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Panchayat 3 Review: पंचायत 3 में कहानी सियासी ज्यादा लेकिन मनोरंजन भी है भरपूर 

पंचायत 3 इनदिनों अमेजॉन प्राइम पर स्ट्रीम कर रही है.पंचायत का यह सीजन अपने पिछले दोनों सीजनों के मुकाबले कितना है ख़ास, कहां नहीं बनी बात. जानते हैं इस रिव्यु में

वेब सीरीज- पंचायत 3

निर्माता- अरुणाभ कुमार

निर्देशक- दीपक कुमार मिश्रा

कलाकार- जितेंद्र,रघुबीर यादव,नीना गुप्ता,चंदन रॉय,फैजल मलिक ,सुनीता राजवर,अशोक पाठक और अन्य

प्लेटफार्म- अमजॉन प्राइम

रेटिंग- तीन 

Panchayat 3 Review: पंचायत 3 ओटीटी पर आखिरकार दस्तक दे चुका है. पिछले दोनों सीजनों की तरह यह सीजन भी आपको हंसाता है और चुपके से वो बात भी कर जाता है,जिन पर सोचना जरुरी है .जिससे सीरीज इस बार भी मनोरंजक और दिलचस्प बन गयी है लेकिन कहानी और स्क्रीनप्ले में वह धार थोड़ी कमजोर नजर आयी है. जो पंचायत सीरीज की खासियत है.सादगी और साफ़गोई से कहानी कहना पंचायत की पहचान रही है लेकिन इस बार आख़िर के दो एपिसोड्स में मामला गोलीबारी तक पहुंच गया है.सिर्फ यही नहीं जमीनी स्तर के छोटे – मोटे मुद्दों को इस बार स्क्रीनप्ले में कम तरजीह मिली है , मामला सियासी ज्यादा हो गया है.

प्रधान बनाम विधायक के सियासी  उठापटक की है कहानी 

आठ एपिसोड की इस सीजन की कहानी की शुरुआत वहीं से होती हैं,जहां से दूसरा सीजन ख़त्म हुआ है .प्रह्लाद (फैजल)अपने शहीद बेटे की मौत के सदमे में अभी भी जूझ रहा है. उनका दर्द विकास,मंजू देवी और प्रधान जी को परेशान कर रहा है.सचिव जी ( जितेंद्र) भी परेशान हैं क्योंकि उनका तबादला हो गया है . नए सचिव की फुलेरा में एंट्री हो गयी है .वह विधायक( पंकज झा )का ख़ास है .इधर नये सचिव की जॉइनिंग प्रधान जी और उनकी टीम  नहीं होने दे रहे हैं  क्योंकि वह विधायक की मनमानी फुलेरा में नहीं चाहते हैं और उन्हें पूर्व सचिव अभिषेक से लगाव भी है .कैसे प्रह्लाद नये सचिव की जॉइनिंग को रोकता है और तबादला हो चुके अभिषेक (जितेंद्र)की एंट्री फिर से फुलेरा में होती है .यही आगे की आगे की कहानी है . कहानी सिर्फ़ इतनी नहीं है . बनराकक्षस उर्फ़ भूषण( दुर्गेश कुमार) की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ कुछ इस कदर बढ़ गयी है कि वह विधायक को अपने सिर पर बिठा लेता है ,जिसका एकमात्र सपना प्रधान और फुलेरा गांव से बदला लेना है . विधायक क्या प्रधान से बदला ले पाएगा. वह अपने बदले को पूरा करने के लिए किस हद तक जा सकता है. प्रधान और उनकी टीम क्या विधायक को मुंह तोड़ जवाब इस बार भी दे पायेंगे. यही पूरी कहानी है .

