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पेंशनरों के लिए जरूरी खबर, Pension बढ़ाने के मामले में आया बड़ा फैसला

बरसों से हमारे समाज में मंथन और परिवर्तन से काफी हो रहे हैं. संयुक्त परिवार की व्यवस्था का स्थान एकल परिवार ले रही है. एकल परिवारों के विकास ने व्यक्तिवाद और व्यक्तिवादी सोच में वृद्धि की है और वह पीढ़ी विकसित हो रही है, जो अपने बुजुर्ग माता-पिता या दादा-दादी के संरक्षण से दूर रहना चाहती है.

नई दिल्ली : भारत के करोड़ों पेंशनरों के लिए एक जरूरी खबर है. वह यह कि केंद्र सरकार ने पेंशन बढ़ाने के नियमों में बदलाव करने का फैसला करने का मन बना रही है. एक संसदीय समिति की सिफारिश पर सरकार पेंशनरों को अतिरिक्त पेंशन के भुगतान को लेकर जल्द ही कोई फैसला कर सकती है. माना यह जा रहा है कि सरकार की ओर से देश के करोड़ों पेंशनरों को अतिरिक्त पेंशन भुगतान को लेकर कोई प्रावधान कर सकती है. हालांकि, स्थायी समिति की सिफारिश पर आर्थिक मामले विभाग के बजट प्रभाग ने पेंशन एवं पेंशनर्स कल्याण विभाग से यह सवाल भी पूछा है कि देश के लाखों पेंशनरों के बकाया पेंशन के भुगतान के लिए सरकार की देनदारियां वैसे ही बढ़ी हुई हैं, जब अतिरिक्त पेंशन भुगतान का प्रावधान किया जाएगा, तो उसके लिए पैसे कहां से आएंगे?

एकल परिवार पेंशनर्स के जीवन में सबसे बड़ी बाधा

संसद की स्थायी समिति की ओर से की गई सिफारिश में यह जिक्र किया गया है कि समिति बरसों से हमारे समाज में हो रहे सामाजिक मंथन और परिवर्तन से काफी परिचित है. हमारे देश में संयुक्त परिवार की व्यवस्था रही है और एकल परिवार उसका स्थान ले रही है. एकल परिवारों के विकास ने आगे चलकर व्यक्तिवाद और व्यक्तिवादी सोच में वृद्धि की है और वह पीढ़ी विकसित हो रही है, जो संयुक्त परिवारों की परंपरा के अनुसार बुजुर्ग माता-पिता या दादा-दादी के संरक्षण से दूर रहना चाहती है. ऐसे में, बुजुर्गों की देखभाल की समस्या बढ़ती ही जा रही है.

पेंशनर्स संगठन ने अतिरिक्त पेंशन की मांग की

स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में यह भी कहा है कि एक अनुमान के अनुसार, 2050 तक देश की जनसंख्या में 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों की संख्या काफी बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में, सामाजिक स्तर पर इस तरह के बदलावों को देखते हुए हमें बुजुर्गों के लिए एक मजबूत पेंशन प्रणाली की आवश्यकता है, जो उन्हें इस दुनिया में किसी पर बोझ बने बिना जीवित रहने में मदद कर सके. स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि पेंशनरों के संगठनों ने सरकार 65 साल की आयु प्राप्त करने वाले पेंशनरों को 5 फीसदी अतिरिक्त पेंशन, 70 साल वालों को 10 फीसदी, 75 साल वालों 15 फीसदी और 80 साल वालों को 20 फीसदी अतिरिक्त पेंशन देने की मांग की है. समिति ने कहा कि सरकार को पेंशनरों के संगठनों की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए.

अतिरिक्त पेंशन भुगतान के लिए कहां से आएंगे पैसे

स्थायी समिति ने अनुशंसा की है कि पेंशन एवं पेंशनर्स कल्याण विभाग (डीओपीपीडब्ल्यू) वित्त मंत्रालय के साथ गंभीरता के साथ आगे बढ़े और समिति को उससे अवगत कराए. स्थायी समिति की अनुशंसा पर व्यय विभाग ने 5 अप्रैल 2022 को सलाह दी कि पेंशन एवं पेंशनर्स कल्याण विभाग ने यह नहीं बताया है कि सरकार द्वारा अतिरिक्त वित्तीय भार कैसे पूरा किया जाएगा. इसलिए, यह सलाह दी जाती है कि पहले आर्थिक मामले विभाग के बजट प्रभाग की टिप्पणियों का इंतजार करे.

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सरकार पर पड़ेगा अतिरिक्त बोझ

व्यय विभाग द्वारा दिए गए सलाह के अनुसार, प्रस्ताव पर उनकी टिप्पणी मांगने के लिए यह मामला 07 अप्रैल 2022 को आर्थिक मामले विभाग के बजट प्रभाग के पास भेजा गया था. आर्थिक मामलों के विभाग ने 2 मई 2022 को अपने जवाब में कहा कि पुरानी पेंशन योजना के कारण सरकार की पेंशन देनदारियां वित्त वर्ष 2022-23 में न केवल 2.07 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है, बल्कि साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं. वर्तमान प्रस्ताव के कारण इन देनदारियों में और वृद्धि सरकार पर महत्वपूर्ण दबाव डालेगी, जो वांछनीय नहीं हो सकता है, जब सरकार राजकोषीय समेकन के मार्ग का पालन करते हुए उत्पादक निवेश के लिए उच्च संसाधन प्रदान करने में जुटी हुई है. इसके अलावा, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में सुधार और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के साथ समग्र जीवन प्रत्याशा में और वृद्धि होने की उम्मीद है.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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