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– हरिवंश – यह किस्सा या कल्पना नहीं है. सत्य घटना है. गाड्स ओन कंट्री (भगवान का अपना प्रदेश) की. यानी केरल की घटना. केरल पर्यटन का एक मशहूर नारा है. इस नारे ‘गाड्स ओन कंट्री’ की गूंज, शोर और प्रतिध्वनि दुनिया में है. घटना छह फरवरी 2012 की है. केरल के एक सेक्स स्कैंडल […]

– हरिवंश –
यह किस्सा या कल्पना नहीं है. सत्य घटना है. गाड्स ओन कंट्री (भगवान का अपना प्रदेश) की. यानी केरल की घटना. केरल पर्यटन का एक मशहूर नारा है. इस नारे ‘गाड्स ओन कंट्री’ की गूंज, शोर और प्रतिध्वनि दुनिया में है. घटना छह फरवरी 2012 की है. केरल के एक सेक्स स्कैंडल में हाइकोर्ट ने पांच लोगों को सख्त सजा सुनाई है. केरल की यह चर्चित घटना है.
किरलीरूर (कोयट्टयम) की एक बालिका सारी एस नायर से जुड़ी. उम्र पंद्रह वर्ष. अगस्त 2003 में अनगिनत लोगों ने इस लड़की से बलात्कार किया. अनेक जगहों पर. रहस्यमय परिस्थितियों में, 2004 में लड़की मर गयी. एक बालिका को जन्म देकर. यह लड़की स्टार बनना चाहती थी. टीवी में काम का प्रलोभन देकर इससे दुष्कर्म किया गया. अनेक वीवीआइपी के नाम भी उछले.
जनदबाव में मामला स्थानीय पुलिस के पास गया. फिर सीबीआइ के पास. सीबीआइ जांच के बाद, अब कुछ लोगों को सजा हुई है. नवजात बालिका के डीएनए टेस्ट से पिता की पहचान भी हो गयी है. इस कथित पिता को भी सख्त सजा हुई है. वह अभियुक्त और उनकी पत्नी अदालत से दया की मांग कर रही हैं. पर, इस सजा के बाद भी सारी के मां-बाप कहते हैं कि सीबीआइ आदालत से उन्हें न्याय नहीं मिला. वे हाइकोर्ट जायेंगे. क्योंकि अनेक वीवीआइपी बच गये हैं. पर, वे बलात्कार के दोषी हैं.
ये घटनाएं केरल के सामाजिक स्वास्थ्य या हालात के संकेत हैं. विकास मॉडल में केरल, दूसरे राज्यों के लिए आदर्श है. ‘ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (मानव विकास सूचकांक) 2001 में भारत का पहला राज्य. औरत और मर्द लिंगानुपात में (प्रति हजार पुरुषों पर महिलाएं, 2001) में भी 1058 औरतों की संख्या से देश का नंबर वन राज्य. शिक्षा दर (2001) में देश का सिरमौर राज्य. 91 फीसदी शिक्षित. देश में उम्र प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) 61 वर्ष है, तो केरल में 75 वर्ष (वर्ष 92-96 में).
इसी तरह प्रति हजार पर मृत्यु दर भी देश में 68 है (वर्ष 2000), तो केरल में 14. प्रति एक लाख पर महिलाओं की प्रजनन मृत्यु दर (वर्ष 1998) देश में 407 है, तो केरल में 198. यानी केरल देश में विकास के मौजूदा मॉडल के तहत अनुकरणीय है. वहां के मुख्यमंत्री फरमाते हैं कि केरल दो दशक आगे भविष्य की योजना बना रहा है. यह राज्य नॉलेज इकोनामी (ज्ञानयुग) का सिरमौर बनने की तैयारी कर रहा है. तीन साल पहले सर्विस सेक्टर (सेवा क्षेत्र) में आइटी निर्यात से इस साम्यवादी पृष्ठभूमि के राज्य ने 700 करोड़ कमाये.
पर्यटन से 92 बिलियन कमाये. यहां लगभग पांच लाख विदेशी यात्री हर साल पधारते हैं. इस राज्य में हर साल 44 हजार नये पासपोर्ट जारी होते हैं. केरल की अर्थव्यव्स्था की रीढ़ है, बाहर के मलयाली लोगों से केरल पहुंचने वाली पूंजी. यह मनीआर्डर इकोनामी या रेमीटेंसेज इकोनामी (पैसा भेजना) है. तकरीबन 25 हजार करोड़ पूंजी बाहर से आती है. लगभग 25,000 नर्सेस यहां से अमेरिका और ब्रिटेन गयी हैं. सिर्फ खाड़ी के देश ही केरल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ नहीं हैं. ऐसा कोई भी राज्य दुनिया के लिए रोल मॉडल ही होगा.
पर यह समृद्धि, भोग, केरल को कहां पहुंचा दिया है. आत्महत्या के मामले में केरल देश का नंबर वन राज्य है (आउटलुक वर्ष 2004). रोज लगभग 27 लोग आत्महत्या करते हैं. साल में 9000 से अधिक. अपराध में भी, भारत में सबसे अधिक अपराध दर यहां है. प्रति हजार लोगों पर 306 अपराध की घटनाएं. 35 लाख शिक्षित बेरोजगार नौकरी की कतार में हैं. पीएचडी लोग ड्राइवर-खलासी हैं. यहां बेरोजगारी देश की तुलना में अधिक है. 36 फीसदी ग्रामीण इलाकों में तथा 34 फीसदी शहरी इलाकों में (15-29 वर्ष के लोगों के बीच). महिलाओं के प्रति क्रूरता और अपराध में भी यह राज्य बहुत आगे है. 22.7 फीसदी मलयाली महिलाएं किसी न किसी तरह के अपराध-हिंसा की शिकार होतीं हैं. देश का सबसे पियक्कड़ राज्य भी यही है.
