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। विजय बहादुर।।

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पिछले चार दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों में महिलाओं के साथ गैंग रेप, यौन उत्पीड़न और हिंसा से संबंधित कई वीभत्स घटनाएं घटित हुई हैं.

पहली घटना
रांची के कांके थाना क्षेत्र में लॉ की छात्रा (25) से गैंग रेप किया गया. छात्रा अपने मित्र के साथ शाम को बस स्टॉप के पास खड़ी थी.
दूसरी घटना
हैदराबाद (तेलंगाना) के बाहरी इलाके में 27 साल की एक युवती को अगवा कर गैंग रेप के बाद जिंदा जला दिया गया. उसके साथ ये अपराध मदद का भरोसा दिलाकर किया गया. पुलिस को युवती की अधजली लाश मिली है. इस मामले की जांच की जा रही है.
तीसरी घटना
पटना के शास्त्रीनगर का इलाका शुक्रवार की सुबह गोलियों की तड़तड़ाहट से थर्रा उठा. एक सिरफिरे प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को पहले गोली मारी. फिर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. बताया जाता है कि गोली लगने से प्रेमी की मौके पर ही मौत हो गयी, जबकि लड़की को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
चौथी घटना
कैमूर (बिहार) में एक लड़की के साथ गाड़ी में गैंग रेप कर उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया में वायरल कर दिया गया है.
इसी तरह कभी सुनने/पढ़ने को मिलता है कि छोटी बच्चियों (तीन-चार साल तक की भी) के साथ दुष्कर्म कर उन्हें मार दिया गया.
जब-जब इस तरह की घटनाएं पढ़ने/सुनने को मिलती हैं, तो दिल्ली में हुए वीभत्स निर्भया कांड (2012)और इसके बाद विरोध में हुए देशव्यापी आंदोलन जेहन में तैरने लगते हैं. भारी विरोध के बाद सरकार को इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कड़ा कानून बनाने पर मजबूर होना पड़ा, लेकिन सवाल वहीं आकर रुक जाता है कि क्या वजह है कि इससे पहले भी और उसके बाद भी इस तरह की घटनाएं लगातार जारी हैं और हमारे लिए ये सिर्फ खबर या सूचना बन कर रह जाती है. हर बार इस तरह की घटनाओं को सुनकर लगता है कि भले ही स्थान बदल गया हो, लेकिन अपराध की प्रकृति कमोबेश हर बार लगभग एक जैसी ही रहती है.
हर बार मन में यह प्रश्न उठता है कि सरकार ने कानून तो बनाया. ऐसी घटनाओं के बाद विरोध प्रदर्शन के बाद कानूनी कार्रवाई भी हुई, बावजूद इसके इस तरह की घटना पर अंकुश नहीं लग पाया. इन घटनाओं को देख एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इंसान अपने मानवीय मूल्यों, करुणा और संस्कार को छोड़ कर नरपिशाच कैसे बन सकता है.
मुझे लगता है कि कोई भी व्यक्ति (इंसान कहना सही नहीं होगा), जो इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देता है, उसकी आपराधिक प्रवृत्ति एक दिन में विकसित नहीं होती है. इस तरह के व्यक्ति वस्तुतः मनोरोगी होते हैं.
आप अपने आसपास छह साल से लेकर 18 साल तक के बच्चों/किशोरों की गतिविधियों को देखें. उनके संवाद पर गौर करें और समझने की कोशिश करें, तो लगेगा कि ये जो दरिंदगी का विस्फोट दिख रहा है, उसके सूत्र और बीज कहीं और छुपे हैं.
इसके पीछे समाज और परिवार की बहुत बड़ी भूमिका है. हम बच्चों को आगे बढ़ने (तथाकथित स्मार्ट बनाने) के लिए तमाम तरह की भौतिक जरूरतें मुहैया करा रहे हैं, लेकिन बच्चों को कहीं न कहीं मोरल (नैतिक) शिक्षा देने से चूक रहे हैं. बच्चों के संवाद पर गौर करेंगे, तो वो जिस तरह की अश्लील भाषा का प्रयोग करते हैं, उससे लगेगा है कि हमारे बच्चे समय से पहले बड़े हो रहे हैं. भौतिकवाद और दिखावे की प्रवृत्ति का नशा हम सभी पर छाया हुआ है. उसे हासिल करने के लिए हर कुप्रयास व कुकर्म किये जा रहे हैं. इसमें कोई हिचकिचाहट नहीं है. हम सभी जानते हैं कि घर किसी भी बच्चे की पहली और समाज दूसरी पाठशाला है. बच्चा जो देखता है, वही सीखता है और उसे ही क्रियान्वित करने की कोशिश करता है.
बच्चे जब अपनी उम्र से ज्यादा होने का आभास कराते हैं, तो बहुत बार ये तर्क दिया जाता है कि आजकल के बच्चों को एक्सपोजर ज्यादा है, इसलिए बच्चे जल्दी सीख रहे हैं और ये बात काफी हद तक सही भी है, लेकिन यहीं पर अभिभावक और समाज का रोल अहम हो जाता है कि ये एक्सपोजर पॉजिटिव डायरेक्शन में हो.
मेरा मानना है कि बदलते वक्त के साथ लोगों के सोचने के नजरिये में भी बदलाव हो रहा है, लेकिन इस बदलाव का असर सोचने के नजरिये में विस्तार के रूप में होना चाहिए और सही अर्थों में इसके विस्तार के लिए आज मोरल टीचिंग की ज्यादा जरूरत है.
डरावने आंकड़े
– झारखंड में पिछले छह साल में 7145 रेप केस दर्ज
– वर्ष 2018 के जनवरी से वर्ष 2019 के सितंबर तक झारखंड में रेप के 2595 केस दर्ज
– वर्ष 2014 से वर्ष 2017 तक झारखंड में दुष्कर्म के 4550 मामले दर्ज
– यानी वर्ष 2014 से वर्ष 2019 (सितंबर) तक 7145 दुष्कर्म के मामले दर्ज.

Prabhat Khabar Digital Desk
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यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

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