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Mahakumbh mela 2025:कैलाश खेर ने कहा महाकुंभ गीत से सनातन धर्म का कर रहा हूं प्रचार

कैलाश खेर इस बार भी महाकुंभ के एंथम गीत से जुड़े हैं. इस इंटरव्यू में उन्होंने इस गीत और महाकुंभ से अपने जुड़ाव पर बात की है.

mahakumbh mela 2025:आगामी 13 जनवरी से महाकुंभ प्रारम्भ होने जा रहा है. संगीतकार और गायक कैलाश खेर का नाम इस बार भी कुंभ के लिए एंथम बनाने से जुड़ा है. इसके साथ वह इस बार भी कुंभ में अपने बैंड कैलासा के साथ खास प्रस्तुतियां देने जा रहे हैं. इन सभी पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

कुंभ के लिए एंथम बनाना चुनौतीपूर्ण नहीं बहुत प्यारी प्रक्रिया

जैसा कि सभी को पता है कि कुंभ का मुखर गीत या फिर जिसको हम एंथम गीत अंग्रेजी में कहते हैं. उसे सूचना प्रसारण मंत्रालय के लिए हम गा रहे हैं. इस बार के एंथम गीत के बोल महाकुंभ है महाकुंभ है.. इस गीत को लिखा है श्री आलोक श्रीवास्तव ने, संगीतबद्ध किया है क्षितिज ने और गाया है अपने सुमधुर कंठ से पद्मश्री श्री कैलाश खेर ने. इसके एंथम के आगे के बोल है कण-कण शिव शिव शंभू शंभू है.. महाकुंभ है . महाकुंभ. इस तरह के गीतों को बनाते हुए ग्लैमर और फैशन नहीं दिखा सकते हैं, क्योंकि हम अपने पूर्वजों का, अपने बुजुर्गों का सुमिरन कर रहे होते हैं. उनकी सीख को दोहरा रहे होते हैं.इसमें सब कुछ ओरिजिनल बताना पड़ता है. हमारे अध्यात्म की शक्ति क्या है. 12 वर्ष में कुंभ क्यों आता है. नक्षत्र का क्या खेल होता है. हमारे सनातन अखाड़े का उस स्नान से क्या संबंध है. मतलब आप समझ लीजिए गागर में सागर बांधकर आपको जनमानस तक पहुंचना है. वैसे मैं इसको चुनौती पूर्ण नहीं बल्कि बहुत ही प्यारी प्रक्रिया मानता हूं .जो हृदय से भावनात्मक भरी होती है, क्योंकि क्या होता है कि कुछ बातें पढ़ने से आती है. कुछ बातें होती है जो गढ़ने से आती हैं. हमारा भारत तो गढा हुआ है. हमारे भारत में तो करोड़ों साल की संस्कृति है. जब दुनिया भर में विद्यालय, विश्वविद्यालय नहीं थे, तो भी हमारे यहां सब शिक्षित थे. इसका मतलब है कि श्रवण से शिक्षा आई थी. यानी हमारे जो बड़े हैं.वह अगली पौध को कहानी सुना सुना कर तैयार करते थे. श्रवण शक्ति से ही पूरे वेद. पुराण, शास्त्र कंठस्थ हो जाते थे. लोग उसमें दक्ष हो जाते थे. सनातन का जब अभ्यास करते हैं,तो वही विद्या का पुनर अवलोकन होता है.महाकुंभ गीत से मैं सनातन धर्म का उसी तरह प्रचार प्रसार कर रहा हूं

कुंभ साधु संतों को पोषित करता है

प्रकृति संतुलन से चलती है.हम भौतिक दुनिया वाले जो भी अपनी सुख सुविधा को पाने के लिए करते हैं, उसको संतुलन में हमारे संत महात्मा और आध्यात्मिक गुरु लाते हैं. पाप,पुण्य ,पुरुषार्थ आवश्यक है. परमार्थ भी आवश्यक है. वरना प्रलय आ जायेगी. आग लगी आकाश में झर झर गिरे अंगार .. यदि संत ना होते जगत में तो जल मरता संसार और पूरी पृथ्वी पर संत, कहीं और नहीं बल्कि भारत में होते हैं.विश्व में अगर किसी को तपस्वी बनने का संदेश भी जाता है,तो वह तपस्वी बनने के लिए भारत में ही आते हैं. कुम्भ इन्ही साधु, संत और महात्माओं को एकजुट करता है. उनके सम्मान को और बढ़ाता है. पूरे विश्व के लिए भारत एक आध्यात्म का,आत्म मंथन का आंतरिक शांति का केंद्र है. 50 करोड लोग कुंभ में आएंगे. आप सोचिए कितने देश की आबादी मिलकर 50 करोड़ होती होगी और यहां पर इतने सारे लोग सिर्फ श्रद्धा, भक्ति और आस्था से जुड़ने के लिए इतनी तादाद में आएंगे. यह भारत की अदम्य शक्ति को दर्शाता है. जिसे साधू और संतो ने पोषित किया है.

