Prabhat Khabar Exclusive: ‘2014 के बाद भारत ने सपना देखना शुरू किया या भारत के लोगों ने कि 2014 तक हमें कहां पहुंचना है?’ ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के साथ प्रभात खबर डॉट कॉम के संपादक जनार्दन पांडेय के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू का छोटा अंश है. इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू की पहली कड़ी हमने आपके सामने 7 मार्च 2025 को पेश की थी. आज हम इसकी दूसरी कड़ी पेश कर रहे हैं. खास बात यह है कि आप इंटरव्यू की बातचीत को पढ़ने के साथ वीडियो की शक्ल में देख भी सकते हैं. पेश है राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के साथ इंटरव्यू की दूसरी कड़ी…
जनार्दन पांडेय: अभी जब सर आपने गांव का जिक्र किया, तो मुझे वो सब चीजें याद आने लगी आपने गांव के कल्चर के संस्कृति के बारे में. थोड़ी-थोड़ी बातें कही, तो गांव में मैं अक्सर देखता था कि अगर किसी के घर में बेटी की शादी है, तो बेटी की शादी में कांडाल की जरूरत रहती है, एक ड्रम की जरूरत होती है, जिसमें बारात को पानी पिलवा जाएंगे. तो उस खास दौर में भले पहले उनमें आपस में एक दूसरे से ना बनती रही हो, लेकिन उस खास दिन में लोग थालियां देते हैं, अपने आपके घर में 20 थाली है, तो आप 20 थाली पहुंचा जाइए. आपके घर में बाल्टियां हैं, तो आप बाल्टी ले आइए. आपके घर में कलछी को बांटेंगे, तो कलछल लेते आइए. वो दे देते हैं उस खास घर में. एक दिन दो दिन वो अपनी कठिनाई से जीवन बिता देते हैं. तखत लोग अपने घरों में, जिसके घर में चार छह तखत है, वो वहां जाकर पहुंचा आते हैं कि उनके जनवाश में रखा जाएगा. तो लोग वो पूरा जहन में रिकॉल होने लगा और वह भारतीय मूल्य, वह भारतीय संस्कृति है शायद जो जॉर्ज बर्नार्ड शॉ वहां पूछ रहे थे दुर्गादास जी से. बहुत सारे इस तरह का यह पॉडकास्ट या इंटरव्यू या जो भी हम इसे कहें बातचीत है कि जिसमें खुद को भी अवलोकन करने का बड़ा अवसर मुझे आ रहा है. आपसे बात करते हुए आपने जिक्र किया भारत के बारे में और 2014 के बाद के बारे में. इस पर थोड़ा सा और जोर डाल कर के बताएंगे कि कौन सा परिवर्तन 2014 के बाद हुआ है? आपने कहा कि 2014 के बाद कुछ नई चीजें हुईं अनेक चीजें जैसे साल 2014 के बाद कौन सा परिवर्त्तन हुआ?
हरिवंश: 2014 के बाद भारत ने सपना देखना शुरू किया या भारत के लोगों ने कि 2014 तक हमें कहां पहुंचना है? हम यानी 100 वर्ष हमारी आजादी के होंगे, उस वक्त हम किस रूप में भारत को देखना चाहते हैं. आपको बताऊं कि सामयिक इतिहास मेरी रुचि का विषय रहा और मैं बगल में चीन को बड़े गौर से देखता और जानता रहा, क्योंकि दोनों की सभ्यताएं बड़ी विलक्षण रही हैं और बड़ी प्राचीन रही और एडिशन है. शायद दुनिया के जानेमाने आर्थिक इतिहासकार जो ये कहते हैं कि दो 250 साल पहले पहली शताब्दी से लेकर लगभग 1700-1800 वर्षों तक दुनिया की आर्थिक साम्राज्य दो ही मुल्कों के व्यापार पर टिका होता था और वही आर्थिक ताकत थे. एक भारत और दूसरा चीन.
