23.2 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

…जब इंदिरा गांधी की हत्या और बोफोर्स मामले ने चुनावी नतीजों पर डाला था असर, नारे की सहानुभूति में कांग्रेस को मिली थीं 409 सीटें

डॉ आरके नीरद 1984 में देश की राजनीतिक परिस्थिति फिर बदली. इंदिरा जी की हत्या हो गयी. कांग्रेस ने उससे उपजी सहानुभूति को बटोरने के लिए पूरे जोश से नारा लगाया ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा’. इस नारे ने कांग्रेस को भारी जीत दिलायी. 1984-85 में हुए आठवें लोकसभा चुनाव में […]

डॉ आरके नीरद
1984 में देश की राजनीतिक परिस्थिति फिर बदली. इंदिरा जी की हत्या हो गयी. कांग्रेस ने उससे उपजी सहानुभूति को बटोरने के लिए पूरे जोश से नारा लगाया ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिराजी तेरा नाम रहेगा’.
इस नारे ने कांग्रेस को भारी जीत दिलायी. 1984-85 में हुए आठवें लोकसभा चुनाव में इस नारे के साथ-साथ राजीव गांधी के समर्थन में गढ़े गये नारे ‘उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं’ ने कांग्रेस को भरपूर ताकत दी और 409 सीटों पर उसे कामयाबी मिली. यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कहा गया. राष्ट्रीय विपक्षी पर्टियों का ऐसा सफाया हुआ कि लोकसभा में प्रतिपक्ष में किसी को जगह नहीं मिली. मुख्य विपक्षी पार्टी तेलुगुदेशम पार्टी बनी, जिसे 30 सीटें मिलीं थीं, लेकिन बोफोर्स कांड और पंजाब में आतंकवाद जैसे घरेलू मुद्दों ने राजीव गांधी को अलोकप्रिय बना दिया.
लिहाजा, 1989 के चुनाव में विपक्ष के पास कई जोशी और धारदार नारे थे. इनमें विश्वनाथ प्रताप सिंह लिए लगाया गया नारा ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’ ज्यादा चर्चित रहा.
विश्वनाथ प्रताप सिंह को बोफोर्स सौदे की अंदर की जानकारी रखने के कारण राजीव मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया गया था और उन्होंने कांग्रेस से अलग हो कर इस सौदे को लेकर देशभर में राजनीतिक तूफान पैदा किया था. हालांकि सिंह महज 11 माह के करीब प्रधानमंत्री रहे. इस बीच दो बड़ी घटनाएं हुईं, जिसने देश की राजनीतिक परिस्थिति, चुनाव और चुनावी नारों की दिशा बदल दी. एक घटना थी मंडल कमीशन की सिफारिशों का सार्वजनिक होना और दूसरा लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा. इनमें से एक ने जातीय भावनाओं को उभारा, तो दूसरे ने राम मंदिर के मुद्दे को केंद्र में रख कर देशभर में सांप्रदायिक उन्माद को हवा दी.
इसने नारों का मिजाज बदल दिया. बिहार में ‘भूरा बाल साफ करो’ और देश में ‘सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनायेंगे’ व ‘जय श्री राम’ अलगाववादी राजनीति के प्रतीक बन गये. हालांकि इनमें से कोई सीधे तौर पर चुनावी नारा नहीं था, लेकिन इनकी बुनियाद राजनीतिक सोच थी और इन्होंने चुनावों पर पूरा-पूरा असर भी डाला.
1991 में नारे का जादू कमजोर पड़ गया था
1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गयी. यह हत्या चुनाव के दौरान हुई थी. कांग्रेस ने इसे चुनावी नारे का विषय बनाया और ‘राजीव तेरा यह बलिदान, याद करेगा हिंदुस्तान’ नारा गढ़ा. इस नारे की बदौलत उसने सबसे ज्यादा 232 सीटें पायीं. हालांकि इस चुनाव परिणाम ने लोकसभा को त्रिशंकु ही बनाया था. स्पष्ट बहुमत किसी दल को नहीं था.
पहले भी टूटी भाषा की मर्यादा
चुनावी नारों में भाषा की मर्यादा पहले भी टूटती रही है. कुछ नारे तो ऐसे लगे कि उनकी सहजता से चर्चा नहीं हो सकती. बहरहाल, 1977 में इंदिरा गांधी जब रायबरेली का चुनाव हार गयीं, तब उन्होंने 1978 में चिकमंगलूर से उपचुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उनके नारे ने खूब लोकप्रियता पायी थी. वह था, ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, भाई चिकमंगलूर’. इस चुनाव में उन्हें जीत मिली थी.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel