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Master Movie Review: एंटरटेंमेंट का डोज देती है ‘मास्टर’, जबरदस्त एक्शन करते दिखे विजय

Master Movie Review: सिनेमाघरों में रिलीज के मात्र दो हफ्ते के अंतराल में मास्टर ने ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली पहली फिल्म बन चुकी है. इतने कम अंतराल पर अब तक थिएटर में रिलीज होने वाली कोई भी फिल्म ओटीटी पर रिलीज नहीं हो पायी है खास बात है ये भी है कि वायरस और इन्फेक्शन के इस दौर में फिल्म ने 200 करोड़ का कारोबार कर लिया है.

सिनेमाघरों में रिलीज के मात्र दो हफ्ते के अंतराल में मास्टर ने ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली पहली फिल्म बन चुकी है. इतने कम अंतराल पर अब तक थिएटर में रिलीज होने वाली कोई भी फिल्म ओटीटी पर रिलीज नहीं हो पायी है खास बात है ये भी है कि वायरस और इन्फेक्शन के इस दौर में फिल्म ने 200 करोड़ का कारोबार कर लिया है.

कहानी की बात करें तो बाल सुधार गृह में रहने वाला एक बच्चा भवानी ( विजय सेतुपति) किस तरह से बड़े होने पर उस बालसुधार गृह और वहां रहने वाले बच्चों को अपने गलत धंधों के लिए इस्तेमाल करता है. कहानी यही से शुरू होती है. कट टू चेन्नई के एक कॉलेज में एक प्रोफेसर जे डी( थलपथी विजय) जो अपने स्टूडेंट्स के बीच बहुत पॉपुलर है लेकिन मैनेजमेंट का वह नंबर वन दुश्मन है. यह प्रोफेसर सिनेमा के चित परिचित प्रोफेसर्स से बिल्कुल अलग है. इसमें अपनी खामियां हैं कमजोरियां हैं. कहानी में ऐसे टर्न्स आते हैं कि जे उस बाल सुधारगृह में मास्टर के तौर पर पहुंच जाता है.

शुरुआत में चीजों को लेकर उसका रवैया चलताऊ रहता है लेकिन दो बच्चों की मौत उसे बदल देते हैं फिर वह भवानी के चंगुल से उस बाल सुधार गृह और बच्चों को निकालने में जुट जाता है. वह बच्चों के सामने भवानी का असल चेहरा भी उजागर कर देता है. यही आगे की कहानी है. फ़िल्म फर्स्ट हाफ में एंटरटेन करती है सेकेंड हाफ में खींच गयी है. तीन घंटे की इस फ़िल्म का सेकंड हाफ कुछ कम किया जा सकता है. फ़िल्म की कहानी में भवानी और जे डी के आने का कौतूहल अच्छा बनाया गया है लेकिन आमने सामने फ़िल्म के आखिर में आते हैं. वो भी बहुत कम समय के लिए. जिससे यह बात जेहन में आती रहती है कि दोनों के आमने सामने वाले दृश्य को थोड़ा और दिखाना था.

कहानी के अच्छे पहलुओं की चर्चा की जाए तो तो यह फ़िल्म छात्र राजनीति की अहमियत और बाल सुधार गृह में अच्छे टीचर्स की मौजूदगी की अहमियत और बच्चों के भविष्य पर भी सवाल उठाती है. फिल्म की कहानी में नायक और खलनायक जैसा कुछ नहीं है. भवानी और जे डी के किरदार को एक ही सिक्के के दो पहलू बताया है. दोनों के हाव भाव में भी समानताएं दिखायी गयी है. यह फ़िल्म का रोचक पहलू है.

अभिनय के डिपार्टमेंट में आए तो हमेशा की थलपथी विजय ने अपने किरदार को पूरे स्वैग के साथ जिया है. विजय सेतुपति अपने किरदार से डराते भी हैं और एंटरटेन भी करने में कामयाब रहे हैं. कैदी बनें बाल कलाकार अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं बाकी के किरदारों को करने के लिए कुछ खास नहीं था अभिनेत्री मालविका मोहन के हिस्से में भी गिने चुने दृश्य आए हैं. फ़िल्म का एक्शन रोमांचक है. कुल मिलाकर कुछ खामियों के बावजूद यह मसाला फ़िल्म एंटरटेन करती है.

Posted By: Shaurya Punj

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