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प्रभात इंटरव्‍यू – इस बात पर पति सिद्धार्थ से अक्सर होती है लड़ाई : विद्या बालन

फिल्में सफल हो या असफल, अभिनेत्री विद्या बालन की प्राथमिकता अपनी हर फिल्म से कुछ अलग करने की होती है. वह लीक से हटकर फिल्में करने में विश्वास करती हैं. वह खुद को लकी मानती हैं कि उन्हें लगातार ऐसी कहानियां और किरदार ऑफर हो रहे हैं. जहां वह कहानी की अहम धुरी होती हैं. […]

फिल्में सफल हो या असफल, अभिनेत्री विद्या बालन की प्राथमिकता अपनी हर फिल्म से कुछ अलग करने की होती है. वह लीक से हटकर फिल्में करने में विश्वास करती हैं. वह खुद को लकी मानती हैं कि उन्हें लगातार ऐसी कहानियां और किरदार ऑफर हो रहे हैं. जहां वह कहानी की अहम धुरी होती हैं. इस बार वह मीडिल क्लास हाउसवाइफ की कहानी ‘तुम्हारी सुलु’ लेकर आयी हैं. उनकी इस फिल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत …

‘लगे रहो मुन्नाभाई’ के बाद ‘तुम्हारी सुलु’ में भी आप रेडियो जॉकी बनी हैं. इस बार कितना होमवर्क करना पड़ा?

‘तुम्हारी सुलु’ और ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ में इतना ही फर्क है. जितना की दिन और रात में होता है. मुन्नाभाई में मैं रेडियो जॉकी के तौर पर मुंबई को जगाती थी और यहां सुला रही हूं. उस समय तो मैं जानती ही नहीं थी कि रेडियो किस तरह से काम करता है. मैं अलग-अलग रेडियो स्टेशन गयी और रेडियो जॉकी से मिली. राजू(राजकुमार हीरानी) चाहते थे कि मैं रेडियो जॉकी मलिष्का को देखूं. किस तरह वो अपना शो बनाते हैं. उनकी एनर्जी लेवल क्या होती है. सबकुछ पर मुझे गौर करने को कहा गया था. उसके बाद मैं कई रेडियो इंटरव्यूज का हिस्सा बनी थी. रेडियो से लेकर जितनी भी रिसर्च थी वो उस वक्त ही हो गयी थी. उस फिल्म को 11 साल रिलीज हुए हो चुके हैं, लेकिन रेडियो जॉकी की भूमिका को निभाने के लिए इस बार भी मेरा वही पुराना होमवर्क ही काम आया है.

सुलु की क्या खूबियां आप खुद में पाती हैं?

सबसे पहली समानता जो मुझे सुलु में एक सी लगती है कि वह आसानी से मुस्कुराती और हंसती है. काफी समय बाद मैं ऐसा कोई किरदार कर रही हूं. जो मुझसे मेल खाता है वरना पिछले कुछ सालों से मैं लगातार बहुत ही सीरियस और गमगीन किरदार ही निभा रही हूं. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं दिल खोल कर हंसी हूं. इतना अच्छा लगा है कि बता नहीं सकती हूं. बहुत ही रिप्रेशिंग इस फिल्म की शूटिंग मेरे लिए थी. दूसरी खूबी जो मुझे सुलु की बहुत अच्छी लगती है कि वह कभी भी हार नहीं मानती हैं कि ये चीज उससे नहीं होगी. यह बात उसकी डिक्शनरी में ही नहीं है. वह कोशिश करने में यकीन करती हैं इसीलिए फिल्म की टैगलाइन भी है, मैं कुछ भी कर सकती हूं. मैं उसके लिए यह टर्म बहुत ही खुशी से इस्तेमाल कर सकती हूं निर्लजम सदासुखी. जिनको एहसास नहीं है कि लोग उन पर हंस सकते हैं, वो कुछ भी कर गुजर सकते हैं. यही सुलु के साथ भी है.

निजी जिंदगी में आप कितनी निर्लजम सदासुखी वाली टर्म से मेल खाती हैं?

मैं तो निर्लजम हूं. मैं यह बात अभिनय के लिए कह रही हूं. मैं परदे पर कुछ भी कर सकती हूं. मुझे लगता है कि एक एक्टर को निर्लज होना ही चाहिए क्योंकि इतने लोगों के सामने आप अपने इमोशन को बयां करते हैं. इसमे आपको सहज होने के लिए निर्लज बनना पड़ता है.

इस फिल्म की टैगलाइन है, मैं कुछ भी कर सकती हूं. क्या कुछ ऐसा है जो आप नहीं कर सकती हैं?