अच्छा… तो चीन को समझने की मैं कोशिश करता रहा कि क्यों चीन 1977 के बाद इतनी तेजी से विकास करने पाया, 1948 में जो चीन हमसे कई चीजों में पीछे था. जब हम दोनों ने लगभग 1948-1950 के बीच नई यात्रा शुरू की. भारत आजाद हुआ. चीन ने साम्यवाद के तहत माओ के आने के बाद एक नया अभियान, एक नया सपना उसने शुरू किया. 1977 तक भारत चीन से रेल से लेकर डिफेंस से लेकर बाकी चीजों में बहुत सारी चीजों में आगे था. चीन से ये सारे फैक्ट्स हैं. हम आपको विस्तार से बता सकें. कुल आशय होता है कि अभी 50 साल नहीं पूरे हुए और इवन 1980 तक आप जाएंगे, तो कुछ चीजों में भी 1980 तक भारत आगे था. 1990 तक भी एकाध कुछ चीजों में आगे था, पर दुनिया के विकास का जो आर्थिक इतिहास है, दुनिया का उसमें इतने कम समय में कोई देश अपनी तकदीर बदल ले, वो उदाहरण चीन का है.
आज मैं जब आपसे बात कर रहा हूं, तो एक सामान्य व्यक्ति की तरह मैं जिस संवैधानिक पद पर हूं, जहां काम करता हूं, वहां मैं एक आम भारतीय नागरिक की तरह अपनी बात आज अपनी चिंता आपके सामने खुलकर रख रहा हूं. जी… तो ये मुझे चीज बराबर मेरे दिमाग में एक वजह होती थी कि क्यों ऐसा हुआ. जब मैं चीन पर बहुत पढ़ना शुरू किया, तो पता चला कि पहली गलती हमसे आजादी के बाद हुई थी कि भारत के लिए हमने कोई मुकम्मल सपना नहीं देखा. 1948 के आसपास चीन ने सपना देखा कि 100 वर्षों बाद चीन कहां खड़ा होगा. 100 वर्षों बाद चीन दुनिया में बड़ी ताकत के रूप में उभरे यह संकल्प उन्होंने 1948 में लिया. 1950-1948 से 50 साल के बीच जब वो नई यात्रा शुरू कर रहे थे, पर उस सपने को मूर्त रूप दिया जिस व्यक्ति ने, वो देंग शियाओ पेंग थे. उनके बारे में दुनिया कम जानती है. दुनिया माओ को याद करती है, पर वो टर्न अराउंड क्या था. वो टर्न अराउंड ये था जनार्दन कि 1977-78 आते-आते तक चीन भयानक गरीबी अकाल अनेक प्रॉब्लम से गुजर रहा था. आपको याद होगा कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण किस तरह से कई चीजें उनके यहां शुरू हुई, क्योंकि वह एक आर्थिक रूप से सफल देश नहीं बन पा रहा था. तब देंग शियाओ पेंग ने अपने समय के बड़े लोगों से परामर्श करके जिनमें एक सिंगापुर की ली क्योन यू थे. लीन क्योन यू आप जानते हैं, जिन्होंने सिंगापुर को बदल दिया.
सिंगापुर एक दलदल और कछार मुल्क होता था. ये सारे लेख इन चीजों पर मेरे जिस आप कह रहे हैं 10 खंडों में हैं, उनमें यह मिलेंगे. इन चीजों पर अच्छा… तो सिंगापुर कैसे एक विकसित देश बन गया और उसमें क्या एक व्यक्ति एक राजनेता की भूमिका रही. वे ली क्योन यू थे. पढ़ने लायक दो-तीन खंडों में उनकी आत्मकथा है. उस पर भी हमने इस पुस्तक में भी और मैं जिस अखबार में जुड़ा था, उसमें लिखता था. इन चीजों पर काफी मैंने वहां की यात्रा की, तो क्या पाया दलदल था, कछार था, अविकसित था. कोई उसकी पहचान और वजूद नहीं था और यह कालखंड वही है, जब भारत भी साथ-साथ में आगे बढ़ रहा है. नहीं, भारत ऑलरेडी अपनी यात्रा शुरू कर रहा था. शायद 1965-70 की बात होगी या उससे थोड़ा पहले. हां, पंडित जी के कार्यकाल की बात होगी. लिखा ली क्योन यू ने कि पंडित जी हमें फेसिनेट करते थे. जवाहरलाल जी और मुझे लगता था मैं भारत की तरफ देखता था, तो वो शायद कैंब्रिज में पढ़ते थे कि मुझे अपने मुल्क को बड़ा बनाना है और मैं भारत की तरफ देखता था कि भारत में कुछ नया हो रहा है. भारत में आया दो-दो, तीन-तीन बार आया. पंडित जी से भी उनकी मुलाकात का वर्णन है. यह किताब हर भारतीय को पढ़ना चाहिए कि हमने कहां गलती की.
