य सागर के बीच बसा एक देश है
2. 25 जून, 1991 में क्रोएशिया, यूगोस्लाविया से अलग होकर स्वतंत्र देश बना
3. आबादी के अनुसार, यह विश्व के देशों में 117वें नंबर है. इसकी कुल आबादी 44 लाख है
4. मानव विकास सूचकांक में यह दूसरे देशों से बहुत ही बेहतर है
इस छोटे से देश ने जिसकी आबादी अपने देश के ज्यादातर राज्यों की आबादी से बहुत ही कम है, लेकिन गृहयुद्ध की विभीषिका ने इस देश के एक-एक नागरिक को अंदर से मजबूत बना दिया है. शायद यही कारण है कि 20वीं रैंक वाली क्रोएशिया की टीम फीफा विश्वकप के फाइनल में पहुंचनेवाली सबसे कम रैंक वाली टीम है.
जब भी हम इतिहास के पन्नों को खंगालते हैं, तो देखते हैं कि जब भी किसी संघर्ष करनेवाले समाज, कौम या देश को मजबूत लीडर या नेतृत्व मिला है, उसने लंबी छलांग जरूर लगायी है.
वर्ष 1983 से पहले शायद ही कोई भारतीय क्रिकेट टीम को अधिक गंभीरता से लेता था, लेकिन कपिलदेव के नेतृत्व में प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप क्रिकेट इंग्लैंड में जीतने के बाद भारतीय क्रिकेट की दशा और दिशा ही बदल गयी. कपिलदेव ने आनेवाली पीढ़ियों को प्रभावित किया. एक इंटरव्यू में सचिन तेंदुलकर ने बताया कि वो बमुश्किल 10 साल के होंगे.
रेडियो में क्रिकेट कमेंट्री सुना करते थे और शायद भारत के वर्ल्ड क्रिकेट कप जीतने के बाद उनके मन में भी देश के लिए खेलने की इच्छा प्रबल हो गयी. महेंद्र सिंह धौनी ने बहुत सारे इंटरव्यू में कहा है कि वो तब तक भारतीय टीम का मैच देखते थे, जब तक सचिन तेंदुलकर बैटिंग करते थे. सचिन आउट हुए, वो टीवी बंद कर देते थे.
ये मसला सिर्फ खेलों का नहीं है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में लागू है. गुलाम भारत में हजारों-लाखों लोग देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, लेकिन स्वतंत्रता के आंदोलन को महात्मा गांधी के आने के बाद ही सही दिशा मिल पायी, जिसकी वजह से वो मुकाम तक पहुंच पाया.
कहने का आशय ये है कि हर जेनरेशन में एक लीडर निकलता है, जो अपने प्रेरणादायी कर्मों से न सिर्फ अपने साथ के लोगों को प्रभावित करता है, बल्कि आनेवाले जेनरेशन को भी प्रभावित करता है.
आज क्रोएशियाई फुटबॉल टीम के पास लूका मोड्रिक जैसा दमदार कप्तान है, जिसने अपने जबरदस्त खेल और करिश्माई नेतृत्व के दम पर अपनी टीम को पहली बार फीफा विश्वकप के फाइनल में पहुंचा दिया है. क्रोएशियाई कप्तान लुका का जीवन प्रोफेशनल फुटबॉलर बनने से पहले बहुत ही कठिन रहा है.
गृहयुद्ध का दंश झेल रहे शहर में बीता लुका मोड्रिक का बचपन
लुका मोड्रिक, क्रोएशिया के जिस शहर में बड़े हो रहे थे, वह गृहयुद्ध का दंश झेल रहा था. जब वह सिर्फ छह साल के थे, तो चरमपंथियों ने उनके दादाजी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. लुका मोड्रिक को छह साल की छोटी उम्र में ही शरणार्थी शिविर में रहना पड़ा, लेकिन इस कठिनाई भरे बचपन के बावजूद लुका ने हार नहीं मानी और फुटबॉल की दुनिया का बड़ा नाम बनकर उभरे. आज 32 साल की उम्र में लुका मोड्रिक फुटबॉल के ग्लोबल सुपर स्टार बन गये हैं.
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Prabhat Khabar Digital Desk
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