100 Years Of Guru Dutt: गुरु दत्त हिंदी सिनेमा के उन महान कलाकारों में गिने जाते हैं, जिन्होंने अपनी फिल्मों से लोगों के दिलों को छू लिया. उनकी कहानियां जितनी सुंदर थी, उतनी ही गहरी भी थी. लेकिन दुख की बात है कि अपनी मौत के बाद उन्होंने लोगों को यह भी सिखा दिया कि मानसिक स्वास्थ्य की बातें छुपानी नहीं चाहिए. गुरु दत्त का असली नाम वासंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. फिल्मों में वो जितने सफल थे, निजी जिंदगी में उतने ही परेशान रहते थे. उन्होंने अपने पूरे करियर में सिर्फ आठ फिल्मों का निर्देशन किया.
उनकी पहली फिल्म बाजी साल 1951 में आई थी, जो काफी हिट हुई थी. इसके बाद उन्होंने कई शानदार फिल्में बनाई, जिनमें कागज के फूल सबसे खास है. लेकिन जब ये फिल्म रिलीज हुई तो फ्लॉप हो गई. इसके बाद गुरु दत्त इतने दुखी हुए कि उन्होंने दोबारा कभी डायरेक्शन नहीं किया. आज उसी कागज के फूल को उनकी सबसे बड़ी कृति माना जाता है.
गुरु दत्त की खासियत थी कि वो अपनी फिल्मों में लाइट और शैडो का कमाल दिखाते थे. उनकी फिल्मों में किरदारों की भावनाएं बहुत साफ नजर आती थी. उनकी आखिरी फिल्म का गाना वक्त ने किया क्या हसीन सितम आज भी लोगों की जुबान पर है, जिसे उनकी पत्नी गीता दत्त ने अपनी आवाज दी थी.
गुरु दत्त की फिल्मों और उनकी असल जिंदगी में कई चीजें एक जैसी थी. 1951 से 1955 के बीच उनकी फिल्में रोमांटिक और म्यूजिकल थी. इसी दौरान वो गीता रॉय से प्यार कर बैठे और 1953 में दोनों ने शादी कर ली. लेकिन 1956 के बाद उनके करियर और निजी जिंदगी दोनों में बदलाव आया. उनकी फिल्मों में समाज की सच्चाई दिखने लगी. प्यासा और कागज के फूल जैसी फिल्मों में उन्होंने समाज के हालात को दिखाया.
1956 में प्यासा बनाते वक्त उन्होंने पहली बार अपनी जान देने की कोशिश की थी. लेकिन परिवार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. धीरे-धीरे उनकी हालत और बिगड़ती गई और 10 अक्टूबर 1964 को वो सिर्फ 39 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए. गुरु दत्त आज भी अपनी फिल्मों और अपने हुनर के लिए याद किए जाते हैं.
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