Lalganj Vidhan Sabha: बिहार के वैशाली जिले में स्थित लालगंज प्रखंड अब राज्य के तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों में से एक बन गया है. तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरी विस्तार और व्यापारिक गतिविधियों में इजाफा इस क्षेत्र को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बना रहा है.
इतिहास से वर्तमान तक की यात्रा
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान लालगंज को प्रशासनिक दृष्टि से अहम क्षेत्र माना जाता था. वर्ष 1969 में इसे नगर परिषद (नगर बोर्ड) का दर्जा मिला. उस समय हाजीपुर और समस्तीपुर जैसे प्रमुख इलाके भी लालगंज के प्रशासनिक दायरे में आते थे.
आज लालगंज की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि, स्थानीय व्यापार और छोटे व्यवसायों पर आधारित है. पास बहने वाली गंडक नदी यहां की खेती का मुख्य आधार है. इस क्षेत्र में धान, गेहूं, मक्का, दालें, सब्जियां और तंबाकू की खेती की जाती है. किसान अब बागवानी की ओर भी अग्रसर हो रहे हैं- खासकर केला, आम और लीची की खेती में रुचि बढ़ी है. इसके अलावा डेयरी फार्मिंग के क्षेत्र में भी पांव पसार रही है.
राजनीति में बाहुबल और विरासत की छाया
हाल के वर्षों में लालगंज की राजनीति में बाहुबल और विवादों की बड़ी भूमिका रही है. विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, जो तीन बार विधायक रह चुके हैं, इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के प्रमुख चेहरा रहे हैं. वे अपने भाई छोटन शुक्ला की हत्या के बाद चर्चा में आए, जिसके बदले में उन्होंने तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या कर दी. इस मामले में पहले उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने बाद में उन्हें बरी कर दिया.
मुन्ना शुक्ला ने निर्दलीय, एलजेपी और जेडीयू टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाई. उनकी पत्नी अन्नू शुक्ला ने 2010 में जेडीयू से विधायक बनीं. मुन्ना शुक्ला ने लोकसभा चुनावों में भी किस्मत आजमाई लेकिन सफलता नहीं मिली. आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन्हें फिर से आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
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लालगंज विधानसभा का इतिहास
1951 में लालगंज विधानसभा सीट की स्थापना हुई. शुरुआत में इसे दो भागों- लालगंज उत्तर और दक्षिण में बांटा गया था. तीन बार कांग्रेस ने दक्षिण से जीत दर्ज की, जबकि उत्तर में एक निर्दलीय प्रत्याशी 1962 में विजयी हुआ. 1967 के परिसीमन के बाद यह सीट एकीकृत हो गई. तब से अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस ने 4 बार, जनता दल, जेडीयू और एलजेपी ने 2-2 बार जीत हासिल की है. इसके अलावा जनता पार्टी, लोकतांत्रिक कांग्रेस, बीजेपी और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी इस सीट पर जीत दर्ज की है.
2020 में भाजपा ने रचा इतिहास
2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने बहुकोणीय मुकाबले में जीत दर्ज कर पहली बार इस सीट को पार्टी की झोली में डाला. उस समय मुन्ना शुक्ला राजद से टिकट न मिलने पर निर्दलीय लड़े और हार गए. भाजपा को 26299 वोटों के अंतर से जीत मिली. एलजेपी ने भी अपना प्रत्याशी उतारा, जिससे मुकाबला और रोचक हो गया.