प्रति व्यक्ति सालाना, एक केरलवासी 8.3 लीटर शराब पीता है (ये सारे आंकड़े टूवर्ड्स ए स्टेट वाइज स्ट्रेटजी फार सुसाइड प्रिवेंशन तिरूअनंतपुरम’ जनवरी 2004, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (गृह मंत्रालय 2000), इंप्लायमेंट जेनेरेटिंग ग्रोथ’मई 2002, प्लानिंग कमीशन लेबर मिनिस्टरी’2002, केरल सरकार का प्रकाशन मार्च 2004, केरल वुमन्स कमीशन, सेंशस 2001, ग्लोबल अलकोहल पालिसी एलांइस 2003 और केरल डिस्ट्रीलरीज एंड बाटर्ल्स फेडरेशन अप्रैल 2003 से लिये गये हैं).
प्रति व्यक्ति शराब खपत, प्रति 300 में एक से बढ़ कर, प्रति 20 में एक हो गयी है. इससे केरल देश में प्रति व्यक्ति शराब की खपत की दृष्टि से नंबर एक राज्य है. केरल की मानव विकास रिपोर्ट 2005 के अनुसार शराबखोरी से अस्पतालों में भरती होनेवाले मरीजों की संख्या काफी बढ़ गयी है.
एक तरफ केरल के भौतिक विकास से जुड़े आंकड़े हैं, जो साबित करते हैं कि यह राज्य आधुनिक अर्थशास्त्र के अनुसार विकास का सफल मॉडल है. अमर्त्य सेन भी इसकी प्रशंसा करते नहीं थकते. दूसरी ओर पूंजी और प्रगति से संपन्न केरल की सामाजिक प्रगति के तथ्य भी सामने हैं, जो बताते हैं कि केरल का सामाजिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है. क्या मनुष्य को आनंद देनेवाले आर्थिक विकास का मॉडल यही है? संपन्नता, शिक्षा पर साथ में शराबखोरी, स्त्री पर अत्याचार, आत्महत्या, तनाव में रहना वगैरह-वगैरह. दूसरी ओर भूटान जैसे मुल्क हैं, जिनके पास ‘हैपीनेस इंडेक्स’ (खुशी सूचकांक) है. यहां केरल जैसी प्रगति नहीं है. पर लोग गरीबी में, अभाव में भी खुश हैं.
न वैसी आत्महत्या, न वैसा तनाव, न वैसी शराबखोरी. फिर सवाल उठता है कि कैसा समाज चाहिए? कौन-सा रास्ता सही है?
मनुष्य, समाज या देश या राज्य के लिए कौन-सा मॉडल श्रेयस्कर है? प्रेय है? प्रीतिकर है? महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज्य में बड़े मौलिक सवाल उठाये थे. पश्चिमी विकास मॉडल की यह भौतिक भूख हमें कहां ले जायेगी? उनका मशहूर संदेश था कि प्रकृति सबकी जरूरत पूरी करेगी. पर लोभ, लालच नहीं. पश्चिम का विकास मॉडल, लोभ पर आधारित है. इंसान को अदम्य भोग की आग में जलाता. यह आग में घी डालने का खेल है. हमारे ॠषि कह गये हैं कि भोग कभी शांत नहीं होता. इसलिए आज इंसान को चुनना है कि विकास का कौन-सा रास्ता चाहिए?
कम पैसा, कम पढ़ाई-लिखाई? या मनुष्यत्व या मानवीय गुण से संपन्न समाज? क्या हम वैसा समाज गढ़ सकते हैं, जिसमें सबसे संपन्न और सबसे नीचे के आदमी की आमद में एक निश्चित अनुपात हो.1:1000 या अधिकतम एक बनाम एक लाख. एक और असंख्य की खाई न हो. पर उस समाज में सामूहिक बोध हो. समाज परिवार की तरह सोचे और रहे. वहां मार्क्सवादी अवधारणा में भी इनसान अलगाव का शिकार न बने. पूंजीवादी समाज में भी आज इंसान अलगाव का शिकार है. परिवार टूट गये हैं.
नये समाज में वैसा न हो. वहां उपभोग की दुनिया इतनी समृद्ध न हो, शराब में समाज खुशी न ढ़ूंढ़े. मदहोशी या नशे में लोग मुक्ति का एहसास न करें. औरतें जहां उपभोग की चीज न हों. पर्यावरण-प्रकृति से जहां इंसान का तालमेल हो.
अगर ऐसा समाज चाहिए, तो उसका रास्ता अलग होगा. जहां ईमानदारी हो, सादगी हो, पारदर्शिता और भाईचारा हो. इसका मॉडल अलग होगा. आज चुनना है कि विकास का कौन-सा मॉडल चाहिए?
जैसा मॉडल होगा, वैसी ही राजनीति भी होगी. क्योंकि राजनीति के गर्भ से ही नया समाज पनपता है. और आर्थिक मॉडल कैसा हो, यह चुनने का काम भी राजनीति ही करती है. क्या केरल के अनुभव के बाद, इस देश की राजनीति में यह बहस शुरु होगी? हालांकि इस जरूरी बहस के लिए वैसे दृष्टिवान नेता चाहिए, क्या ऐसे नेता भी हैं? अगर नहीं, तो दोषी हम और आप हैं. जाति और धर्म की राजनीति है.
दिनांक : 12.02.2012
Prabhat Khabar Digital Desk
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