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Laapataa Ladies Movie Review: मुद्दों के साथ-साथ मनोरंजन से भरपूर इस फिल्म में अपने अभिनय से दिल जीत लेते हैं रवि किशन

Laapataa Ladies: कहानी की बात करें तो यह मध्यप्रदेश में स्थित काल्पनिक प्रदेश निर्मल प्रदेश में साल 2001 में सेट किया गया है. यह फिल्म पितृसत्ता समाज को चुनौती देती हैं. महिलाओं के प्रति अन्यायपूर्ण समाज की परतों को वह घूंघट के जरिये खोलती है, लेकिन नारेबाजी या किसी भी तरह की भाषणबाजी में शामिल हुए बिना.

फिल्म – लापता लेडीज
निर्माता – आमिर खान फिल्म्स और जियो स्टूडियो
कलाकार – रवि किशन, स्पर्श श्रीवास्तव, नीतांशी गोयल, प्रतिभा रांटा, दुर्गेश कुमार, छाया कदम और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग – साढ़े तीन

Laapataa Ladies: निर्देशिका किरण राव एक दशक के लंबे अंतराल के बाद निर्देशन में लौट आयी हैं. पॉपुलर सिनेमा में बतौर निर्माताजुड़ी रही किरण राव ने निर्देशिका के तौर पर एक बार फिर से लीग से हटकर फिल्म का चुनाव किया है. पिछली बार उनकी फिल्म की कहानी का आधार मुंबई था, इस बार उन्होंने भारत के गांवों को कहानी का आधार बनाया है. उनकी यह फिल्म पितृसत्ता समाज को चुनौती देती हैं. महिलाओं के प्रति अन्यायपूर्ण समाज की परतों को वह घूंघट के जरिये खोलती है, लेकिन नारेबाजी या किसी भी तरह की भाषणबाजी में शामिल हुए बिना. वह व्यंग्यात्मक अंदाज में महिलाओं की आत्मनिर्भरता से जुड़ी कई गहरी बातों को अपनी इस मनोरंजक फिल्म से समझा गयी है. जिस वजह से यह फिल्म पूरे परिवार के साथ देखी जानी चाहिए.

लुटेरी दुल्हन नहीं बेबस दुल्हनों की है कहानी
कहानी की बात करें तो यह मध्यप्रदेश में स्थित काल्पनिक प्रदेश निर्मल प्रदेश में साल 2001 में सेट किया गया है. कहानी की शुरुआत एक शादी से होती है और वर दीपक (स्पर्श) अपनी वधूफल (नितांशी) को लेकर अपने घर के लिए निकलता है. इस दौरान उसे ट्रेन से भी यात्रा करनी पड़ती है. ट्रेन में फिल्म का सीक्वेंस पहुंचता है, तो मालूम पड़ता है कि यह शादियों का सीजन है. ट्रेन में दो और दूल्हे और दुल्हन की जोड़ी और मौजूद है. दीपक गलती से दूसरी दुल्हन पुष्पा (प्रतिभा रांटा) को अपने घर के आता है और उसकी पत्नी ट्रेन में ही रह जाती है. फूल को मालूम पड़ता है कि दीपक उसके साथ नहीं है. वह दूसरे दूल्हे से खुद को बचाकर स्टेशन को ही अपना घर बना लेती है. वहीं दूसरा दूल्हा पुलिस स्टेशन में अपनी पत्नी के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए बताता है कि उसकी पत्नी का नाम जया है और वह लाखों के गहने लेकर भाग गयी है. दीपक के पास पहुंची दुल्हन फिर अपना नाम जया के बजाय पुष्पा क्यों बता रही है? जया क्या किसी अपराध में शामिल है अगर नहीं तो फिर वह अपनी असली पहचानक्यों छिपा रही है. इन्ही सब सवालों का पड़ताल आगे की फिल्म करती है.

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फिल्म की खूबियां और ख़ामियां
इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी इसकी कहानी और स्क्रीनप्ले है. जिस तरह से कहानी और फिल्म का स्क्रीन प्ले है. वह पूरी तरह से आपको बांधे रखता है. कहानी शुरुआत में लुटेरी दुल्हन का भी टच कहानी में देने कि कोशिश हुई है, जो कहानी में शुरुआत में ट्विस्ट भी जोड़ता है कि कहीं वाकई यह लुटेरी दुल्हनों की कहानी तो नहीं है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, मालूम पड़ता है कि यह असल में बेबस दुल्हनों की कहानी है. यह फिल्म महिलाओं से जुड़े अहम मुद्दों की सीख देती है, लेकिन बिना चीखे चिल्लाए या सीरियस होकर बल्कि यह हंसी-मजाक और हल्के फुलके अंदर में अपनी बात को बहुत ही गहरे तरीके से कह जाती है. फिल्म महिलाओं को अच्छी बीवी बनने के बजाय आत्मनिर्भर बनने और अपने लिए सपने देखने की सीख भी देती है.


यह फिल्म फिल्म राजनीति पर भी तंज कसने से पीछे नहीं हटती है. सरकार बदलने पर जगहों के नाम बदलने पर तंज हो या नेता अपना हित साधने के लिए हर चीज के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराने के नजरिये पर भी फिल्म रोशनी डालती है. किरण राव फिल्म की निर्देशिका ने पूरी डिटेलिंग के साथ इस कहानी को प्रस्तुत किया है. जिसके लिये उनकी तारीफ करनी होगी. फिल्म के संवाद इसकी अहम यूएसपी है. गीत संगीत की बात करें तो राम संपत ने फिल्म के विषय के साथ बखूबी न्याय किया है. गीत संगीत फिल्म के प्रभाव को और ज़्यादा बढ़ा गया है.

रवि किशन अभिनय में ले जाते हैं बाजी मार
अभिनय की बात करें तो फिल्म में मंझे हुए और नये चेहरों दोनों को शामिल किया गया है. जामताड़ा फेम स्पर्श एक अलग अंदाज में नजर आये हैं. नीतांशी का किरदार मासूम और भोला भाला सा तो वही प्रतिभा रांटा ने अपने किरदार को पूरे आत्मविश्वास के साथ जिया है. दोनों ने अपने अभिनय से कहानी को और संवारा है. छाया कदम का किरदार और अभिनय दोनों ही महिलाओं को और मजबूती देता है. कुलमिलाकर सभी कलाकारों का अभिनय कमाल का है, लेकिन बाजी रवि किशन मार ले जाते हैं. पान खाते हुए जिस तरह से उन्होंने संवादों को बोला है. वह अभिनय के उनके रेंज को भी बहुत हद तक दर्शाया गया है. उन्होंने अपने किरदार के हर शेड्स को हर सीन के साथ बखूबी जिया है. दुर्गेश कुमार कुमार सहित दीपक के परिवार, दोस्तों का काम भी अच्छा है.

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Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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