जो सवाल आपने 2014 के बाद का पूछा है, मैं उसी संदर्भ में उत्तर दे रहा हूं. देंग शियाओ पेंग लिखते हैं अपनी दो तीन खंडों की उनकी आत्मकथा में उस भारत के बारे में वर्णन है. बहुत अच्छी तरह से आपकी ब्यूरोक्रेसी के बारे में वर्णन है. आपके राजनेताओं के बारे में वर्णन है. बहरहाल मैं लीन क्योंन यू को देंग शियाओ पेंग ने बुलाया या उनसे मिले. ठीक है. यह मैंने विवरण पढ़ा, जब मैं अखबार में ही काम करता था. एक किताब अमेरिका से छपी. वो किसिंगर इंस्टिट्यूट जो है, जिसमें हार्वर्ड के भी एक प्रोफेसर हैं. तीन पॉलिसी मेकर्स अमेरिका के उन्होंने मिलकर लीन क्योंन यू से बात की .थी अच्छा कि आप दुनिया के बड़े स्टेट्समैन में लीन क्योन यू माने गए. विजनरी स्टेट्समैन ए मैन विथ परसेप्शन आइडियाज. एक छोटे मुल्क का आदमी दुनिया का इतना बड़ा राजनेता बन गया. जब नरसिम्हा राव जी ने उदारीकरण किया, तो वह जीवित थे. भारत में उनको बुलाया बोलने के लिए. अपने और आपके जॉइंट सेक्रेटरी के ऊपर के लोगों को उन्होंने उसमें मीटिंग में रखा कि उस मीटिंग को एड्रेस करेंगे लीन क्योन यू तो आप उनके महत्व को समझ गए. उस लीन क्योन यू से देंग शियाओ पेंग की चर्चा होती है कि चीन को हम कहां आगे ले जाएं. बड़ी लंबी चर्चा हुई. उस पुस्तक में वर्णन है, जो मैंने कहा. अमेरिकन उसका तीन स्कॉलर से मिलकर के लीन क्योन यू से बातचीत करके लिखी. उसमें भारत के बारे में भी है. अच्छा, तब तक भारत से निराश हो चुके थे लीन क्योन यू. उन्होंने भारत के बारे में भी बोला है कि भारत क्यों नहीं बढ़ पा रहा. भारत की मुश्किलें क्या है, चिंता क्या है. आज की तारीख में भी उन चीजों को निकालकर देश को याद दिलाना चाहिए, पर ये चीजें हैं, जो हमारे मुल्क में चर्चा नहीं होती. ना हमारे जो सो कॉल्ड स्कॉलर्स हैं, ना जो मीडिया के टॉप पर्सन हैं, जो अंग्रेजी वगैरह सब जानने वाले विद्वान लोग माने जाते हैं, कोई इन चीजों पर खुलकर बात नहीं करता. लेकिन, वो फेसिनेट होते हैं लीन क्योन यू से सिंगापुर से. अमेरिका से भी फेसिनेट होते हैं, लेकिन क्यों भारत नहीं बढ़ पा रहा. उन लोगों ने अपने अनुभव क्या लिखे भारत के बारे में. क्या भारत की चुनौतियां हैं. कोई इस पर डिस्कस नहीं करता. लंबी बातचीत हुई. देंग शियाओ पेंग की बड़ी दिलचस्प बातचीत. फिर देंग शियाओ पेंग ने चीन को बदलना शुरू किया.
