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Coal India के पूर्व चेयरमैन पार्थसारथी ने लिखी किताब, जानिये कंपनी में कैसे आया बदलाव?

नयी दिल्ली : कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन पार्थसारथी भट्टाचार्य ने 70 के दशक में कंपनी के गठन से लेकर इसके भारी घाटा उठाने से मुनाफे वाली सार्वजनिक कंपनी बन जाने की पूरी कहानी को एक पुस्तक में दर्ज किया है. दिलचस्प बात यह कि भट्टाचार्य की इस पुस्तक के प्रस्तावना को पूर्व राष्ट्रपति […]

नयी दिल्ली : कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन पार्थसारथी भट्टाचार्य ने 70 के दशक में कंपनी के गठन से लेकर इसके भारी घाटा उठाने से मुनाफे वाली सार्वजनिक कंपनी बन जाने की पूरी कहानी को एक पुस्तक में दर्ज किया है. दिलचस्प बात यह कि भट्टाचार्य की इस पुस्तक के प्रस्तावना को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लिखा है. भट्टाचार्य उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने इस सफलता की इबारत गढ़ी है. वर्ष 2010 में जब कोल इंडिया लिमिटेड का आईपीओ आया था, भट्टाचार्य ही कंपनी के चेयरमैन थे. वह महज 26 वर्ष की उम्र में प्रबंधन प्रशिक्षु के तौर पर कंपनी से जुड़े थे. उन्होंने ‘व्हेन कोल टर्न्ड गोल्ड : दी मेकिंग ऑफ ए महारत्न कंपनी’ में इस जबरदस्त सफलता के पीछे के कारणों पर प्रकाश डाला है.

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पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में भट्टाचार्य ने कहा कि यह कंपनी के अंदर घटी कहानी है, जिसे प्रबंधन ने अपनी नवोन्मेषी सोच के साथ रणनीति के सिद्ध सिद्धांतों के प्रयोगों एवं वित्तीय बुद्धिमता के आधार पर तैयार किया. सरकार और कर्मचारियों से मिला सहयोग भी उल्लेखनीय है. निश्चित तौर पर इस कहानी ने विश्वभर के निवेशकों के जेहन पर अमिट छाप छोड़ी.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा कि एक सांसद तथा कनिष्ठ मंत्री होने के नाते वह कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के साक्षी रहे हैं. बाद में वित्त, वाणिज्य, इस्पात एवं खनन मंत्री होने के नाते वह राष्ट्रीय योजनाओं के महत्व को समझते हैं. भट्टाचार्य ने कहा कि कोल इंडिया और इसकी सहयोगी इकाइयां पारंपरिक तौर पर गलत कारणों से जानी जाती रही हैं.

उन्होंने लिखा कि अक्टूबर, 2008 में कंपनी को नवरत्न का दर्जा मिलने के बाद इस पर नाटकीय तरीके से मूल्यवर्धन को परिलक्षित करने का दबाव आया. सरकार ने स्पष्ट हिदायत दी कि तीन साल के भीतर कंपनी को शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जाये, वर्ना शीर्ष समिति उसकी समीक्षा करेगी, जिससे नवरत्न दर्जा खतरे में आ सकता है.

उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त होने में अधिक समय बचा नहीं था. मैंने महसूस किया कि कंपनी को सूचीबद्ध करना इसके प्रति सबसे बड़ी सेवा होगी. भट्टाचार्य ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण यह महसूस करना रहा कि सेवानिवृत्त होने से पहले कंपनी को सूचीबद्ध नहीं करना सेवा से विमुख होना होगा, क्योंकि इससे कंपनी के सामने नवरत्न दर्जा खोने का जोखिम उपस्थित हो जायेगा.

उन्होंने कहा कि घरेलू पूंजी बाजार के लिए 3.5 अरब डॉलर के तब तक के सबसे बड़े आईपीओ को 54 अरब डॉलर यानी 2,33,000 करोड़ रुपये का अभिदान मिला और इसे 15 गुना से अधिक अभिदान प्राप्त हुआ. इसने लगभग सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले और यह उस साल विश्व के तीन सबसे बड़े आईपीओ में एक रहा. कंपनी के शेयर सूचीबद्धता के दिन की 40 फीसदी चढ़ गये और साल के भीतर 60 फीसदी की बढ़त में रहे. अगस्त, 2011 में कंपनी कुछ दिनों के लिए देश की सबसे बड़ी कंपनी भी रही.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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