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संयुक्त संसदीय समिति में विपक्ष ने सरकार से मांगा भूमि अधिग्रहण का ब्यौरा

नयी दिल्ली: भूमि विधेयक संसद की संयुक्त समिति को भेजने के लिए मोदी सरकार को बाध्य करने के बाद अब विपक्ष ने मांग की है कि केंद्र सरकार पिछले साल दिसंबर में भूमि अध्यादेश लागू होने के बाद से अब तक विभिन्न परियोजनाओं के लिए किये गये अधिग्रहणों का ब्यौरा दे. राज्यसभा में अपेक्षित सीटें […]

नयी दिल्ली: भूमि विधेयक संसद की संयुक्त समिति को भेजने के लिए मोदी सरकार को बाध्य करने के बाद अब विपक्ष ने मांग की है कि केंद्र सरकार पिछले साल दिसंबर में भूमि अध्यादेश लागू होने के बाद से अब तक विभिन्न परियोजनाओं के लिए किये गये अधिग्रहणों का ब्यौरा दे. राज्यसभा में अपेक्षित सीटें नहीं होने के कारण भूमि अधिग्रहण विधेयक को कानून बनाने में विफल रही सरकार ने हाल ही में भूमि अध्यादेश फिर से लागू किया है. ऐसा तीसरी बार किया गया है.

इस बीच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने 29 मई को पहली बार विधेयक पर विस्तार से चर्चा की. अध्यादेश फिर से लाये जाने का विपक्ष ने भारी विरोध किया. उसने इसे संसद का अपमान करार दिया क्योंकि उसका कहना है कि इस महत्वपूर्ण विधेयक पर जेपीसी विचार कर रही है. सरकार ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि नये कानून बनने की राह देख रहीं महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के उद्देश्य से अध्यादेश लाना जरुरी था.
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में बना था, जब संप्रग की सरकार थी. अध्यादेश लाने के फैसले को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों ने भी 2013 के कानून पर आपत्ति व्यक्त की है क्योंकि इसके तहत भूमि अधिग्रहण मुश्किल है. इस बीच सूत्रों ने बताया कि बीजद के भृतुहरि महताब ने सरकार के इस दावे को गलत बताया है कि संशोधन लाये बिना भूमि अधिग्रहण मुश्किल लक्ष्य था. महताब ने दिसंबर 2014 में अध्यादेश जारी होने के बाद से अब तक किये गये भूमि अधिग्रहण का ब्यौरा मांगा है.
सरकार का तर्क है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडी महत्वपूर्ण परियोजनाओं को लगाने के लिए संशोधन आवश्यक थे. इस तर्क का खंडन करते हुए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने अध्यादेश लागू होने के बाद की ऐसी सुरक्षा परियोजनाओं का ब्यौरा मांगा है, जिन्हें मोदी सरकार ने मंजूरी दी है. जेपीसी की पहली बैठक में विपक्षी सदस्यों ने 2013 के कानून के महत्वपूर्ण प्रावधानों को बदलने के पीछे सरकार के औचित्य पर सवाल उठाया.
नये विधेयक के समर्थन में सरकारी दलीलों से असंतोष व्यक्त करते हुए इन सदस्यों ने मांग की कि इस मुद्दे पर कम्पोजिट (संयुक्त) अंतर-मंत्रालय जवाब आना चाहिए. जेपीसी बैठक की अध्यक्षता भाजपा के एसएस अहलूवालिया ने की. बैठक में ग्रामीण विकास मंत्रालय और कानून मंत्रालय के विधायी विभाग ने 2013 के कानून में किये गये संशोधनों को लेकर प्रस्तुतिकरण दिया. सरकार ने 2013 के कानून के कुछ प्रावधानों को लेकर राज्यों की आपत्तियों का हवाला दिया तो जेपीसी सदस्यों ने मांग रख दी कि राज्यों से उनके जवाब लिखित लिये जाने चाहिएं, जिस पर सहमति बन गयी. प्रस्तुतिकरण के दौरान कुछ सदस्यों ने औद्योगिक कोरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण पर और स्पष्टीकरण की मांग की.
ग्रामीण विकास मंत्रालय और कानून मंत्रालय सहित विभिन्न मंत्रालयों से पांच जून तक संयुक्त जवाब पेश करने को कहा गया था. पूर्व के 2013 के कानून में निजी परियोजनाओं के लिए 80 फीसदी भूस्वामियों की सहमति की आवश्यकता का प्रावधान करता है. सार्वजनिक-निजी परियोजनाओं (पीपीपी) के मामले में 70 फीसदी भूस्वामियों की मंजूरी का प्रावधान है, लेकिन मौजूदा विधेयक इसके दायरे से पांच श्रेणियों को मुक्त रखता है. इनमें रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, वाजिब दरों वाले आवास, औद्योगिक कोरिडोर और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं. इनमें पीपीपी भी शामिल हैं, जहां सरकार भूस्वामी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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