Success Story: भइया, जब तक थाली में स्वादिष्ट खाना न हो, तब तक दिल खुश कैसे होगा? लेकिन आजकल जो भी खा रहे हैं, उसमें केमिकल की भरमार है. अब इसी चक्कर में उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के शाहपुर गांव के संदीप सिंह ने ठेकेदारी छोड़कर खेती पकड़ ली. ठेकेदारी में पैसा तो खूब था, लेकिन एक दिन अखबार में पढ़ा कि केमिकल वाली खेती से सेहत का कचूमर निकल रहा है. बस, उसी दिन ठान लिया “अब खेती ही करेंगे, लेकिन वो वाली जिसमें रसायन का नामोनिशान न हो.
केमिकल वाली खेती का खेल समझ आया
गांव में नज़र दौड़ाई तो देखा कि हर कोई यूरिया, डीएपी और पेस्टीसाइड्स डाल-डालकर मिट्टी की ऐसी-तैसी कर रहा था. खेतों की उर्वरता (Fertility ) खत्म हो रही थी और फसलें भी धीरे-धीरे ज़हर का रूप ले रही थीं. पहले जमाने में लोग खेतों से फल तोड़कर ऐसे खा लेते थे, अब हर चीज धोने और चेक करने के बाद भी मन में डर बना रहता है ‘पता नहीं कितनी केमिकल की डोज़ होगी’.

फुल नेचुरल मोड में खेती का फैसला
भइया, जब दिमाग में ये खलबली मची तो सीधे पहुंच गए दीनदयाल कृषि विज्ञान केंद्र, सतना. वहां के वैज्ञानिकों से सीखा कि कैसे बिना रसायन के खेती की जा सकती है. बस फिर क्या था, ठेकेदारी छोड़कर 16 एकड़ की खेती संभाल ली और पूरी तरह प्राकृतिक खेती करने का बीड़ा उठा लिया.
खेती का नया फॉर्मूला अपनाया
- सबसे पहले मिट्टी सुधारने के लिए ढैंचा बोया, जिससे खेत में जैविक नाइट्रोजन बढ़ जाए.
- गौमूत्र और गोबर की खाद से फसलों को ताकत दी.
- गांव की गौशाला से जैविक खाद खरीदी और खेतों में झोंक दी.
बिना केमिकल के उगाया बंपर आलू
अब सीधा नतीजे पर आते हैं! इस रबी सीजन में संदीप सिंह ने 9.5 एकड़ में गेहूं, 5 एकड़ में सरसों और 2.5 एकड़ में आलू लगाया. कुफरी पुखराज और कुफरी आनंद किस्मों के आलू बोए और भाईसाहब, 130 दिन में बंपर फसल तैयार. प्रति एकड़ 110 क्विंटल आलू मिला. मतलब बिना केमिकल के भी ऐसा प्रोडक्शन कि आसपास के किसान देखते रह गए.
रोग-बीमारी से बचाने के लिए अपनाई देसी टेक्नीक
अब सवाल ये कि बिना केमिकल के फसल बचेगी कैसे? तो भइया, इसके लिए अपनाया देसी जुगाड़. बीज को बीजामृत (Seed Nectar )से ट्रीट किया. 10 लीट जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर दो बार छिड़काव किया. पछेती झुलसा से बचाने के लिए 100 लीटर पानी में खट्टी छाछ मिलाकर छिड़काव किया. लीफ कर्ल रोग से निपटने के लिए पारंपरिक धुआं तकनीक अपनाई.
अब सेहत भी बढ़िया और जेब भी भरी-भरी
अब फायदा क्या हुआ? तो भइया, मिट्टी पहले से ज्यादा ताकतवर हो गई, फसलें शुद्ध और हेल्दी आईं, और इनकम भी अच्छी-खासी हो गई. सबसे बड़ी बात, अब खुद भी बिना डर के खेत की सब्जियां खा सकते हैं.
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