रियल लाइफ की बात करूं तो मुझे खाना बनाना नहीं आता है. रील लाइफ की बात करूं तो मैं परदे पर कभी हॉरर जॉनर की किसी फिल्म से जुड़ना नहीं चाहूंगी. मैं हॉरर जॉनर को पसंद नहीं करती हूं. सभी कहते हैं कि आपने भूल भुलैया की थी, जो हॉरर थी लेकिन मैं सभी को बताना चाहूंगी कि वह फिल्म साइकोलोजिकल थ्रिलर थी. उस फिल्म में कुछ भी गंदा वंदा नहीं था. जब हॉरर के नाम पर वो सड़ी गली शरीर को डराने के लिए इस्तेमाल करते हैं तो बहुत बुरा लगता है. मैं नहीं देख सकती. कुछ दिन पहले मैं एक वेब सीरिज देख रही थी. वह हॉरर जॉनर की ही थी. शुरुआत में एक आदमी खुद को मार रहा है. जिस तरह से वह मार रहा था. बहुत ही गंदा था. मैं चिल्ला उठी. मेरे घर में काम करने वाली मिनी भागकर आ गयी कि मुझे क्या हो गया. वो वेब सीरिज सिद्धार्थ की वजह से मैं देख रही थी मैंने साफ कह दिया आप देख लो इसे अकेले. आमतौर पर हम एक सीरिज देखना शुरू करते हैं और हर दिन साथ में एक एपिसोड देखते हैं. लेकिन शुक्र है कि मैं प्रमोशन में बिजी रहूंगी तो वो हॅारर सीरिज वहीं अकेले देख लें.

क्या घर की टीवी पर क्या चलेगा क्या नहीं इस पर आप दोनों की लडाई भी होती है?

सच कहूं तो सिद्धार्थ में कोई इमान धरम नहीं है. आप उसे कभी भी उठा लो. सुबह के पांच बजे भी कि चलो सिद्धार्थ देखते हैं. फिर चाहे वह फिल्म हो या टीवी सीरिज. किसी भी जॉनर में हो या भाषा में. वह थिएटर में भी जाकर हर तरह का सिनेमा देखना इंज्वॉय करते हैं. कई बार वो मुझसे बोलते हैं कि तुम भी चलो अगर अच्छी नहीं लगी फिल्म तो हम वापस आ जायेंगे. मैं ना कहती हूं कि जिस फिल्म के बारे में मुझे पता नहीं होता है क्योंकि फिल्म खराब होगी और मुझसे खराब फिल्म देखी नहीं जाती है और सिद्धार्थ उसे भी देख लेते हैं फिर मुझे पूरे फिल्म के दौरान सिद्धार्थ को वापस चलने की रट लगानी पड़ती है चूंकि सिद्धार्थ हर कुछ देख सकते हैं. इसलिए टीवी पर वही होता है. जो मुझे पसंद है. अगर मैं शूट कर रही हूं या फिल्म का प्रमोशन तो उन्हें छूट होती है.

फिल्म में आप साडि़यों में नजर आ रही हैं, सभी को पता है कि आपको साडि़यां बहुत पसंद है क्या इस फिल्म में आपके भी कुछ इनपुट्स है?

इस फिल्म में सुलु के लुक का पूरा क्रेडिट निर्देशक सुरेश त्रिवेणी को जाता है. उन्होंने किरदार को पूरा खाका पहले दिन से ही बना लिया था कि वह साड़ी पहनती है. रात का शो करती है. एकदम आम महिला है लेकिन हां ये खुश मिजाज है कि इस वजह से साड़ी में कुछ खास रंग पहनती है फूलों की डिजाइन भी उसकी साड़ी का हिस्सा हैं. इन बातों को कॉस्टयूम डिजाइनर रिक ने समझा. बाजार में जब वह सिंथेटिक साडि़यां खरीदने गया तो उसे वह सालों पुरानी दिखी. जिसके बाद रिक ने खुद कुछ कुछ साडि़यां बनायी है. एक साड़ी से पल्लू बनाया तो दूसरी किसी से बॉर्डर. कभी कई दुपट्टे के मेल से भी साड़ी बनाया है. इसलिए आपको सुलु की साडि़यों में इतने प्रिंटस नजर आ रहे हैं. वरना आमतौर पर आम मीडिल क्लास महिलाओं की साड़ी में इतने प्रिंट नहीं होते हैं. वैसे मैं बहुत इंज्वॉय किया इस लुक को.

सुरेश त्रिवेणी की यह पहली फिल्म है किस तरह से आपका इस फिल्म से जुड़ना हुआ?

मेरे अब तक के कैरियर में मेरे घर के किसी भी सदस्य ने कभी नहीं कहा था कि मुझे ये स्क्रिप्ट सुननी चाहिए लेकिन यह पहली बार हुआ. मेरी बहन के पति केदार ने सुरेश त्रिवेणी से मुझे एक बार मिलने को कहा. सुरेश एड फिल्मकार हैं. जिस वजह से केदार उनके काम को बखूबी जानते हैं. उन्होंने कहा कि भले ही ना बोल देना लेकिन एक बार मिल जरुर लेना. मैं सुरेश से मिली. उन्होंने कई सारे आइडियाज मुझे सुनाए. मुझे तुम्हारी सुलु की आइडिया पसंद आया है. कुछ महीने बाद सुरेश तुम्हारी सुलु की पूरी स्क्रिप्ट लेकर मेरे पास आ गये. जिस तरह से उन्होंने कहानी का नरेट किया. मैंने उनके शब्दों में ही फिल्म देख ली. यह मीडिल क्लास परिवार की कहानी है. मैं खुद भी मीडिल क्लास से आती हूं. जिस वजह से मैं स्टोरी से और ज्यादा कनेक्ट हो गयी. फिल्म का लुक भी बहुत खास है. घर ऐसा है जैसे मेरे किसी रिश्तेदार का ही है. सुरेश त्रिवेणी अपनी पूरी टीम को परिवार की तरह मानते हैं. जिस वजह से पूरे सेट का माहौल बहुत खास होता था.