हम जिनके चरणों में थे वह स्वयं कुंभ थे

जैसा कि सभी को पता है कि मेरा अधिकतर समय हरिद्वार में बीता है. जैसा कि सभी को पता है कि मेरा अधिकतर समय हरिद्वार में बीता है, लेकिन शारीरिक तौर पर हम उसका हिस्सा नहीं बन पाए थे.उस वक्त हम बहुत छोटे थे. तब हम महात्माओं के साथ रहते थे. जिनके साथ हम पले हैं.वो जो आज के अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि जी के गुरु सत्यमित्रानंद जी थे. उनके चरणों में पला बड़ा हूं. उनके समकक्ष जो महात्मा थे. मैं उनकी गोदी में पला हूं. उन्हीं की डांट खाई. उन्हीं का प्यार पाया. हमारे व्यक्तित्व की जो रचना हुई. उनके द्वारा हुई है. ऐसे शारीरिक रूप से हम कुंभ का हिस्सा पहले नहीं बन पाए थे. उस वक्त आयु भी कम थी.वायु भी कम थी ,परंतु हम जिनके चरणों में थे.वह स्वयं कुंभ थे. कहने का मतलब वह चलते फिरते तीर्थ थे. उन्होंने सनातन का तत्व मुझे सिखा कर गए हैं कि ऐसे जीना है.

कुंभ में इस बार चार बार जाने वाला हूं

हम इस बार महाकुंभ में तीन बार जा रहे हैं. हो सकता है कि चार बार भी हो जाए. 13 जनवरी से 28 फरवरी तक . हमारे कैलाश के वहां पर कंसर्ट्स होंगे. कैलाश अनहद नाद का सजीव मंचन होगा. ये मंचन चार से पांच बार भी हो सकता है, क्योंकि अलग-अलग संस्थानों में अब एक आतुरता है क्यों ना हम भी रस स्वादन अनहद नाद का ले. क्योंकि जैसे ही शिवनाद गूंजता है .आपके मन का अंतकरण शुद्ध हो जाता है. पवित्र होता है और आपको कहीं ना कहीं अनुभूति होती है कि है मेरे ईश्वर आप यही कही है और आपका प्यार आपका आशीर्वाद हम सब पर ऐसे ही बरसता रहे.

स्पिरिचुअल अवेकिंग का नाम है कैलासा

मेरा बैंड आध्यात्मिक है, धार्मिक है. यह सब अंतर भेद में मैं नहीं पड़ता हूं. मैं खुद को कुछ भी नहीं मानता हूं. कण कण रमता या कहीं भी नहीं हूं .मेरी यही दो सोच है, यह जो संसार है.यह अपने विवेक से आपको नाम देता है,लेकिन जो भारत भूमि है.वह आध्यात्म की धरती है. जो हमारा जोनर गायकी का कैलासा है. वह आध्यात्मिक है, जो आध्यात्मिक होते हैं. वह कर्तव्य परायण होते हैं. कर्तव्य परायण होना सबसे बड़ा धर्म है. यह सब बुद्धि का खेल है. मुझे लगता है कि संगीत उससे परे है.सीधे शब्दों में कहूं तो स्पिरिचुअल अवकेनिंग जो संगीत से आए वह है कैलासा .

मेरा देश जाग रहा है

भारत में पिछले कई दशकों को मिला लें, तो मंदिरों या महाकुंभ के बारे में कहां पहले बात होती थी.लोग टीका लगाकर ऑफिस चले जाए,तो उनका उपहास उड़ाया जाता था.अभी जो हालात बनें हैं. इसमें देव सत्ता का सम्मिलित है. कई दशकों से सनातन की अनदेखी से मेरे महादेव की भृकुटि तनी होगी और उसने इस पृथ्वी सत्ता पर अपने कुछ मुखिया बिठा दिए हैं, जिनका उद्देश्य ही सनातन की रक्षा है. अब मेरा देश जाग रहा है. मेरे देश का पुनरुत्थान हो रहा है

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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