देंग शियाओ पेंग के दो-तीन माइल स्टोन हैं, जो मैं आपको बताना चाहता हूं. हर भारतीय को जानना चाहिए. चाहे वो झारखंड वासी हो या किसी और प्रदेश का हो. भारत को मजबूत बनाना ही हम सबके अस्तित्व से जुड़ा है और कैसे आज जुड़ा है, मैं उसका भी उल्लेख करूंगा अभी. देंग शियाओ पेंग ने कहा 1977-78 में जब चीन को उन्होंने मार्केट इकॉनमी की तरफ नजर डालना शुरू किया. ठीक है. तो बड़ा सवाल उठा साम्यवाद का. दुनिया में तब आईडियोलॉजी का वर्ल्ड था. साम्यवाद की दुनिया में तूफान आ गया. भाई, आप तो भटक रहे हैं. आप रिविजनिस्ट हो गए. अगर आप साम्यवादी टर्मिनोलॉजी जानते हैं, तो ये शब्द पहले बहुत चलता था और साम्यवाद लिटरेचर भी काफी हमें पढ़ने का अपने मित्रों के माध्यम से मौका मिला, तो ही वाज कॉल्ड रिविजनिस्ट. ये तो भटक गए, ये खत्म हो गए, बुर्जुआ रास्ते पर जा रहे हैं पूंजीवाद की तरफ. तो क्या जवाब दिया देंग शियाओ पेंग ने? कहा कि इट मैटर्स हार्डली वेदर कैट इज ब्लैक और वाइट टिल इट कैचेज माउस. ये क्या मतलब है कि बिल्ली काली है या सफेद है. अगर उसमें चूहा पकड़ने की क्षमता नहीं है, तो बिल्ली बेकार है. यही ना कथन है. इसका मकसद था कि हमारी इकॉनमी साम्यवाद हो, मार्केट इकॉनमी हो, कैपिटल इकॉनमी हो, सोशलिस्ट इकॉनमी हो, इससे क्या फर्क पड़ता है. असल बात है कि हमारी इकॉनमी में हमारे देश के लोगों को संपन्न बना सकने की क्षमता है या नहीं है. राइट एसेंस था और आज वही चीन जो भारत से पीछे था, पांच गुना इकॉनमी है उनकी. महाशक्ति. भारत 2014 के बाद अपनी जो यह फिगर चेक करना पड़ेगा शायद जब यह सरकार आई तो एक ट्रिलियन डॉलर के आसपास हमारी इकॉनमी पहुंच रही थी. उसके बाद दो ट्रिलियन डॉलर हुई है, अब तीन के आसपास या तीन से आगे बढ़ चुकी है. एक तो यही प्रगति देख लीजिए, जो हमारी इकॉनमी जिस रूप में बढ़ रही है, आज हम दुनिया की पांचवीं इकॉनमी है और तीसरी की ओर जा रहे हैं. पर सबसे बड़ी बात 2014 के बाद हुई, वो देश ने एक सपना जो चीन ने 1948-50 में देंग शियाओ पेंग के नेतृत्व में देखा कि हम सबसे बड़ी ताकत दुनिया की बनेंगे, वो हम 2014 के बाद बात इस प्रधानमंत्री के सौजन्य से सुन रहे हैं कि 2047 तक भारत को कहां पहुंचना है और क्यों पहुंचना है.
हम फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी में, जनधन योजना में, सड़कों के या इंफ्रास्ट्रक्चर की क्रांति में, नॉर्थ ईस्ट के बदलाव में, क्योंकि नॉर्थ ईस्ट में 1980 से जब बिल्कुल यंग पत्रकार था, आंदोलन का कवरेज करने जाता था. आज मैं देखता हूं, कल्पना नहीं कर सकते आप कि किस रूप में देश में बदलाव हुआ है. मैं डिफेंस कमेटी में 4 साल था. हमारे बॉर्डर पे सड़कें नहीं हुआ करती थीं. क्या उसकी वजह थी. वो भी दिलचस्प प्रकरण है. कभी सुनाऊंगा आपको. वहां सड़कें से लेकर सारी चीजें देश में हो रहा है और देश की तरफ दुनिया लालायित होकर आज देख रही है कि हम इस देश से समझौता करें, हमारा ट्रेड रिलेशन भारत से बने. हमारा ग्रोथ रेट सबसे अधिक है. हमने कोविड को अपने बूते झेला. राइट, मैं अनंत चीजें गिना सकता हूं, पर सबसे बड़ी चीज जो मैं कह रहा हूं कि जो सपना देखना देश ने शुरू किया, उसी रूप में जैसे एक व्यक्ति अपने जीवन का ध्येय बनाता है कि हमें पांच वर्ष, 10 वर्ष, 20 वर्ष, 25 वर्ष बाद पहुंचना कहां है. मंजिल हमने देखना 2014 के बाद शुरू किया. हम आजाद हुए थे 1948-50 में. यह समय मैं मानता हूं कि हमारे नेतृत्व में कहीं कमी रही. इस वक्त के जितने नेतृत्व थे, यह सारे सवाल उनके साथ जुड़ते हैं, उनके विजन के साथ जुड़ते हैं. उनके सारे महान योगदान के बाद यह सवाल तो उठेंगे. आने वाली पीढ़ियां पूछेंगी.