सीरीज की खूबियां और खामियां

इस सीरीज की कहानी को आठ एपिसोड में कहा गया है .यह सीरीज आपको हंसाती है और चुपके से वो बात भी कर जाती है ,जो जरुरी है.सीरीज शुरुआत में जगमोहन के परिवार के जरिये परिवार के महत्व को बताती है लेकिन उसके बाद कहानी गांव और उसके लोगों के जमीनी स्तर  के मुद्दे को छोड़ राजनीति की ओर बढ़ जाती है,हालांकि लेखन टीम की इसके लिए तारीफ करनी होगी कि सेकेंड सीजन जिस तरह से खत्म हुआ था.उसके दर्द को शुरुआत के एपिसोड में बखूबी दिखाया गया है.सीरीज में जातिगत भेदभाव के मुद्दे को एक दो दृश्यों में दर्शाया गया है.प्रधान जी और उनकी टीम का पॉपुलर ड्रामा पांचवे एपिसोड से शुरू होता है और फिर हंसी ठहाके शुरू हो जाते हैं.शुरुआत के एपिसोड्स में मामला पूरी तरह से ग़मगीन है , ऐसा भी नहीं है.भूषण और उसकी टीम ने चेहरे पर समय – समय पर मुस्कान बिखेरी है.सचिव वाला सीन  भी अच्छा बन पड़ा है.सपोर्टिंग  कास्ट को इस बार कहानी में बहुत मजबूती दी है और सभी अपने जबरदस्त अभिनय से इसे ऊंचाई दी है.खामियों की बात करें तो सादगी और साफ़गोई से कहानी कहना पंचायत की पहचान रही है लेकिन इस बार आख़िर के दो एपीसोड्स में मामला गोलीबारी तक पहुंच गया है . यह बात सीरीज देखते हुए अखरती है.गांव के लोगों के भावनात्मक उथल – पुथल और जमीनी स्तर के छोटे – मोटे मुद्दों के बजाय इस बार राजनीति और पावर के खेल पर कहानी में ज़्यादा फोकस हो गया है.सीरीज अगर प्रधान जी के साथ हुए हादसे के साथ खत्म होती तो यह नए सीजन के लिए उत्सुकता को बढ़ा सकता था,लेकिन सीरीज का वह अंत पंचायत को मिर्जापुर के और करीब ले जाता था ,शायद लेखन टीम ने यह भांप लिया हो.इस बार ग़ज़ब बेइज़्ज़ती और देख रहा है ना बिनोद जैसा कोई डायलॉग नहीं है,जो याद रह जाये.सीरीज का गीत -संगीत सीरीज के विषय के साथ न्याय करता है.

फैजल मलिक ,दुर्गेश कुमार और अशोक पाठक रहे हैं शानदार

पंचायत ३ की खासियत इसके कलाकार हैं .जबरदस्त कलाकारों इस  पंचायत में इस बार फैजल मलिक और बिनोद बने अशोक पाठक और दुर्गेश कुमार उभरकर सामने आए हैं . फैजल अपने अभिनय से आंखों को नम करने के साथ – साथ गुदगुदाते भी हैं .बिनोद के किरदार में अशोक पाठक की संवाद अदाएगी और बॉडी लैंग्वेज सीरीज में ज़बरदस्त हास्य रस जोड़ता हैं. दुर्गेश कुमार की मौजूदगी सीरीज में एक अलग ही रंग भर्ती है .अशोक पाठक का साथ दे रहे माधव बने और  पंकज झा की भी तारीफ़ बनती हैं. जितेंद्र कुमार ,नीना गुप्ता ,रघुबीर यादव,चंदन रॉय ,संविका ,  उनके किरदार के ग्राफ में  ज़्यादा प्लस माइनस नहीं जुड़ा है ,जिससे पिछले दोनों सीजन के चित परिचित अंदाज़ में हुई ये कलाकार अपने सधे हुए अभिनय में ही नजर आए हैं.बाक़ी के कलाकारों में जगमोहन,उसकी दादी,बम बहादुर और विधायक के भेजे गये लोगों ने भी यादगार परफॉरमेंस दी है.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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