मीडिल क्लास की क्या क्वालिटीज है जो अब तक आप में बरकरार है?

सादगी और जीवन से जुड़े मूल्य अभी भी मेरा हिस्सा हैं. मैं किसी को बता रही थी कि घर पर जब भी खाना बनता हैं. मैं जरुर देखती हूं कि कितना बचा है. किसी को दे देना है या अगले दिन के लिए रखना है. मैं अपनी मां को यह बचपन से देखती आयी हूं. मैं भी यही करती हूं. मैं खाने की बर्बादी के सख्त खिलाफ हूं. फेंक देने से अच्छा है. कोई खा ले. अभी आप सिद्धार्थ और मेरे झगड़े के बारे में पूछ रही थी ना हमारी बिजली को लेकर झगड़े होते हैं. सिद्धार्थ टीवी का स्विच हमेशा ऑन रखने को बोलते हैं. मैं बोलती हूं जब टीवी देखेंगे तो ही उसे ऑन करेंगे क्यों बिजली की बर्बादी करना. सिद्धार्थ को अच्छा नहीं लगता है लेकिन घर पर मेरी ही चलती है.

बेगम जान असफल रही, क्या वजह रही आपकी फिल्‍में असफल हो रही हैं?

उम्मीद करती हूं कि अगली बार जब आप मेरा इंटरव्यू करने आये तो ये सवाल पूछे नहीं. आप समझ रही हैं ना. अब सफलता की बात हो. बहुत असफलता के बारे में बात हो गयी. वैसे मुझे लगता है कि बेगम जान ज्यादा इंटेंस हो गयी थी. जिस वजह से लोग उससे जुड़ नहीं पाएं. वैसे इस बार भी दुख हुआ लेकिन उसे लेकर बैठी नहीं रह पायी. 14 अप्रैल को फिल्म रिलीज हुई और 14 को मैं सुरेश त्रिवेणी के साथ थी. हम बारिश से पहले शूटिंग खत्म करना चाहते थे इसलिए 26 अप्रैल को हमने शूटिंग भी शुरू कर दी.

एक बार फिर से शारीरिक शोषण का मुद्दा गर्मा गया है, हॉलीवुड निर्मात्री हाव्रे विंसटिन ने भी शारीरिक शोषण की बात कबूल की है?

हां यह बहुत ही शॉकिंग था कि इतने प्रसिद्ध नाम के साथ भी ऐसा कुछ हो रहा था. वैसे शारीरिक शोषण हमेशा से था लेकिन अब बात हद से आगे निकल गयी है. इसलिए सभी इस पर खुलकर बात कर रहे हैं. मैं इस मामले में लकी हूं कि मुझे इंडस्ट्री में इस तरह की किसी भी घटना से दोचार नहीं होना पड़ा था. इसके पीछे मेरी मीडिल क्लास सोच ही थी. मुझे थोड़ा भी गलत जहां लगता था. मैं वहां से हट जाती थी. वैसे मेरे पास इन सबको ना कहने की सहूलियत थी, क्योंकि मैं अपने माता पिता के साथ रहती थी. अगले दिन मुझे भूखा नहीं सोना पड़ेगा. रुम का भाड़ा नहीं देना पड़ेगा. यह सब सवाल मेरे साथ नहीं था, इसलिए मैं इन चीजों से दूर ही रही. ये सब घटनाएं बहुत ही दुर्भायपूर्ण हैं. हम लड़कियों को अब इनके खिलाफ आवाज उठाना होगा. इस बात के साथ ही मैं ये बात भी कहूं कि कई बार लड़के बोल देते हैं कि आपकी टांगे बहुत खूबसूरत हैं. मैं इन्हें देखते रहना चाहता हूं तो उस बात से खुश मत होईएं. तुरंत ही टोके. दोस्ती के नाम पर कहीं पर भी हाथ रख देना पुरुष मित्रों का ये सब भी खत्म होना चाहिए. ये मेरी सोच है. हो सकता है कि दूसरों की राय इससे अलग हो.

क्या ऑटोबायोग्राफी लिखने की आपकी भी ख्वाहिश है?

हां लिखूंगी, लेकिन फिलहाल तो नहीं, क्योंकि इसके लिए बहुत सारा मेटेरियल चाहिए. वैसे मैं अकेले बायोग्राफी नहीं लिख सकती हूं. मैं किसी के साथ मिलकर लिख सकती हूं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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