अब चीन ने क्या किया कहां खड़ा है. यह मैं भारत के संदर्भ में आपको बताऊं कि जब देंग शियाओ पेंग ये कहते हैं हम 1977 में कि बिल्ली काली है या सफेद क्या फर्क पड़ता है, वो चूहा पकड़ सकती है कि नहीं. यानी क्षमतावान और परिणाम देने वाली है या नहीं. रिजल्ट ओरिएंटेड है या नहीं. उसी वक्त एक और बात उन्होंने कही क्या. चीन को कहा कि चुपचाप ऐसा प्रोग्रेस करो कि दुनिया को आहट भी ना लगे कि तुम दुनिया के रंगमंच पर पहुंचकर दुनिया के ताकतवर देश बन गए हो. अच्छा यह भी कोट है उनका. हम फेसिनेटिंग देंग शियाओ पेंग का जीवन है और कैसे दो-दो, तीन-तीन बार माओ ने उनको अपने पद से हटाकर लगभग खत्म करने के लिए लेबर कैंप में डाल दिया. उनके परिवार. शायद एक बच्चा भी नहीं रहा. बहुत दुर्घटनाएं उनके परिवार में हुईं. जब उनकी बायोग्राफी में पढ़ता था, उस वक्त या सामयिक परिवर्तन की किताबें, जो मैंने आपको दिखाई, पढ़ता था. वे सब दस्तावेज पड़े हुए हैं. मुझे आश्चर्य है. भारत के इस भद्र लोग जो कहते हैं. आज एलिट क्लास को इन चीजों पर चर्चा नहीं करता. वह इंट्रोस्पेक्ट नहीं करता.
अब चीन ने कैसे जवाब दिया. अभी आपने देखा पांच गुना इकॉनमी तो हो चुका. लोग सवाल पूछते हैं कि मान लीजिए अमेरिका में जो लोग चले गए हैं गैर कानूनी ढंग से, किसी भी देश में किसी देश को अधिकार है कि गैर कानूनी लोगों को निकाले, हटाए. हमारी कमजोरी रही. हम नहीं करते रहे, पर हमारे देश का कोई व्यक्ति चीन चला जाए अगर बिना उसके या दूसरे किसी और मुल्क में चला जाए, आप देखिए वहां के क्या नियम हैं और क्या होता है उसके साथ. वह एक अलग प्रसंग है. जैसे हमारे अमेरिका के प्रेसिडेंट ट्रंप साहब. हमने प्रेसिडेंट बनते ही हम लगभग 500 बिलियन शायद 500 बिलियन डॉलर पैसा दिया अपनी टेक्नोलॉजी कंपनियों को. कहा कि ये इसमें गूगल से लेकर सारी जो बड़ी टेक कंपनियां हैं, यह नए इनोवेशंस एआई वगैरह में करके भारत को अमेरिका को दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क फिर बनाएगी. अमेरिका फर्स्ट होगा. इसी मिशन के साथ तो चले कि अमेरिका फर्स्ट.
इसे भी पढ़ें: Magadha Empire : अजातशत्रु के शासनकाल में महात्मा बुद्ध ने त्यागा था देह, राजगृह में बना है स्तूप
चीन ने कोई प्रचार अपने बारे में नहीं किया. चीन ने कुछ नहीं किया. चीन ने सिर्फ अपनी डीप सिक कहते हैं ना. डीप सिक. उसने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक वो लांच कर दिया. उसके बाद दुनिया को पता चला और उसका असर क्या हुआ कि एनवीडिया जो कंपनी है, 63 लाख करोड़ पूंजी नीचे चली गई. यह जवाब है, जो देंग शियाओ पेंग ने कहा था, संकल्प लिया था 1977 में. आज उसने करके उस रूप में दिखाया, उस रूप दिखाया. 2014 के बाद इस देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने का स्वर इसी प्रधानमंत्री ने दिया और बड़ी तेजी से इस चीज की ओर ले जा रहे हैं, लेकिन यह विकास का काम रातोंरात नहीं होता.
इसे भी पढ़ें: कहां छुपा है भारत की समृद्धि का राज? जानना है तो पढ़ें और देखें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.